सारंग थत्ते का ब्लॉग: सेना प्रमुख क्यों भेजे जाते हैं उच्चायुक्त पद पर?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 28, 2019 12:19 PM2019-04-28T12:19:30+5:302019-04-28T12:19:30+5:30

इतिहास गवाह है कि हमारे कई सेना प्रमुख एवं वरिष्ठ सेनानी विदेशों में भारतीय उच्चायुक्त में रहकर देश को गौरवान्वित करते रहे हैं. कुछ को यह मौका एक से ज्यादा बार भी नसीब हुआ है.

Sarang Thatte blog: Why are Army Chief sent to High Commissioner? | सारंग थत्ते का ब्लॉग: सेना प्रमुख क्यों भेजे जाते हैं उच्चायुक्त पद पर?

सारंग थत्ते का ब्लॉग: सेना प्रमुख क्यों भेजे जाते हैं उच्चायुक्त पद पर?

इसी सप्ताह सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया और पूर्व सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग को रिपब्लिक ऑफ सेशेल्स में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया है. जनरल दलबीर ने सेना प्रमुख का ओहदा 31 जुलाई 2014 को ग्रहण किया था और 31 दिसंबर 2016 को सेवानिवृत्त हुए थे. कुछ समय से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि जनरल दलबीर हरियाणा से राजनीति में कदम रखेंगे. आम धारणा है कि सेना प्रमुख के पद से निवृत्त होने के बाद उन्हें गवर्नर या उच्चायुक्त के पद पर भेजा जाता है. 

इतिहास गवाह है कि हमारे कई सेना प्रमुख एवं वरिष्ठ सेनानी विदेशों में भारतीय उच्चायुक्त में रहकर देश को गौरवान्वित करते रहे हैं. कुछ को यह मौका एक से ज्यादा बार भी नसीब हुआ है. फील्ड मार्शल करिअप्पा को ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड, जनरल पीएन थापर - अफगानिस्तान, जनरल जेएन चौधरी - कनाडा, जनरल जेजे बेउर - डेनमार्क, जनरल टी एन रैना - कनाडा, एयर मार्शल अस्पी इंजीनियर - ईरान, मार्शल ऑफ इंडियन एयर फोर्स अर्जुन सिंह - स्विट्जरलैंड और केन्या, एयर चीफ मार्शल इदरीस लतीफ - फ्रांस, एयर चीफ मार्शल दिलबाग सिंह - ब्राजील एवं एडमिरल कटारी को बर्मा में उच्चायुक्त बनाकर भेजा गया था.  यह जरूर कहा जा सकता है कि सभी को यह सौभाग्य नसीब नहीं हुआ है तथा कहीं न कहीं सरकार के साथ करीबी और अपने फौजी जीवन के अंतिम हिस्से में किए गए कार्य को पहचान देने के लिए तत्कालीन सरकार की सहमति बेहद जरूरी थी. 

सेना प्रमुख रहते हुए अपने कार्यकाल में सरकारी महकमे और विदेश दौरों में देशों के प्रमुखों के साथ मेल-मिलाप का मौका कुछ को नसीब भी होता रहा है. सेना की वर्दी में जो आत्मविश्वास, कार्य करने की लगन, देश प्रेम का जज्बा और अनुशासन, सलीका और वरिष्ठ सरकारी व्यवस्था से मिलाप तथा बातचीत के तरीकों की जानकारी मिलती है, उसकी वजह से भी उन्हें  उच्चायुक्त के पद पर नियुक्ति दी जाती है. वहीं देश की सामरिक और राजनीतिक ऊहापोह का ज्ञान जुटाने में सेनानियों को भारत सरकार की बात दूसरे देश के सामने रखने में आसानी होती है. भारत सरकार के नामजद नुमाइंदे होने की वजह से हमारे राजनयिक और उच्चायुक्त की हैसियत से वे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसीलिए इनका चुनाव संजीदगी से किया जाता रहा है. आम तौर पर विदेश सेवा के अधिकारी उच्चायुक्त का पदभार संभालते हैं.  
जनरल सुहाग को 5 गोरखा राइफल्स में 16 जून 1974 को कमीशन मिला था. सेना के कई अधिकारी इस बात से नाखुश हैं कि सेना में 42 वर्ष से ज्यादा सर्विस के बाद सेना प्रमुखों को इस तरह से उच्चायुक्त नियुक्त करना उनके ओहदे और सम्मान को नीचा करना है. एक उच्चायुक्त की हैसियत से अब जनरल दलबीर विदेश विभाग में अपर सचिव (जो पूर्व सेना प्रमुख के सेवा काल से कम सर्विस लिए हुए हैं) को अपनी रिपोर्ट भेजते रहेंगे. आदेश की श्रृंखला में कोई बदलाव पहले भी नहीं रहा है और भविष्य में भी नहीं रहेगा. कहीं न कहीं यह व्यक्ति विशेष के मन को छू जाता है कि वह अपने से जूनियर के अधीन कार्यरत है.

सेशेल्स में जनरल दलबीर को भेजे जाने के पीछे एक रणनीतिक कारण भी है. भारत सरकार ने सेशेल्स की सरकार के साथ पिछले कुछ वर्षो में बेहतर संबंध बनाए हैं. पूर्वी अफ्रीका से सटा हुआ यह द्वीपों का समूह है. भारतीय रक्षा मंत्नालय ने यहां पर एक नौसेना बेस बनाने की योजना की सोच को आगे बढ़ाया है. इस संदर्भ में दोनों देशों के बीच एक समझौता 2015 में किया गया है. 12 मार्च 2015 को प्रधानमंत्नी मोदी ने सेशेल्स में एक रडार संयत्न की आधारशिला रखी थी. यह रडार भारतीय सहयोग से स्थापित किए गए हैं. मार्च 2016 में इस रडार सिस्टम को कार्यान्वित किया गया था, जिससे सेशेल्स को अपने आसपास के समुद्र 1.3 मिलियन वर्ग किमी के इलाके की चौकसी करने में मदद मिली है. विशिष्ट आर्थिक क्षेत्न में मौजूद 115 छोटे बड़े द्वीपों पर आने-जाने वाले समुद्री जहाजों पर निगरानी रखी जा सकेगी. कुल छह रडार लगाए गए हैं जिसमे से एक रडार एजम्पशन द्वीप पर भी मौजूद है. इसकी निगरानी मुख्य द्वीप माहे से की जाती है. 

एजम्पशन द्वीप पर फिलहाल न के बराबर आबादी है, लगभग सात किमी लंबे इस द्वीप की सबसे ऊंचाई वाली जगह महज 100 फुट ऊंची पहाड़ी है. लेकिन इस दुर्गम द्वीप की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह दोनों देशों के बीच एक नया सेतु बनाने की क्षमता रखता है. एक बात ध्यान देने वाली है, सेशेल्स से भारत की दूरी 2357 मील है और यहां विमान से पहुंचने में लगभग 4 घंटे से ज्यादा समय लगेगा. नौसेना के पोत को पहुंचने में कम से कम चार दिन लगेंगे. एजम्पशन द्वीप के हमारे नौसेना बेस को स्वयंभू बनाने पर जोर देना होगा. हमारी नौसेना की जरूरतों को देखते हुए सब कुछ आगे तक पहुंचाना होगा. एजम्पशन द्वीप मुख्य सेशेल्स से दक्षिण पश्चिम में 1135 किमी दूर है. इसलिए हमारी अपनी जरूरतों को हमें एजम्पशन द्वीप पर ही संग्रहित करना होगा. जानकारी के अनुसार सेशेल्स अब इस प्रोजेक्ट से पीछे हटने की बात कह रहा है. क्या यह माना जाए कि जनरल दलबीर इस रणनीतिक ऊहापोह के दलदल से भारत सरकार के नए बेस को उबार सकेंगे? 

Web Title: Sarang Thatte blog: Why are Army Chief sent to High Commissioner?

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