शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: अक्षय ऊर्जा के प्रयोग से ही थमेगा जलवायु परिवर्तन
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 14, 2020 01:57 PM2020-12-14T13:57:34+5:302020-12-14T14:00:06+5:30
ग्रामीण जरूरतें जैसे पानी गर्म करने, खाना बनाने और कुछ छोटे शहरों में उद्योगों के लिए बिजली मुहैया कराने में सौर ऊर्जा की उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है. इसके लिए सोलर वॉल्टेक पॉवर की आवश्यकता होती है, इसे भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के मुताबिक ढाला जा सकता है.
पिछले दिनों 15वें जी-20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से बंद दरवाजों के पीछे रहकर नहीं बल्कि एकीकृत, व्यापक और समग्र तरीके से लड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, विकासशील देशों को विस्तृत तकनीकी सहयोग और वित्तीय मदद उपलब्ध कराकर ही विश्व तेजी से तरक्की कर सकता है.
‘सेफगार्डिग द प्लैनेट’ विषय पर जी-20 साइड इवेंट को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत न केवल अपने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा कर रहा है, बल्कि उनसे आगे भी निकल रहा है. पर्यावरण के साथ मिलकर सौहाद्र्र के साथ रहने के हमारे पारंपरिक लोकाचार से प्रेरित होकर ही भारत ने लो कार्बन और क्लाइमेट रिजीलिएंट विकास प्रणालियों को अपनाया है.
देश में अर्थव्यवस्था का विस्तार हो रहा है और आबादी दिनोंदिन बढ़ रही है जबकि ऊर्जा खपत और ऊर्जा उत्पादन के बीच एक बड़ा अंतर है जिसे भरने की जरूरत है. सस्ती व सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश की तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है. किसी भी देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कुप्रभाव न पड़े और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन.
इस तरह की ऊर्जा नीति अनेक वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पानी के छोटे बांध, गोबर गैस इत्यादि.
भारत में इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं और अक्षय ऊर्जा के तरीके ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने के भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हें बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है, जिससे देश में ऊर्जा के क्षेत्न में बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सके. हमें न केवल अक्षय ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरूरत पूरी हो सके.
इन्हीं प्रयासों के तहत प्रधानमंत्नी मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि देश 30 से 35 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है. साथ ही इस दशक में प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल को चार गुना बढ़ाने और अगले पांच साल में तेल शोधन क्षमता दोगुना करने का प्रयास चल रहा है.
अपने देश में बहुतायत से उपलब्ध वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन जैसे पवन, सौर, लघु जल, बायोमास और अपशिष्ट ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने में अपनी वृहद भूमिका निभा सकते हैं. भारत के समुद्री तट पर पवन चक्कियां लगाकर पवन ऊर्जा उत्पादित हो सकती है. इसके लिए ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, केरल आदि शहरों में काफी संभावनाएं हैं. यहां पवन चक्कियां लगाना पारंपरिक संसाधनों पर खर्च की तुलना में काफी सस्ता पड़ेगा.
ग्रामीण जरूरतें जैसे पानी गर्म करने, खाना बनाने और कुछ छोटे शहरों में उद्योगों के लिए बिजली मुहैया कराने में सौर ऊर्जा की उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है. इसके लिए सोलर वॉल्टेक पॉवर की आवश्यकता होती है, इसे भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के मुताबिक ढाला जा सकता है.
अभी देश के कई शहरों में ताप ऊर्जा के रूप में उच्च तापमान संग्राहक, दर्पण, लेंस और वाष्प टर्बाइन का काम चल रहा है जो भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को काफी हद तक पूरी करने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे.