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शोभना जैन का ब्लॉग: नेबरहुड फर्स्ट की कसौटी पर भारत-बांग्लादेश रिश्ते

By शोभना जैन | Updated: January 25, 2020 05:31 IST

बांग्लादेश में शेख हसीना की वापसी और भारत में मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में अपनाई गई नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी यानी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने की नीति ने संबंध सुधारे हैं. ऐतिहासिक  भारत-बांग्लादेश करार प्रगाढ़ संबंधों की एक मिसाल है.

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नागरिकता कानून के बाद से ‘असहजता’ के दौर से गुजर रहे भारत और बांग्लादेश के रिश्तों के लिए हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्नी शेख हसीना और भारत में बांग्लादेश के नवनियुक्त उच्चायुक्त सैयद मुआजिम अली के बयान अहम हैं. शेख हसीना ने इस कानून तथा प्रस्तावित एनआरसी को भारत का आंतरिक मामला बताया लेकिन साथ ही कहा कि बांग्लादेश की राय में यह कानून गैरजरूरी कदम था, उसे समझ नहीं आया कि भारत ने यह कदम क्यों उठाया और इसके बाद दो दिन पूर्व ही नए उच्चायुक्त ने अपने पद के परिचय पत्न पेश करते हुए कहा कि भारत-बांग्लादेश संबंध ‘असाधारण  स्तर’ पर पहुंच चुके हैं और इतने अच्छे संबंध ‘मैत्नीपूर्ण संबंधों’ का मॉडल बन गए हैं.

बहरहाल साफ है कि असहजता के दौर के बावजूद बांग्लादेश का शीर्ष नेतृत्व भी इस मामले को तूल देता नजर नहीं आ रहा है, लेकिन तय है कि नागरिकता कानून और  एनआरसी जैसे प्रस्तावित कदमों से मोदी सरकार की ‘पड़ोसी सबसे पहले’ की विदेश नीति पर पाकिस्तान की तो चर्चा ही बेकार है, लेकिन बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे भारत के अभिन्न मित्न देशों के अंदर भी इन्हें लेकर जिस तरह से सवाल उठे हैं, यह नीति कसौटी पर आई ही है. वहां इस कानून और प्रस्तावित एनआरसी  को लेकर आ रही प्रतिक्रि या और सम्बद्ध तमाम घटनाक्रम के मद्देनजर इन देशों के साथ इन मुद्दों को अत्यंत संवेदनशीलता, सावधानी और दूरंदेशी से संभालना होगा.

यहां खास तौर पर बांग्लादेश की बात करें तो वहां से भारत आने वाले अवैध  अप्रवासी एक वास्तविकता रहे हैं और इस पूरे मुद्दे को समग्रता के आधार पर तमाम पहलुओं को ध्यान में रख संभालना होगा जिस से पूरी दुनिया विशेष तौर पर आस-पड़ोस के साथ-साथ मुस्लिम जगत में भी सही संकेत जाएं, खास तौर पर ऐसे में जब कि ‘नेबरहुड फस्र्ट’ मोदी सरकार की प्राथमिकता रही है.

बांग्लादेश में शेख हसीना की वापसी और भारत में मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में अपनाई गई नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी यानी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध रखने की नीति ने संबंध सुधारे हैं. ऐतिहासिक  भारत-बांग्लादेश करार प्रगाढ़ संबंधों की एक मिसाल है. लेकिन यह भी सच है कि इस कानून और प्रस्तावित एनआरसी और उससे पहले असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरसी के पायलट प्रोजेक्ट की छाया दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ी है.

विदेश नीति के एक विशेषज्ञ के अनुसार दरअसल तस्वीर के इस पहलू पर भी गौर करना होगा कि इस सब से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे उदारवादियों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा हो जाएगी. क्योंकि अगर भारत में धार्मिक आधार पर नागरिकता का फैसला होने लगा तो फिर बांग्लादेश में जमाते इस्लामी जैसे संगठनों को ऐसी ही मांग उठाने का मौका मिल जाएगा.

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