राज कुमार सिंह का ब्लॉग: भाजपा पर कांग्रेसी संस्कृति का साया!

By राजकुमार सिंह | Updated: July 29, 2024 10:15 IST2024-07-29T10:13:45+5:302024-07-29T10:15:11+5:30

छत्तीसगढ़ में भी ‘भूपेश बघेल बनाम टीएस सिंहदेव’ कांग्रेस को ले डूबा. मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध छेड़ी गई जंग पहले सरकार को ले डूबी और फिर पार्टी को भी.

Shadow of Congress culture on BJP | राज कुमार सिंह का ब्लॉग: भाजपा पर कांग्रेसी संस्कृति का साया!

राज कुमार सिंह का ब्लॉग: भाजपा पर कांग्रेसी संस्कृति का साया!

Highlightsउत्तर प्रदेश भाजपा में मचा घमासान कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति की याद दिलाता है.आजादी के बाद का कुछ समय छोड़ दें तो राज्य-दर-राज्य कांग्रेस गुटबाजी की शिकार रही.2014 में भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीतीं तो 2019 में 62, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन ने उसे 33 पर समेट दिया. 

उत्तर प्रदेश भाजपा में मचा घमासान कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति की याद दिलाता है. आजादी के बाद का कुछ समय छोड़ दें तो राज्य-दर-राज्य कांग्रेस गुटबाजी की शिकार रही. 2014 के बाद कांग्रेस की ऐतिहासिक दुर्गति के दौर में भी ये दृश्य नजर आए. राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता से बेदखली में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की जंग की बड़ी भूमिका रही. 

छत्तीसगढ़ में भी ‘भूपेश बघेल बनाम टीएस सिंहदेव’ कांग्रेस को ले डूबा. मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी द्वारा ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध छेड़ी गई जंग पहले सरकार को ले डूबी और फिर पार्टी को भी. हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना की चुनावी सफलता का संकेत है कि कांग्रेस आलाकमान ने गलतियों से सबक सीखा है, लेकिन अब उसी बीमारी से भाजपा ग्रस्त नजर आ रही है.

अलग तरह की राजनीतिक संस्कृति तथा चाल, चेहरा और चरित्र बदलने का वायदा करनेवाली भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर भी तमाम तरह के कांग्रेसियों को ही गले लगा लिया. 

राजनीतिक जंग में सबकुछ जायज करार देते हुए भाजपाई रणनीतिकार इसे पार्टी के विस्तार की रणनीति बताते रहे हैं, लेकिन 18वीं लोकसभा के चुनाव में लगे झटके के बाद राज्य-दर-राज्य मुखर अंतर्कलह से लगता है कि पार्टी ने अनुशासन को तिलांजलि देकर कांग्रेस की अंतर्कलह की संस्कृति को अपना लिया है.

पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीत लेने से उत्साहित भाजपा ने इस बार 370 का नारा दिया था, लेकिन सिमट गई 240 पर. खैरियत रही कि चुनाव से पहले राजग में लौट आए तेदेपा और जदयू जैसे सहयोगियों की बदौलत बहुमत का आंकड़ा मिल गया, वरना हैट्रिक का सपना चूर हो जाता. इस चुनावी सदमे की समीक्षा होनी ही चाहिए लेकिन उस प्रक्रिया में जिस तरह अंतर्कलह मुखर हो रहा है, वह कई सवाल उठाते हुए आशंकाओं को भी जन्म दे रहा है. 

भाजपा की सीटें तो महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान सहित कई राज्यों में घटीं, पर सबसे बड़ा झटका उसे उत्तर प्रदेश में लगा. उत्तर प्रदेश भाजपा का सबसे बड़ा शक्ति स्रोत भी रहा है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा अपने दम पर बहुमत उत्तर प्रदेश की बदौलत ही पा सकी थी. 2014 में भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीतीं तो 2019 में 62, लेकिन इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन ने उसे 33 पर समेट दिया. 

भाजपा बहुमत के आंकड़े 272 से 32 सीटें पीछे छूट गई और अकेले उत्तर प्रदेश में उसकी 29 सीटें कम हुईं. यह भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के महत्व और गंभीरता, दोनों का संकेतक है, लेकिन चुनावी समीक्षा से जिस तरह अंतर्कलह को हवा मिल रही है, उससे समाधान के बजाय संकट गहराएगा ही.

Web Title: Shadow of Congress culture on BJP

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