ब्लॉग: पूर्वोत्तर में बीजेपी की सफलता के पीछे की वजह है, केन्द्र सरकार की अचूक नीति
By विवेकानंद शांडिल | Published: February 17, 2023 03:20 PM2023-02-17T15:20:39+5:302023-02-17T15:26:31+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक पूर्वोत्तर भारत का 51 बार दौरा कर चुके हैं, तो केन्द्रीय मंत्रियों ने भी 400 से अधिक बार इसका दौरा किया। यही कारण है कि आज यहाँ के लोगों में एक नयी संवाद प्रक्रिया ने जन्म ले लिया है।
पूर्वोत्तर भारत आरंभ से ही सांस्कृतिक और प्राकृतिक रूप से बेहद समृद्ध रहा है। परंतु, देश की आज़ादी के बाद इन क्षेत्रों की सामाजिक एकता और अखंडता हमारे लिए चिन्ता का एक प्रमुख विषय रहा है। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी विकास पर सरकारों द्वारा कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया और इसका परिणाम यह हुआ कि धीरे - धीरे इन क्षेत्रों ने खुद को शेष भारत से अलग महसूस करना शुरू कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में यहाँ बीते 8 वर्षों में विकास की एक नई गंगा बही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर भारत को लेकर अपने संकल्पों से हमें उसी वक्त अवगत करा दिया था जब वह 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे थे। उनका आरंभ से ही मानना था कि जब तक भारत का सर्वसमावेशी, सर्वसपर्शी और संतुलित विकास न हो, तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं। क्योंकि, आज़ादी के बाद पश्चिमी और दक्षिणी भारत तो आगे बढ़ते गएए लेकिन हमारे पूर्वोत्तर का इलाका कहीं पीछे छूट गया। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही प्रधानमंत्री का पद संभाला उन्होंने पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से जोड़ने के लिए अपना प्रयास शुरू कर दिया।
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर भारत के दायरे में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा जैसे राज्य आते हैं और यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8 प्रतिशत हिस्सा है। वहीं, इन क्षेत्रों में हमारी करीब 3.8 प्रतिशत आबादी रहती है।
यहाँ करीब 5000 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पाँच देशों के साथ जुड़ी हैं और यह विश्व के 18 बायो डायवर्सिटी हॉटस्पॉट में से एक है। इन क्षेत्रों में हमारे घने वन क्षेत्र का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा है और यहाँ 270 से भी अधिक सामाजिक समुदायों का वास है।
इन तथ्यों से यहाँ की भौगोलिक और सांस्कृतिक दुर्गमता को आसानी से समझा जा सकता है और कालांतर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असमए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड जैसी देश विरोधी शक्तियों ने इसका भरपूर फायदा भी उठाया।
ऐसे में, यहाँ के सामाजिक ताने.बाने को व्यवस्थित करना प्रधानमंत्री मोदी के लिए आसान नहीं था। लेकिन वह कभी हार मानने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने इस दिशा में सबसे पहले ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को लागू किया और जिसके अंतर्गत उनका उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में वाणिज्यए संस्कृति और संपर्क को बढ़ावा देते हुएए दक्षिण - पूर्व एशिया में भी अपनी पकड़ को सुदृढ़ करना है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर भारत को देश के विकास के ‘प्रवेश द्वार’ के रूप में पहचान दिलायी और आज यहाँ शिक्षा से लेकर परिवहन जैसे तमाम क्षेत्र में बदलाव की लहर को साफ तौर पर देखा जा सकता है। यही कारण है कि आज इस इलाके को हम ‘अष्ट लक्ष्मी’ के रूप में भी जानते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर भारत में परिस्थितियों को बदलने के लिए – ‘राजनीतिक स्थिरता’, ‘सीमा विवाद का निपटारा’, ‘सांस्कृतिक संरक्षण एवं विकास’, ‘आर्थिक विकास’ जैसे चार प्रमुख आयामों पर अपनी कार्ययोजना बनाई और इन योजनाओं के सफल क्रियान्वन के लिए संबंधित मंत्रालयों की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगीए विशेष रूप से गृह मंत्री अमित शाह की।
प्रधानमंत्री मोदी अभी तक पूर्वोत्तर भारत का 51 बार दौरा कर चुके हैं, तो केन्द्रीय मंत्रियों ने भी 400 से अधिक बार इसका दौरा किया। यही कारण है कि आज यहाँ के लोगों में एक नयी संवाद प्रक्रिया ने जन्म ले लिया है। पहले जिस क्षेत्र को उपद्रव और विद्रोह के लिए जाना जाता था। आज वहाँ शांति और प्रगति की बयार बह रही है। आँकड़े बताते हैं कि इन इलाकों में उग्रवाद से संबंधित हिंसक घटनाओं में 76 प्रतिशत से भी अधिक की कमी आई है और यहाँ के 8000 से भी अधिक राह भटके युवाओं ने आत्मसमर्पण करते हुए मुख्यधारा की समाज लौटने का फैसला किया है।
ये आँकड़े स्पष्ट तौर पर 2019 के एनएलएफटी समझौते, 2020 के ब्रू व बोड़ो समझौतेए 2021 के कार्बी समझौते और 2022 के भारत सरकारए असम सरकार और बीसीएफ, एसीएमए, एएएनएलए, एपीए, एसटीएफ, एएएनएल (एफजी), बीसीएफ (बीटी), एसीएमए (एफजी) जैसे आठ आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच हुए ऐतिहासिक त्रिपक्षीय समझौते जैसे अनगिनत प्रयासों के नतीजे हैं।
मोदी-शाह की अगुवाई में, भारत सरकार ने यहाँ शांति स्थापित करने के लिए शीर्ष अधिकारियों के प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण, प्रभावी खुफिया व्यवस्थाए कार्य योजना के नये मानकों के निर्धारण, प्रोद्यौगिकी के बेहतर उपयोग और वामपंथियों के वित्तीय पोषण को नष्ट करने के करने के लिए जिन अचूक नीतियों को अपनाया है, उसमें वे पूर्ण रूप से सफल रहे हैं। उनके ये प्रयास इसलिए भी और अधिक प्रशंसनीय हैं कि उन्हें अपने इन नीतियों के क्रियान्वयन में किसी दल या राजनीतिक विचारधारा का कोई भी हस्तक्षेप नहीं झेलना पड़ा है।
हमें पूर्ण विश्वास है कि पीएम मोदी की अगुवाई में भारत सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में विकास और शांति का जो बीज बोया है, हमें भविष्य में और अधिक सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे और एक ऐसा क्षेत्र, जो वर्षों तक उपेक्षा का दंश झेलता रहा, वह हर दिन एक नई गाथा लिखता रहेगा।