शरद जोशी का ब्लॉग: तंदुरुस्ती के साथ मनदुरुस्ती जरूरी

By शरद जोशी | Published: January 4, 2020 09:29 AM2020-01-04T09:29:53+5:302020-01-04T09:29:53+5:30

अमेरिका में हल्के दुबले होने का आंदोलन चल रहा है. संचार में सिनेमा ज्यादा हैं और अखाड़े कम. अभिनेत्री और अभिनेता बनने के इच्छुक ज्यादा हैं और पहलवान व चेले कम. और इस युग में जो ज्यादा है, वही सत्य है. जो कम है, वह असत्य है.

Sharad Joshi blog: Mindfulness is essential with fitness | शरद जोशी का ब्लॉग: तंदुरुस्ती के साथ मनदुरुस्ती जरूरी

अपने जमाने के मशहूर लेखक और व्यंग्यकार शरद जोशी। (फाइल फोटो)

पहलवानी में कुछ नुमाइशी छिपी ही रहती है. जैसे प्राचीन काल की अनगढ़ मूर्ति को आसपास से देखकर समझना पड़ता है, ठीक वैसे पहलवान के भी आसपास घूमकर निरखा जाता है. पहलवान चाहता भी यही है.

अभिनेत्रियों की तस्वीर की ओर जैसे कई बार आंखें थामे नहीं थमती हैं, ठीक वैसे ही पहलवान को देख मन में हीन भाव जगता है. सुंदर से फूल और गोल-मटोल पत्थर, दोनों के अपने-अपने आकर्षण हैं.

अमेरिका में हल्के दुबले होने का आंदोलन चल रहा है. संचार में सिनेमा ज्यादा हैं और अखाड़े कम. अभिनेत्री और अभिनेता बनने के इच्छुक ज्यादा हैं और पहलवान व चेले कम. और इस युग में जो ज्यादा है, वही सत्य है. जो कम है, वह असत्य है.

स्वस्थ शरीर अपने-आप में कोई उद्देश्य नहीं. वह किसी उद्देश्य की प्राप्ति का मार्ग है. वह साधन है, साध्य नहीं. और साध्य के पाते ही साधन क्षीण होता है. स्वस्थ न होने का कारण चिंता माना गया है. ‘वीर अभिमन्यु’ नाटक में युधिष्ठिर कहते हैं- ‘हां, चिता तो मुर्दे को जलाती है और चिंता जीवित को जलाती है.’

कइयों को स्वास्थ्य की ही चिंता रहती है. बताइए, कैसा विरोध है, इसी फिक्र में दुबले हैं कि और मोटे नहीं हुए! कहा  गया है कि तन और दिमाग दोनों में बैलेंस यानी संतुलन चाहिए. एक को पाने में दूसरा हाथ से जाता है. तंदुरुस्त अंगूठाछाप सारे देश की समस्या है. जनतंत्र उनका दिमाग दुरुस्त करने की सोच रहा है.

आदमी का दिमाग किस दिशा में प्राचीनकाल से आज तक चलता आया. सोमरस, भंग, गांजा, अफीम, सुल्फा, चिलम, सिगरेट आदि कई चीजें निकलीं और पेंसिलिन जैसी चीज सिर्फ एक! फिर तन की शुद्धि अथवा सौंदर्य के लिए तो कई साबुन-स्नो आदि हैं, मन की शुद्धि के लिए गांधी और विनोबा को छोड़ किसी का पता नहीं.

तन-मन में संतुलन है तो आप ही राम हैं पर बिना धन के संतुलन के दोनों की बात नहीं जमती. लोग सहज सोचते हैं, क्या फायदा पढ़-पढ़ किताबी विद्वान होने से. दंड-बैठक लगाकर पहलवान ही बना जाए. समाज पर धाक रहेगी. सिनेमा में टिकट जल्दी मिलेगा.

फिर भी रास्ता है पहलवान से पंडित होने के लिए- ढाई अक्षरों का ख्याल रखिए. गुरुकुल में आदमी ढाई अक्षर पढ़कर पंडित व ब्रह्मचारी बन जाता था.

तंदुरुस्ती से मनदुरुस्ती अधिक आवश्यक है. मनदुरुस्ती से तन तो दुरुस्त रहता है ही, पर यदि केवल तंदुरुस्ती रही तो कब किसे देख मैल आ जाए, क्या कहें!
(रचनाकाल - 1950 का दशक)
 

Web Title: Sharad Joshi blog: Mindfulness is essential with fitness

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