अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: मैली होती यमुना और केजरीवाल के कर्म
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 14, 2025 11:35 IST2025-02-14T11:35:57+5:302025-02-14T11:35:57+5:30
एक मुख्यमंत्री, जिसने खुद को आम आदमी के रूप में स्थापित किया, वह जल्दी ही एक ‘तपे-तपाए’ राजनेता में बदल गया, जिसकी महत्वाकांक्षाओं का कोई अंत नहीं था.

अभिलाष खांडेकर का ब्लॉग: मैली होती यमुना और केजरीवाल के कर्म
आप (आम आदमी पार्टी) दिल्ली विधानसभा चुनाव हार रही है, यह बात प्रचार शुरू होने से बहुत पहले ही स्पष्ट हो गई थी. किसी भी राजनीतिक पार्टी की चुनावी हार के पीछे कई कारण होते हैं और इनमें से कुछ कारण हम अरविंद केजरीवाल की पार्टी की बुरी हार के बाद पहले ही सुन और पढ़ चुके हैं.
दिल्ली में ‘आप’ की हार के बारे में सोशल मीडिया चुटकुलों और वास्तविक अंदरूनी कहानियों से भरा पड़ा है, जिसमें केजरीवाल के पूर्व सहयोगी और सम्मानित वकील प्रशांत भूषण द्वारा अपने एक्स हैंडल पर साझा किया गया एक आलोचना भरा पुराना पत्र भी शामिल है.
एक चुटकुले में आप को ‘अहंकारी अरविंद की पार्टी’ कहा गया, जबकि दूसरे ने कहा कि वह नरेंद्र मोदी को गाली भी दे रहे हैं और उनकी नकल भी कर रहे हैं; अब वह आम आदमी नहीं बल्कि ‘वीआईपी’ बन गए हैं. अगर प्रधानमंत्री पर राजधानी में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत आलीशान और भव्य आवास बनवाने का आरोप है, तो केजरीवाल भी यही करते पाए गए- उनका ‘शीश महल’ चुनावी मुद्दा बन गया और गले की फांस.
पूर्व मुख्यमंत्री को सत्ता के लालच में पागल पाया गया, जिसके लिए वे अपने मुख्य विरोधियों भाजपा और कांग्रेस की तरह किसी भी हद तक चले गए. याद कीजिए, नए मुख्यमंत्री के रूप में वे 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी के खिलाफ लड़ने के लिए बनारस चले गए थे, जबकि वे अच्छी तरह जानते थे कि वे जीतने वाले नहीं हैं. इसलिए एक मुख्यमंत्री, जिसने खुद को आम आदमी के रूप में स्थापित किया, वह जल्दी ही एक ‘तपे-तपाए’ राजनेता में बदल गया, जिसकी महत्वाकांक्षाओं का कोई अंत नहीं था.
मैं कई वर्षों से दिल्ली में रह रहा हूं और मैंने ‘आप’ के कामकाज को करीब से देखा है. पार्टी ने वाकई बहुत अच्छी शुरुआत की थी. कई अन्य लोगों की तरह, मैं भी कांग्रेस और बाद में भाजपा द्वारा वर्षों से प्रस्तुत किए जाने वाले शासन के मॉडल के लिए ‘वैकल्पिक राजनीति’ की पेशकश के इस प्रयोग को गौर से देख रहा था.
अगर ‘आप’ अपने मूल मार्ग पर चलती रहती तो शायद सत्ता विरोधी लहर उसके रास्ते में नहीं आती. ‘आप’ के स्वास्थ्य और शिक्षा मॉडल की नकल दूसरे राज्य भी करने लगे थे, लेकिन दूसरे कार्यकाल में उसका शासन पूरी तरह से पटरी से उतर गया.
जब भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिरी गांधी-नेहरू की पुरानी पार्टी और भगवा राजनीति के बावजूद भाजपा, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू नजर आ रहे थे, तब भ्रष्टाचार-कुछ वास्तविक और कुछ कथित-ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) आंदोलन की कोख से ‘आप’ को जन्म दिया.
लोग इस समूह की ईमानदारी से प्रभावित हुए, जिसमें अन्ना हजारे, मेधा पाटकर, योगेंद्र यादव, पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री शशि भूषण, उनके बेटे प्रशांत, पत्रकार आशुतोष और आतिशी जैसे कई गैर-राजनेता शामिल थे, जिन्होंने स्थापित पार्टियों के खिलाफ उम्मीदें जगाई थीं. लेकिन चालाक केजरीवाल ने एक के बाद एक विश्वसनीय चेहरों को दूर कर दिया.
‘आईएसी’ का उद्देश्य बिना राजनीति में उतरे ही देश में सड़ी-गली राजनीतिक व्यवस्था को साफ करना था. लेकिन महत्वाकांक्षी केजरीवाल ने आगे बढ़कर ‘आप’ का गठन कर दिया. कांग्रेस और भाजपा से तंग आ चुके लोगों ने बड़ी उम्मीदों के साथ उनका समर्थन किया, जो अंततः 2025 में धराशायी हो गईं.
नई दिल्ली में 10-12 साल के शासन के बाद ‘आप’ की करारी हार तीन मुख्य कारणों से हुई. सबसे पहले, शराब घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों और केजरीवाल सहित पार्टी के कई नेताओं के जेल जाने के कारण आम आदमी की स्वच्छ पार्टी की छवि खो दी थी.
दूसरा, केजरीवाल और राहुल गांधी का अहंकार किसी भी सीट बंटवारे के फॉर्मूले के बीच में आ गया, जिससे दोनों को अकल्पनीय नुकसान हुआ और त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को मदद मिली व कांग्रेस फिर खाली हाथ रह गई. और अंत में, भाजपा की ताकत का - धन और जनशक्ति के मामले में - ‘आप’ जैसी छोटी क्षेत्रीय पार्टी कोई मुकाबला नहीं कर सकी.
लोकतंत्र में लोग स्थापित पार्टियों और व्यक्तियों के विपरीत विचार, असहमति और विरोध के स्वर भी सुनना चाहते हैं. लोकतांत्रिक सिद्धांत यह कहते हैं कि सत्ता को संतुलित किया जाना चाहिए और बहुसंख्यकवाद से दूर रहना चाहिए. इसलिए, आप का उदय एक स्वागत योग्य विचार था. यह एक ऐसी राजनैतिक पार्टी थी जिसमें गैर-राजनीतिक लोग थे.
लेकिन दुर्भाग्य से केजरीवाल की हार ने साबित कर दिया कि भारत में राजनीतिक व्यवस्था इस हद तक सड-गल चुकी है कि बिना पैसे, बाहुबल और षड्यंत्र के कोई भी व्यक्ति सत्ता में नहीं रह सकता. केजरीवाल ने हर तरह की षड्यंत्रकारी चालें चलीं, लेकिन वे मोदी और उनके हिंदुत्व एजेंडे के आगे कुछ नहीं कर सके. सही समय पर कुंभ में मोदी की एक पवित्र डुबकी ने दिल्ली में पूरी विपक्षी पार्टी को डुबो दिया.