Savitribai Phule Jayanti: नवजागरण की अप्रतिम योद्धा सावित्रीबाई फुले, पहली पाठशाला शुरू की, नारी मुक्ति आंदोलन की अग्रणी कार्यकर्ता
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 3, 2024 12:33 PM2024-01-03T12:33:07+5:302024-01-03T12:34:42+5:30
Savitribai Phule Jayanti: 1848 में पुणे की भिड़ेवाड़ी में पति एवं प्रेरणास्रोत महात्मा ज्योतिबा फुले के सहयोग से उन्होंने बालिकाओं के लिए भारत में पहली पाठशाला प्रारंभ की.
Savitribai Phule Jayanti: भारतीय स्वत्वबोध एवं नवजागरण की अप्रतिम योद्धा सावित्रीबाई फुले का जन्म आज ही के दिन 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सातारा जिले के नायगांव में हुआ था. सन् 1848 में पुणे की भिड़ेवाड़ी में पति एवं प्रेरणास्रोत महात्मा ज्योतिबा फुले के सहयोग से उन्होंने बालिकाओं के लिए भारत में पहली पाठशाला प्रारंभ की.
सावित्रीबाई फुले भारत की पहली शिक्षिका ही नहीं, अपितु नारी मुक्ति आंदोलन की अग्रणी कार्यकर्ता भी हैं. उन्होंने पुणे की विधवा एवं वंचित स्त्रियों के आर्थिक सुदृढ़ीकरण के लिए सन् 1892 में देश का पहला महिला संगठन भी बनाया. सावित्रीबाई फुले का बहुआयामी एवं विशिष्ट साहित्य जनधर्मी संघर्षों का जीवंत दस्तावेज है.
शिक्षा जैसे सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं का प्रवेश वस्तुतः उनके द्वारा किए गए समतामूलक संघर्षों का ही ऐतिहासिक प्रतिफल है. उन्होंने 19वीं सदी के भारतीय समाज में व्याप्त सभी प्रकार की गैर-बराबरी को बढ़ावा देने वाली सत्ता-संरचनाओं को ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना में सहयोगी बनकर चुनौती देने का सफल प्रयास किया.
इसके लिए उन्होंने शिक्षा को एक परिवर्तनकारी साधन के रूप में अंगीकार किया. पिछले दिनों आयरलैंड और जर्मनी के दो गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2023 जारी किया गया, जिसमें भूख की गंभीरता के पैमाने पर 28.7 स्कोर के साथ दुनिया के 125 देशों में भारत को 111 वां स्थान प्राप्त हुआ है.
वस्तुत: यह स्थिति पांच वर्ष तक के बच्चों में अल्पपोषण, कुपोषण और मृत्यु के लिए जिम्मेदार है. कहना न होगा कि लैंगिक असमानता की सामाजिक मनोवृत्ति से यह परिदृश्य बालिकाओं के संदर्भ में और अधिक भयावह स्वरूप ले लेता है, जिसके कारण बालिकाओं की शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित होती है.
प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक लड़कियों को कई प्रकार की वंचनाओं से जूझना होता है. सावित्रीबाई फुले के दौर में बालिकाओं को इस उम्मीद से विद्यालय पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा था कि शायद शिक्षा के माध्यम से इनके हालात बेहतर होंगे. लेकिन 21वीं सदी का एक चतुर्थांश बीत जाने के बाद भी हम लड़कियों के शिक्षा में बने रहने और सुरक्षा देने को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं.
अस्वास्थ्यकर परिवेश में गुजारा करती हुई कुपोषित बालिकाओं से बेहतर करने की उम्मीद एक तरह से सामाजिक-मानसिक हिंसा ही है. सावित्रीबाई फुले को उनके जन्मदिवस पर याद करने का अवसर हमें इन चुनौतियों को समझने, जूझने और इनके निराकरण के लिए सामाजिक बदलाव और हस्तक्षेप करने का पाथेय प्रदान करता है. ऐसा करके ही हम उनके अवदान के साथ न्याय कर सकेंगे.