राजेश बादल का ब्लॉग: चीन सीमा पर हिंसा और पड़ोसियों के तीखे तेवर

By राजेश बादल | Published: June 17, 2020 05:35 AM2020-06-17T05:35:14+5:302020-06-17T05:35:14+5:30

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक फौज से उनके रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं. इमरान के सेनाध्यक्ष को सीधे ही चीन से निर्देश मिलते हैं.

Rajesh Badal's blog: Violence on the China border and sharp remarks on neighbors | राजेश बादल का ब्लॉग: चीन सीमा पर हिंसा और पड़ोसियों के तीखे तेवर

लद्दाख सीमा पर चीन से विवाद गहराया (फाइल फोटो)

सोमवार की रात गलवान घाटी में चीन और भारत की सेनाओं में हिंसक भिड़ंत के अनेक संदेश हैं. मान लिया जाना चाहिए कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए वार्ताओं के दौर नाकाम रहे हैं और दोनों बड़े राष्ट्रों ने अपनी तलवारें म्यान से निकाल ली हैं. इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं क्योंकि वे अब 1962 की स्थिति में नहीं हैं.

यानी अब संयम में जरा सी भी चूक संसार की अन्य महाशक्तियों के बीच राजनयिक रिश्तों में नए सिरे से ध्रुवीकरण की शुरु आत कर देगी. हिंदुस्तान के लिए तनिक जटिल हालात इसलिए भी हैं क्योंकि चीन नेपाल और पाकिस्तान को  पहले ही अपनी कठपुतली बना चुका है. चीन की चमकती तलवार देखकर नेपाल और पाकिस्तान ने भी अपने खंजर निकाल लिए हैं.

वे सोचते हैं कि उनकी पीठ पर चीनी हाथ है इसलिए बहती गंगा में हाथ धोने का यह सुनहरा अवसर है. यह धारणा आत्मघाती मूर्खता जैसी ही है.

हिंदुस्तान को खंडित करने का सपना पाल रहे ये देश भूल रहे हैं कि चाकू तरबूजे पर गिरे या तरबूजा चाकू पर, नुकसान तो तरबूजे का ही होना है. उन्हें जिंदा रहने की प्राणवायु चीन से भले ही मिल रही हो, पर दोनों देशों की गर्दन भारत के हाथ में है. अगर उसे मरोड़ा नहीं है तो यह भारत की कमजोरी नहीं है. उन्हें इसके लिए भारत का आभार मानना चाहिए.

इसमें दो राय नहीं कि हिंदुस्तान सीमा पर नेपाल और पाकिस्तान जो ताजा हरकतें कर रहे हैं, उनका रिमोट बीजिंग से संचालित है. चीन ने मक्खी की तरह दोनों मुल्कों को पहले अपने शहद के कजर्-जाल में फंसाया. अब जाल से बाहर निकलने के लिए मक्खियां छटपटा रही हैं. चीन उन्हें नहीं निकालना चाहता.

वह उन्हें शहद में चिपकाए तब तक तड़पाता रहेगा, जब तक वह चाहेगा. जिस दिन स्वार्थ पूरा हो जाएगा, उस दिन मक्खियों को भी मसल दिया जाएगा. जब तक मक्खियों को हकीकत पता चलेगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

इन दोनों देशों की अवाम सोच और संस्कारों से भारतीय ही है. विडंबना है कि हुकूमतें उनका बेजा इस्तेमाल कर रही हैं. हजार साल से साथ रह रहे लोग अपने अपने आकाओं से खफा हो भी जाएं तो क्या फर्क पड़ता है.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्नी इमरान खान इन दिनों कार्यकाल के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं. जर्जर अर्थव्यवस्था से पाकिस्तान को वे उबार नहीं पाए हैं. उनकी सरकार का दूसरा बजट 65 खरब पाकिस्तानी रु. का है और 34 खरब का घाटा है. यह हैरतअंगेज आंकड़ा है. कोविड-19 महामारी से निपटने में सरकार नाकाम रही है. वे पूर्ण लॉकडाउन की खिल्ली उड़ाते रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नई रिपोर्ट में कहा है कि समूचे विश्व में पाकिस्तान में सबसे तेज कोरोना फैल रहा है. लॉकडाउन में ढील देने की छह शर्तो में पाकिस्तान ने एक भी नहीं मानी. पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकारों ने इमरान खान के सनक भरे निर्देश मानने से इनकार कर दिया है. वैसे इमरान तो भारत को भी सहायता का प्रस्ताव दे रहे हैं.

वे कहते हैं कि भारत में लोग भूखों मर रहे हैं. मगर वे भूल जाते हैं कि जितनी उनकी कुल जीडीपी है, उतना तो भारत का सिर्फ कोरोना पैकेज है. इसके बाद भी वे संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मसला उठाते हैं.

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक फौज से उनके रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हो गए हैं. इमरान के सेनाध्यक्ष को सीधे ही चीन से निर्देश मिलते हैं. इमरान को उनका पता भी नहीं चलता. चीन ने कभी भी इमरान पर पूरा भरोसा नहीं किया. जब वे प्रतिपक्ष में थे तो चीनी राष्ट्रपति की पाक यात्ना के खिलाफधरने पर बैठ गए थे.

शी जिनपिंग को यात्ना रद्द करनी पड़ी थी. राष्ट्रपति का यह अपमान चीन शायद नहीं भूला होगा. सारांश यह कि इमरान अब भारत के प्रति नफरत भड़का सियासी रोटियां सेंक रहे हैं.

अब नेपाल की बात. यह खूबसूरत पड़ोसी भी इन दिनों चीन के ऋण-जाल में बिंधा है. वह रेलवे लाइन बिछा रहा है. बिजलीघर बना रहा है. नेपाली स्कूलों में चीनी पढ़ाई जा रही है. ऐसी खबरें हैं कि नेपाल सीमाओं की सुरक्षा का ठेका भी चीन को दे रहा है. सदियों से नेपाल और भारत के लोग दूध और पानी की तरह घुले मिले हैं.

एक नेपाली भारत को अपना दूसरा घर मानता है. जब किसी नेपाली को अपने देश में रोजी-रोटी नहीं मिलती, वह भाग कर भारत आ जाता है. पीढ़ियों से ऐसा हो रहा है. नेपाली वामपंथी सरकार इसे नहीं समझती.

अवाम समझती है. जिस दिन भारत ने नेपाली समुदाय का बहिष्कार शुरू कर दिया और हर शहर से उन्हें वापस नेपाल भेजना प्रारंभ कर दिया, उस दिन नेपाल के हाल बेहाल हो जाएंगे. कुछ बरस पहले नेपाल में भूकंप आया था तो अपने ही किसी प्रदेश जैसी सहायता भारत ने की थी. इसके बाद भी वह लड़कर सेना के बल पर जमीन लेने की बात करता है. वह सेना, जो हमेशा भारत में ट्रेनिंग लेती रही है. क्या नेपाली प्रधानमंत्नी कभी समङोंगे कि चीन की गोद में बैठकर वे अपनी सरकार नहीं बचा पाएंगे.

यकीनन भारत के पड़ोसियों पर चीन ने रातोंरात जादू की छड़ी नहीं घुमाई है. उसने कई साल इसके बीज बोये हैं. भारत इस मामले में तनिक सुस्त नजर आता है. हमें अपने राष्ट्रीय चरित्न की पुन: संरचना पर ध्यान देना होगा. स्वभाव में आक्रामकता लानी होगी और स्वाभिमान की तलवार और धारदार करनी होगी. पड़ोसी भी तभी आपको अपना मानते हैं, जब उन्हें लगता है कि संकट में आप उनकी ढाल बन सकते हैं.

Web Title: Rajesh Badal's blog: Violence on the China border and sharp remarks on neighbors

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