ब्लॉग: राजनीति में भाषाई प्रदूषण का गहराता जा रहा है संकट, ध्यान इस ओर भी देने की जरूरत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: May 11, 2023 03:20 PM2023-05-11T15:20:52+5:302023-05-11T15:22:41+5:30

Problem of bad language and linguistic pollution is deepening in politics | ब्लॉग: राजनीति में भाषाई प्रदूषण का गहराता जा रहा है संकट, ध्यान इस ओर भी देने की जरूरत

ब्लॉग: राजनीति में भाषाई प्रदूषण का गहराता जा रहा है संकट, ध्यान इस ओर भी देने की जरूरत

अक्सर कहा जाता है कि यह संसार शब्दात्मक है. इस अर्थ में यह सही है कि मानव व्यवहार के निजी और सामाजिक दायरों में आने वाले लगभग हर व्यवहार में भाषा की अहम भागीदारी होती है. हमारा समूचा ज्ञान, शिक्षण, संचार और अमूर्तन आदि का काम करने में भाषा ही प्रमुख उपादान होती है. भाषा के न होने पर दुनिया अंधेरे में रहेगी. भाषा की जद में आकर ही चीजें अपना अर्थ खोज पाती हैं. शायद बाहर और अंदर की दुनिया को प्रकाशित करने वाला प्रकाश का स्रोत भाषा ही है.

राजनीति में संवाद की विशेष भूमिका होती है. खास तौर पर तब और भी जब नेतागण बड़ी जनसभा को संबोधित कर रहे हों. चुनावों के प्रसंग में यह बात स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आती है. चुनावी रण में खड़े हुए प्रत्याशीगण और उनके सामान्य और स्टार प्रचारक मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तर्क, तथ्य तथा वादों का सहारा लेते हैं. वे ऐसे वायदों की झड़ी लगा देते हैं जो वस्तुतः असंभव होते हैं. 

नेतागण अपने पक्ष को पुष्ट करने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी की आलोचना करते हैं और यह स्वाभाविक भी है. विगत कुछ एक वर्षों से इस प्रथा में यह बदलाव आता गया है कि इस आलोचना में निंदा, स्पृहा और कटूक्तियों के उपयोग में इजाफा होता गया. अनेक नेता असंसदीय और असभ्य लहजे में बढ़-चढ़ कर बात करने की छूट ले रहे हैं. आए दिन अक्सर ऐसे समाचार मिलते हैं जिनमें नेतागण स्वस्थ आलोचना की जगह भर्त्सना और चरित्र-हनन का सहारा ले रहे हैं. इसके क्रम में व्यक्तिगत आक्षेप वाली भाषा का प्रयोग भी बहुतायत से होने लगा है. 

वाणी की विश्वसनीयता और वैधता को लेकर सबके मन में शंका बनी रहती है. मन, वचन और कर्म में निकटता चरित्र बल को द्योतित करती है. आज नेता अपने वचन पर नहीं टिकते और कभी भी मुकर जाते हैं. उनकी कथनी और करनी में अंतर भी बढ़ता ही जा रहा है.

वक्ता द्वारा इसमें प्रयुक्त नकारात्मक विशेषण अपने साथ बहुत सारे वांछित और अवांछित अर्थ भी शामिल करते चलते हैं. उदाहरण के लिए चोर, बेईमान, नालायक और भ्रष्ट जैसे शब्दों का अर्थ-विस्तार अत्यंत व्यापक होता है. ऐसी अभिव्यक्तियां न केवल संदेह और घृणा पैदा करने वाली टिप्पणी होती हैं, वे संबंधित व्यक्ति  और समुदाय को आहत करती हैं और चोट पहुंचाने वाली होती हैं. 

अनर्गल वाद-प्रतिवाद में अक्सर एक-दूसरे के विरोध में गड़े मुद्दों को उखाड़ने का दौर चलता रहता है. दूसरी ओर नए मुद्दे बनाने की कवायद में असंबद्ध चीजों को प्रासंगिक बनाते हुए आख्यान गढ़े जाते हैं. यह खेदजनक है कि अब संवाद में सहिष्णुता घटती जा रही है और अपने सामने दूसरे की उपस्थिति का स्वीकार लोगों को असह्य होता जा रहा है.

Web Title: Problem of bad language and linguistic pollution is deepening in politics

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