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आरसीईपी को लेकर भारत की आशंकाएं, शोभना जैन का ब्लॉग 

By शोभना जैन | Updated: November 21, 2020 17:21 IST

भारत ने अपने हितों, खास तौर पर चीन द्वारा भारतीय बाजारों को अपने सस्ते सामान से पाट देने की आयात नीति से उत्पन्न सरोकारों, चिंताओं को दृष्टिगत रखते हुए रीजनल काम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने के पिछले वर्ष के अपने फैसले को यथावत रखा है.

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ठळक मुद्दे ‘क्षेत्नीय व्यापक सहयोग साझीदारी’ आरसीईपी हो  ही गया लेकिन भारत इस समझौते से दूर रहा. आखिर क्यों?भारत दुनिया से मुंह नहीं मोड़ रहा है बल्कि अपने को मजबूत कर रहा है. भारत व्यापारिक राष्ट्रीय शक्ति के नियम बनाने का फैसला कर सके और उन्हें मजबूत कर सके.

‘आरसीईपी’ यानी दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता. चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड सहित दस ‘आसियान’ देशों के बीच वर्षों तक चले गहन विचार-विमर्श के बाद आखिर इस सप्ताह ‘क्षेत्नीय व्यापक सहयोग साझीदारी’ आरसीईपी हो  ही गया लेकिन भारत इस समझौते से दूर रहा. आखिर क्यों?

निश्चित तौर पर यह एक बड़ा व्यापारिक समझौता है. ये पंद्रह देश दुनिया की लगभग 30 प्रतिशत जीडीपी वाले देश हैं, दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी और कुल 26 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले 15 एशिया पैसिफिक देश. भारत ने अपने हितों, खास तौर पर चीन द्वारा भारतीय बाजारों को अपने सस्ते सामान से पाट देने की आयात नीति से उत्पन्न सरोकारों, चिंताओं को दृष्टिगत रखते हुए रीजनल काम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने के पिछले वर्ष के अपने फैसले को यथावत रखा है.

पिछले कुछ माह से चीन जिस तरह से भारतीय सीमा पर निरंतर आक्रामक गतिविधियां कर रहा है, यह गंभीर सामरिक चुनौती भी इस व्यापारिक समझौते में शामिल नहीं होने के भारत के पूर्व फैसले पर दृढ़ता से बने रहने में अहम रही. संभवत: इस तरह की व्यापारिक व्यवस्थाओं से असहमति जताते हुए विदेश मंत्नी एस. जयशंकर ने इस समझौते के फौरन बाद इसी सप्ताह कहा कि भारत ने आत्मनिर्भरता की नीति के तहत इस व्यापारिक व्यवस्था से दूर रहने का निर्णय किया ताकि भारत व्यापारिक राष्ट्रीय शक्ति के नियम बनाने का फैसला कर सके और उन्हें मजबूत कर सके.

उनका कहना है कि भारत दुनिया से  मुंह नहीं मोड़ रहा है बल्कि अपने को मजबूत कर रहा है. वैसे इस समझौते के बाद सभी पंद्रह सदस्यीय व्यापारिक ब्लॉक ने भारत के सम्मुख न केवल समझौता वार्ता में शामिल होने का रास्ता अब भी खुला रखने का फैसला किया है बल्किवार्ता में दोबारा शामिल होने के लिए अठारह माह की समय सीमा भी समाप्त कर दी है. साथ ही पर्यवेक्षक का दर्जा दिए जाने की भी पेशकश की है ताकि अगर समझौते के बाद के घटनाक्रम को देखते हुए भारत  समझौता वार्ता में फिर से शामिल होना चाहे तो बातचीत के रास्ते खुले रहें.

इसके साथ ही एक अच्छी बात यह भी है कि अंतिम समझौते के प्रावधानों में भारत की अनेक संबद्ध चिंताओं पर भी ध्यान दिया गया है, साथ ही भारत द्वारा सुझाए गए कुछ समाधान और सावधानियों को भी समझौते  में शामिल करने का प्रयास किया गया है. निश्चित तौर पर भारत जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगा. लेकिन यह भी तय है कि ‘आत्मनिर्भरता’ के मंत्न के साथ आगे बढ़ते देश का ध्यान अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए उस रुझान की तरफ भी रहेगा जो कोरोना महामारी के बाद की वैश्विक व्यवस्था की तरफ इशारा करेगा.

आरसीईपी में 10 दक्षिण-पूर्व एशिया (आसियान) के देश हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान,  ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इसमें शामिल हुए हैं. आसियान के 10 सदस्य देश हैं: ब्रुनेई, इंडोनेशिया, वियतनाम, म्यांमार, ़फिलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया, कम्बोडिया और लाओस. आसियान देशों के साथ दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का मुक्त व्यापार समझौता पहले से लागू है. भारत का भी आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है लेकिन चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ नहीं है.

गौरतलब है कि पिछले ही साल नवंबर में भारत ने समझौते को लेकर सदस्य देशों के साथ सात वर्ष तक चले गहन मंत्नणाओं के दौर के बाद इस डील से खुद को अलग कर लिया था और इसकी वजह भारत ने व्यापार घाटा बढ़ने  की आशंका को बताया था. इस डील में शामिल होने का मतलब है कि भारत के बाजारों में चीन के सामानों की भरमार, जिससे भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. ऐसा आकलन था कि इस करार में भागीदार बनने पर भारत में आयात की जाने वाली 80 से 90 फीसदी चीजों पर आयात शुल्क कम हो जाता.

भारतीय  उद्योग जगत की भी आशंका है कि आयात शुल्क कम होने से भारत के बाजार में विदेशी सामान की इसी के चलते भरमार हो जाएगी, खासकर चीन से. ऐसी सूरत में भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है. वैसे भी भारत का आरसीईपी के  अनेक सदस्य देशों के साथ भी व्यापार घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है.

चीन भले ही फिलहाल अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन कोरोना को लेकर दुनिया में शक्ति समीकरण बदले हैं. खास तौर पर कोरोना को ले कर चीन के प्रति दुनिया भर में अविश्वास और बढ़ गया. ऐसे में आशंका यह भी व्यक्त की जा रही है कि चीन की अगुआई वाले आरसीईपी समझौते से क्षेत्न में चीन का असर और भी बढ़ेगा.

बहरहाल, मोदी सरकार ने आत्मनिर्भरता की नीति के साथ 2025 तक 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर उसे धीरे-धीरे सुनहरे मुकाम पर लाने की महत्वाकांक्षी चुनौती बड़ी है. भविष्य की परिस्थितियां देखकर ही सरकार  समुचित तालमेल बिठाकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती से निबट पाएगी.

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