शोभना जैन का ब्लॉगः संसद में महिलाओं के चयन से आइसलैंड ने पेश की मिसाल

By शोभना जैन | Published: October 2, 2021 02:01 PM2021-10-02T14:01:45+5:302021-10-02T14:07:30+5:30

उत्तर-पश्चिमी आइसलैंड में मतगणना को लेकर पिछले सप्ताह बहस चलती रही जिसके बाद गत रविवार को पुनर्मतदान कराया गया जिसमें नवनिर्वाचित घोषित पांच महिला उम्मीदवारों की विजय को सही नहीं माना गया।

Shobhana Jain blog Iceland set an example in the selection of women in parliament | शोभना जैन का ब्लॉगः संसद में महिलाओं के चयन से आइसलैंड ने पेश की मिसाल

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Highlights भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी आबादी के अनुपात में बेहद कम है12 सितंबर 1996 को संसद में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक पेश हुआ था

पिछले दिनों जर्मनी और कनाडा के चुनावों में हुए फेरबदल ने दुनियाभर को भले ही एक अलग संदेश दिया हो लेकिन लैंगिक समानता के लिए अपनी एक अलग पहचान बना चुका उत्तरी अटलांटिक का छोटा सा राष्ट्र आइसलैंड यूरोपीय देशों की किसी संसद में महिलाओं का पूर्ण बहुमत होने का नया इतिहास रचने से बस जरा सा ही चूक गया। फिर भी चुनावी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से उसने दुनियाभर में एक मिसाल कायम की है।

हालांकि वहां के आम चुनाव की पहले की मतगणना में लग रहा था कि उसकी महिला उम्मीदवारों ने यूरोप के किसी देश की संसद में पूर्ण बहुमत पाकर नया इतिहास रच दिया है और इस विजय को लेकर जश्न भी शुरू हो गया था, लेकिन पुनर्मतगणना में स्थिति बदल गई और आइसलैंड में महिलाओं के बहुमत वाली यूरोप की पहली संसद के बनने में जरा सी दूरी आ गई। बहरहाल, आइसलैंड दुनिया भर के लिए एक मिसाल तो बना ही है। भारत जैसे देश में ‘आधी आबादी’ को बराबरी दिए जाने की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन राजनीतिक दल बहुत कम महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारते हैं। अगर महिला आरक्षण की बात करें तो संसद/ विधानमंडलों में महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण का विधेयक पिछले 25 वर्षो से ठंडे बस्तें में पड़ा हुआ है। ऐसे हालात में आइसलैंड की मिसाल संसद/ विधान मंडलों में महिलाओं की हिस्सेदारी की सोच को बढ़ावा देगी, यह उम्मीद तो रखी ही जा सकती है।

उत्तर-पश्चिमी आइसलैंड में मतगणना को लेकर पिछले सप्ताह बहस चलती रही जिसके बाद गत रविवार को पुनर्मतदान कराया गया जिसमें नवनिर्वाचित घोषित पांच महिला उम्मीदवारों की विजय को सही नहीं माना गया। मतगणना संपन्न होने पर आइसलैंड की 63 सदस्यीय संसद ‘अल्थिंग’ में 30 सीटों पर महिला उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की। प्रधानमंत्री कैटरीन जेकब्सडाटिर के नेतृत्व वाली निवर्तमान गठबंधन सरकार के तीनों दलों के गठबंधन को पिछले चुनाव की तुलना में दो सीटें अधिक मिली हैं और उनके सत्ता में बने रहने की संभावना है। दरअसल, शुरुआत में ऐसा पाया गया कि महिला उम्मीदवारों को 63 सदस्यीय संसद में से 33 स्थान मिले यानी 52 प्रतिशत मत, लेकिन पुनर्मतगणना में यह संख्या 47।6 प्रतिशत आई। यूरोपीय देशों में स्वीडन ही एक ऐसा अकेला देश है, जहां की संसद में 47 प्रतिशत महिला उम्मीदवार हैं।

गौतलब है कि आइसलैंड की संसद में महिला आरक्षण नहीं है, लेकिन कुछ राजनैतिक दलों ने स्वयं ही महिला उम्मीदवारों का न्यूनतम कोटा तय कर रखा है। दरअसल वहां पिछले एक दशक से वामपंथी दलों द्वारा लागू लैंगिक कोटा आइसलैंड की राजनीति में नया मानदंड कायम करने में खासा सफल रहा है। वहां संसद में महिलाओं के लिए भले ही आरक्षण नहीं है लेकिन राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन करते समय लैंगिक समानता की उपेक्षा नहीं कर पाते हैं।

संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के पैमाने पर भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। भारत में पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, कुल सांसदों में से 14 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय औसत करीब 22 प्रतिशत का है।

पूरी दुनिया को लैंगिक समानता को लेकर रास्ता दिखा रहे आइसलैंड ने महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए कई पहल की है। 1980 में आइसलैंड ने एक महिला को राष्ट्रपति चुनकर इतिहास बनाया था। विगदिस फिनोबोगाडोटिर पूरी दुनिया में राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने वाली पहली महिला बनीं, उससे काफी पहले 1961 में आइसलैंड ने पुरुषों और महिलाओं को बराबर वेतन का कानून पास किया। वहां महिलाओं और पुरुषों, दोनों को पैरेंटल लीव मिलती है। मार्च में जारी वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि लैंगिक समानता के लिहाज से लगातार 12वें साल आइसलैंड सबसे आगे रहा है।

 भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी आबादी के अनुपात में बेहद कम है। 12 सितंबर 1996 को संसद में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक पेश हुआ था। चार बार इस विधेयक को संसद में रखा गया, मगर कभी लोकसभा तो कभी राज्यसभा में बिल फंसा रह गया। वैसे एक राहत की बात यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर भले ही विधायिका में महिलाओं के लिए आरक्षण न हो, मगर कम से कम 20 राज्यों ने पंचायत स्तर पर महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। आइसलैंड तो शायद अगले चुनाव में महिलाओं के पूर्ण बहुमत वाली संसद चुनकर नया इतिहास रच ले लेकिन देखना होगा कि हम आधी आबादी के चुनावी राजनीति में बराबरी से चुनाव लड़ने के लिए माहौल कब बना पाते हैं।

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