कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: रायबरेली में हुआ था दूसरा जलियांवाला बाग कांड

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 7, 2020 08:00 AM2020-01-07T08:00:34+5:302020-01-07T08:00:34+5:30

आंदोलन 1919 के अंतिम माह में प्रतापगढ़ के रूरे गांव से शुरू हुआ जिसने जल्दी ही रायबरेली में भी दस्तक दे दी. पांच जनवरी, 1921 को कोई तीन हजार किसानों ने चंदनिहा रियासत के बर्बर तालुकेदार त्रिभुवनबहादुर सिंह की कोठी घेर ली.

Second Jallianwala Bagh scandal took place in 1921 Raebareli munshiganj genocide | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: रायबरेली में हुआ था दूसरा जलियांवाला बाग कांड

प्रतीकात्मक तस्वीर

अवध में 1919-20 में शुरू हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन का यह शताब्दी वर्ष है. इस अवसर पर देश को सात जनवरी, 1921 को रायबरेली जिले के मुंशीगंज में तत्कालीन अंग्रेज सरकार द्वारा अंजाम दिए गए किसानों के संहार की याद दिलाना जरूरी है. इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में 1886 का कुख्यात अवध रेंट एक्ट था, जिसके तहत सूबे के बारह जिलों में जमींदारों व तालुकेदारों को किसानों को भूमि से बेदखल करने और मनमाना लगान बढ़ाने के अधिकार प्राप्त हो गए थे.

 इसके खिलाफ आंदोलन 1919 के अंतिम माह में प्रतापगढ़ के रूरे गांव से शुरू हुआ जिसने जल्दी ही रायबरेली में भी दस्तक दे दी. पांच जनवरी, 1921 को कोई तीन हजार किसानों ने चंदनिहा रियासत के बर्बर तालुकेदार त्रिभुवनबहादुर सिंह की कोठी घेर ली. उसने डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ को सूचना भिजवा दी कि वे वहां आगजनी व लूटपाट पर आमादा हैं. शेरिफ ने वहां पहुंचकर किसान नेताओं-बाबा जानकीदास, पंडित अमोल शर्मा व चंद्रपाल सिंह-को पकड़ लिया और आनन-फानन में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करवाकर एक-एक वर्ष की कैद की सजाएं सुनवा दीं. फिर उन्हें रातोरात लखनऊ जेल भिजवा दिया.

इसी बीच अफवाह फैल गई कि तालुकेदार त्रिभुवनबहादुर सिंह की एक चहेती ने पुलिस से मिलकर चंदनिहा में गिरफ्तार किए गए किसान नेताओं की हत्या करा दी है.  रायबरेली जेल पहुंचकर वस्तुस्थिति जानने की मुहिम के तहत सात जनवरी की सुबह किसानों के जत्थे सई नदी के उस पार से मुंशीगंज स्थित पुल के दक्षिणी किनारे पर पहुंचे तो देखा कि प्रशासन ने वहां सेना तैनात कर उनका रास्ता रोक दिया है. उनके जमावड़े से थोड़ी ही दूरी पर खुरेहटी के तालुकेदार और एमएलसी सरदार वीरपाल सिंह का महल था, जिसे अंदेशा था कि उग्र किसान जेल के साथ उसके महल पर भी धावा बोल सकते हैं. 

किसानों के गगनभेदी नारों से भयभीत होकर उसने गोलियां चलानी शुरू कीं तो  पुलिस ने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया. जब तक उन्हें अपनी गलती मालूम होती, दस मिनट गुजर गए और अनेक किसानों की लाशें बिछ गईं. हालात बेकाबू न हो जाएं, इस डर से प्रशासनिक अमला अनेक किसानों की लाशें फौजी वाहनों से डलमऊ ले गया और गंगा में फेंक आया. कारण यह कि सई नदी में उन्हें छिपाने भर को पानी ही नहीं था. जो लाशें नहीं ले जाई जा सकीं, उन्हें चार बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर वहीं दबा दिया गया. इस नरसंहार में शहीद व घायल हुए किसानों की सही संख्या का आज तक पता नहीं लगा है. गणोश शंकर विद्यार्थी ने अपने ऐतिहासिक पत्न ‘प्रताप’ में अग्रलेख लिख इस किसान संहार को ‘एक और जलियांवाला’ की संज्ञा दी थी.

Web Title: Second Jallianwala Bagh scandal took place in 1921 Raebareli munshiganj genocide

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