शरद जोशी का कॉलम: सीमा रेखाएं और बनते-टूटते घर

By शरद जोशी | Published: August 3, 2019 03:22 PM2019-08-03T15:22:41+5:302019-08-03T15:22:41+5:30

लक्ष्मण रेखा खींची गई थी तो पार करने में भस्म हो जाने का डर था. यही सीमा का भय है. इसे पार करना सीता का काम है. आजकल सत्याग्रहियों का और स्मगलरों का. सीमा सदैव लड़ाई उपजाती है. जहां सीमाएं मिलती हैं, वहीं युद्ध के अंकुर हैं. उन्हें कुचलने के लिए भारी जूतों की आवश्यकता होती है.

Sharad Joshi blog on India and its Borders | शरद जोशी का कॉलम: सीमा रेखाएं और बनते-टूटते घर

शरद जोशी। (फाइल फोटो)

‘घर टूटे, घर बने’ एक दूसरे लेखक का दिया शीर्षक है. पर अब मैंने इसे अपना मौलिक बना लिया है, कृपया भविष्य में मेरी ही देन मानें.

सीमा की रेखाएं सदैव अदृश्य होती हैं. कागज पर खींची जाती हैं तो धरती पर असर करती हैं. उसे पार करने में नया साहस चोरी करने जैसा आनंद आता है.

लक्ष्मण रेखा खींची गई थी तो पार करने में भस्म हो जाने का डर था. यही सीमा का भय है. इसे पार करना सीता का काम है. आजकल सत्याग्रहियों का और स्मगलरों का.

सीमा सदैव लड़ाई उपजाती है. जहां सीमाएं मिलती हैं, वहीं युद्ध के अंकुर हैं. उन्हें कुचलने के लिए भारी जूतों की आवश्यकता होती है.

हिंद-पाक सीमा पर लड़ाई को बार-बार ठंडी करना ही विदेशी नीति है. हिंद-गोवा की सीमा आकर्षक बन रही है. हिंद-बर्मा की सीमा पर आंदोलन चला, नया राज बनाने के अमेरिकी यत्न हो रहे हैं.

अत: जहां सीमा है, वहीं कुछ ऐसा है जो सीमा के अंदर नहीं है अर्थात लड़ाई, शंकाएं, संघर्ष वगैरह. वह चाहे कहीं भी हो-कोरिया की 38वीं रेखा, हिंद-चीन कहीं भी.

भारत में भी यह अदृश्य रेखाएं पोंछ-पोंछकर अब नई बनाई जा रही हैं. राज पुनर्गठन आयोग अपना बंद लिफाफा खोल देनेवाला है.

मध्यभारत वालों को भी राम जाने कहीं जाना पड़े- अजमेर, जयपुर, बंबई, जबलपुर या यहीं - पता नहीं.

यों हाल तो कई बार ऐसे रहे हैं कि अपने ही घर में हमें पराये बनकर रहना पड़ा और अब अगर पार्टीशन टूट गए व पड़ोसी से संबंध जोड़ना पड़ा तो क्या बुरा है.

प्रेम क्या है? रहते-रहते सब हो जाता है. आर्य-अनार्य कैसे मिक्सचर कम्पाउंड हो गए कि आज शुद्ध घी हाथ ही नहीं आता, तो यह तो प्रांत है. समझो, राजस्थान में मिले तो मालवी राजस्थानी की बड़ी जमेगी. एक से मिलेंगे. रेगिस्तान हरे-भरे का अधिक सम्मान करेगा. उनमें शौर्य अधिक है पर व्यय हमारे साथ रहकर संतुलन हो सकेगा.

और अगर बम्बई में मिले तो क्या बात है? सोने में सुहागा. सारे अभिनेता-अभिनेत्री अपने प्रांत के हो जाएंगे, समुद्र हमें मिल जाएगा. गंभीर क्षिप्रा सहित. और यों ही इंदौर बम्बई का बच्चा है. इतने दिनों यह बच्चा अपने बाप से दूर था, दूसरे के घर था, अब बाप के पास आ जाएगा.

सीमा की चिंता व्यर्थ है. हम तो देश को मानते हैं, दूसरे देश में मर जाएं पर नहीं मिलेंगे. जहां तक प्रांत-रचना का सवाल है जो हो, वही ठीक है. सीमा की लड़ाई मूर्खता है. 
(रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Sharad Joshi blog on India and its Borders

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