प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: तकनीक के साथ जुड़कर विश्वभाषा बनेगी हिंदी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 10, 2020 10:39 AM2020-01-10T10:39:21+5:302020-01-10T10:39:21+5:30

हिंदी भारत के चारों ओर के देशों में सहजता से समझी जाने वाली भाषा है, इसलिए पड़ोसी देशों के साथ संबंध के विकास का सबल माध्यम भी है हिंदी. नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान वे देश हैं जिनका अधिकांश जन हिंदी समझता है. हिंदी का यह विस्तार इन देशों के सांस्कृतिक परिवेश को अत्यंत सरलता के साथ भारत की संस्कृति के साथ जोड़ता है.

Pro. Rajneesh Kumar Shukla blog: Hindi will be language of world by connecting technology | प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: तकनीक के साथ जुड़कर विश्वभाषा बनेगी हिंदी

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

विश्व हिंदी दिवस हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप को जानने और पहचानने का अवसर है. हिंदी एक साधारण भाषा नहीं है. यह केवल भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा ही नहीं, अपितु आज दुनिया की सबसे बड़ी भाषा है. हिंदी और हिंदी के विविध प्रारूपों, पर्यायों की गिनती की जाए तो यह 130 करोड़ लोगों की भाषा है. यह धरती पर सर्वत्न बोली और समझी जाने वाली भाषा है. दुनिया की सबसे बड़ी भाषा मंदारिन को संख्या की दृष्टि से चाहे जो स्थान दे दिया जाए, बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी के बाद ही उसका क्र म है. हिंदी एशिया में बोली जाती है. सऊदी अरब से लेकर बांग्लादेश तक हिंदी का एक बड़ा संसार है तो कैरेबियन द्वीप समूह और उत्तर अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में न्यूजीलैंड में विशिष्ट किस्म के हिंदी क्षेत्न हैं जहां ऐसे लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या है जिनकी दूसरी-तीसरी-चौथी भाषा हिंदी है.

यूरोप के विविध देश जिन्होंने कभी हम पर शासन किया था, आज हिंदी के प्रभाव क्षेत्न में हैं. दुनिया के पच्चीस-तीस देशों में हिंदी जानी बोली सुनी जाती है लेकिन आज भी हिंदी को क्षेत्नीय भाषा के रूप में ही मान्यता प्राप्त है, जनपदीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, इसे अंतर्महाद्वीपीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषा नहीं माना जाता है. हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप केवल जन भाषा के रूप में विकसित हो तो यह सही अर्थो में अंतर्राष्ट्रीय नहीं होगा. यह परिदृश्य विविध क्षेत्नों में हालांकि बदला है. व्यापार का क्षेत्न उसमें सबसे बड़ा है. आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हिंदी जानने वाले लोगों की जरूरत है. लेकिन भाषा के इस फैलाव और प्रभाव को हिंदी भाषा की ताकत नहीं माना जा सकता, यह तो हिंदी जन के बीच विकसित हो रहे बाजार की ताकत है.

हिंदी जब राजनयिक संबंधों और कूटनीति, विज्ञान और तकनीक के शिक्षण की भाषा के रूप में विकसित होगी तभी वैश्विक संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय भाषा की मान्यता प्राप्त करेगी. कुछ लोगों को यह लगता है कि यदि हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा हो गई तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा हो जाएगी. किंतु यह सच नहीं है और न सच होने की इसमें कोई संभावना ही है क्योंकि जो सभी भाषाएं संयुक्त राष्ट्र की भाषाएं हैं, वे सभी अंतर्राष्ट्रीय भाषा नहीं हैं. क्या अरबी अंतर्राष्ट्रीय भाषा हो गई है? हो भी नहीं सकती क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय भाषा होने के लिए अन्य रास्तों की आवश्यकता की पूर्ति की क्षमता भाषा में होनी चाहिए जो अरबी में नहीं है. हिंदी में है लेकिन विकसित नहीं हुई है.

हिंदी वालों का दायित्व है कि इसके विकास के यत्न होने चाहिए. विकास के यत्न का तात्पर्य कथा साहित्य, काव्य और नाट्य साहित्य, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना आदि का प्रचुर लेखन नहीं है. बल्कि इस यत्न का तात्पर्य है कि योजनाबद्ध रूप से हिंदी में विश्व का समग्र ज्ञान, चाहे वह विज्ञान का हो, तकनीक का हो या समाज विज्ञान का, निखर कर सामने आए. ज्ञान के नवोन्मेष के साधन विकसित हों. चुनौती तो यह भी है कि डिजिटाइजेशन के इस कालखंड में नए माध्यमों पर भाषा की सक्षमता और सुसंगतता प्रमाणित हो क्योंकि कागज पर लिखने के दिन बीत गए. आज डिजिटल माध्यमों ने रोमन लिपि और अंग्रेजी को वैश्विक भाषा में परिवर्तित कर दिया है तो कृत्रिम मेधा के क्षेत्न में हो रहे नित नूतन अनुसंधान चीनी भाषा को तकनीक की भाषा के रूप में परिवर्तित कर रहे हैं. विश्व स्तर पर हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को आकार देने में हिंदी तभी सक्षम हो सकती है जब इसे डिजिटल संसार की भाषा के रूप में विकसित किया जाए.

इसके लिए जरूरी है कि इस प्रकार की भाषा प्रौद्योगिकी का विकास हो कि हिंदी में तकनीक को समर्थन मिले. चिंता का विषय यही है कि जब पूरी दुनिया हिंदी जानना समझना चाहती है, हिंदी में भाषा शिक्षण उपेक्षित है. एक सौ दस करोड़ भारतीय और दुनिया भर में 15 से 20 करोड़ अन्य का विशाल जनसमूह हिंदी में पढ़ना चाहता है, हिंदी में बोलना चाहता है और हिंदी में व्यवहार कर रहा है. उसको बदलते विश्व के साथ हिंदी से जोड़ कर रखना एक बड़ी चुनौती है. भारत के संदर्भ में भी विचार किया जाए तो हिंदी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विकास का सबल माध्यम हो सकती है.

हिंदी भारत के चारों ओर के देशों में सहजता से समझी जाने वाली भाषा है, इसलिए पड़ोसी देशों के साथ संबंध के विकास का सबल माध्यम भी है हिंदी. नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और पाकिस्तान वे देश हैं जिनका अधिकांश जन हिंदी समझता है. हिंदी का यह विस्तार इन देशों के सांस्कृतिक परिवेश को अत्यंत सरलता के साथ भारत की संस्कृति के साथ जोड़ता है. हिंदी ही है जिसके आधार पर मॉरिशस, मेडागास्कर, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद जैसे देशों के जन के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साझा संबंध विकसित हो सकता है.

जब यूरोपीय भाषाएं जन भाषा से आदर्श भाषा में संक्रमित होने के लिए संघर्षरत हैं ऐसे में पूर्वी यूरोप के देशों के लिए भी हिंदी आदर्श भाषा का एक उत्तम विकल्प है. इन सबके लिए जरूरत है कि हिंदी भाषा में मशीनी अनुवाद, मशीन के लिए पढ़ने योग्य सामग्री का निर्माण और हिंदी की विशाल ज्ञान संपदा का डिजिटाइजेशन, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सफल भाषा संशोधक इत्यादि आवश्यक सुविधाओं और संसाधनों का विकास किया जाए. तकनीक से समानांतर रहकर हिंदी विश्व भाषा नहीं बन सकती है. यह तकनीक के साथ ही संभव है. इसलिए हिंदी भाषा को युग की आवश्यकता के अनुरूप तकनीक के नए व्याकरण की आवश्यकता है. इस चुनौती को पार कर हम निश्चित रूप से हिंदी को भारती वाक् के रूप में विश्व में गुंजायमान कर सकते हैं.

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