अवधेश कुमार का ब्लॉग: देश की सुरक्षा पर न हो राजनीति
By अवधेश कुमार | Updated: May 10, 2019 19:11 IST2019-05-10T19:11:20+5:302019-05-10T19:11:20+5:30
जम्मू-कश्मीर को तो छोड़ दीजिए जहां इस वर्ष ही अब तक 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र सहित अनेक जगहों से ये सामने आ रहे हैं. श्रीलंका हमले के बाद केरल से कुछ लोग गिरफ्तार किए गए हैं.

यह खतरा वाकई है या सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भय पैदा करती है?
पूरे चुनाव अभियान के दौरान एक बात लगातार गूंजती रही है कि सुरक्षा खतरा का हौवा वस्तुत: सत्तारूढ़ घटक जानबूझकर लोगों का ध्यान जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए खड़ा कर रहा है. जबसे वैश्विक आतंकवाद प्रचंड रूप में सामने आया है, हमारे देश में लगातार बहस चलती रही है कि यह खतरा वाकई है या सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भय पैदा करती है? दुनिया के किसी भी देश के लिए सुरक्षा प्राथमिकता होती है. अन्य विषय उसके बाद ही आते हैं.
इस समय के विकट हालात में जिस देश और समाज ने सुरक्षा प्रबंध के प्रति लापरवाही बरती उसे भयावह परिणाम भुगतने पड़े. पड़ोसी श्रीलंका इसका ज्वलंत उदाहरण है. श्रीलंका में 21 अप्रैल को हुए श्रृंखलाबद्ध आठ धमाके वहां के सुरक्षा महकमे की लापरवाही की ही तो परिणति थी.
यह विचार करने वाली बात है कि जिन आरोपियों की गिरफ्तारी से श्रीलंका में हमला किए जाने की जानकारी मिली उनसे भारत में हमले की कोई सूचना नहीं मिली होगी, ऐसा हो सकता है क्या? जांच एजेंसियां अनेक बार संपूर्ण मामले के सामने आने के बीच आए तथ्यों को सार्वजनिक नहीं करतीं. अगर ये भारत में पकड़े गए तो खतरा किसी दूसरे देश के लिए नहीं हो सकता.
आप एक वर्ष के अंदर ही आईएस की विचारधारा से प्रभावित संभावित आतंकवादियों या मॉड्यूलों के पकड़े जाने या सामने आने की घटनाओं पर सरसरी नजर दौड़ा लीजिए तो आपको आसन्न खतरे का अहसास हो जाएगा. जम्मू-कश्मीर को तो छोड़ दीजिए जहां इस वर्ष ही अब तक 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र सहित अनेक जगहों से ये सामने आ रहे हैं. श्रीलंका हमले के बाद केरल से कुछ लोग गिरफ्तार किए गए हैं.
कहने का तात्पर्य यह कि खतरा काल्पनिक नहीं वास्तविक है. दुर्भाग्य यह कि हमारे यहां आतंकवाद के खतरे को लेकर इतने मतभेद हैं कि अगर कोई घटना हो जाए तो उसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त कदम उठाने का माद्दा भी देश में कमजोर हो गया है.