प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: मांसाहारी बनाकर भुखमरी दूर करने की कोशिश!

By प्रमोद भार्गव | Published: January 3, 2020 06:36 AM2020-01-03T06:36:46+5:302020-01-03T06:36:46+5:30

यह अफलातूनी प्रस्ताव ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफार्मिग इंडिया’ (नीति आयोग) ने भारत सरकार को दिया है. यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल स्वीकार कर लेता है तो पीडीएस के जरिये चिकन, मटन, मछली और अंडा रियायती दरों पर उपलब्ध होगा. यह प्रस्ताव आयोग के 15 साल के ‘दृष्टि-पत्र’ में शामिल है. यदि यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो समस्या से निजात मिलने के बजाय कुपोषण की समस्या और भयावह रूप में पेश आएगी.

Pramod Bhargava blog: Trying to eradicate Starvation by being a non-vegetarian! | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: मांसाहारी बनाकर भुखमरी दूर करने की कोशिश!

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 19.5 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं. दुनिया के कुपोषितों में यह अनुपात करीब 25 प्रतिशत है. यदि बच्चों के स्तर पर बात करें तो देश के 10 बच्चों में से चार कुपोषित हैं. यह स्थिति उस कृषि-प्रधान देश की है, जो खाद्यान्न उत्पादन के मामले में तो आत्मनिर्भर है ही, अनाज की कई किस्मों का निर्यात भी करता है. दुनिया के कई देश अपनी भुखमरी से निपटने के लिए भारत से ही अनाज खरीदते हैं. साफ है, देश में भुखमरी व कुपोषण की समस्या खाद्यान्न की कमी से नहीं, बल्कि प्रशासन के कुप्रबंधन एवं भ्रष्टाचार का परिणाम है. बावजूद देश की नौकरशाही का हाल देखिए कि वह भुखमरी से निपटने के लिए मांस से बने उत्पादों को जन-वितरण केंद्रों (पीडीएस) के माध्ययम से गरीबों को उपलब्ध कराने का उपाय करने जा रही है. जिससे लोगों को ज्यादा प्रोटीनयुक्त भोजन मिले.

यह अफलातूनी प्रस्ताव ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफार्मिग इंडिया’ (नीति आयोग) ने भारत सरकार को दिया है. यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल स्वीकार कर लेता है तो पीडीएस के जरिये चिकन, मटन, मछली और अंडा रियायती दरों पर उपलब्ध होगा. यह प्रस्ताव आयोग के 15 साल के ‘दृष्टि-पत्र’ में शामिल है. यदि यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो समस्या से निजात मिलने के बजाय कुपोषण की समस्या और भयावह रूप में पेश आएगी. एक तो मांस उत्पादन में अनाज ज्यादा खर्च होता है और दूसरे इसे वितरण के लिए हर पीडीएस केंद्र पर बिजली की 24 घंटे उपलब्धता के साथ रेफ्रिजरेटरों की जरूरत पड़ेगी. क्योंकि मांस से बने उत्पाद कुछ घंटे ही सामान्य तापमान पर रखे रहें तो खराब होने लगते हैं. दूसरे, इन उत्पादों को केंद्रों तक पहुंचाने के लिए भी वातानुकूलित वाहनों की जरूरत होगी. इससे एक नई समस्या शाकाहारी लोगों के लिए खड़ी होगी, क्योंकि भारत में धार्मिक आधार पर ऐसे अनेक धर्म व जातीय समूह हैं, जो मांस को छूते तक नहीं हैं.    

योजनाकारों का यह तथ्य तार्किक हो सकता है कि मांस प्रोटीन का बड़ा स्नोत है. यदि यह लोगों को सस्ते में उपलब्ध होगा तो उनके स्वास्थ्य के लिए लाभदायी भी हो सकता है. इसके विपरीत दुनिया में हुए अनेक शोधों से पता चला है कि दूध एवं शहद में न केवल सबसे ज्यादा प्रोटीनयुक्त तत्व होते हैं, बल्कि इन्हें संपूर्ण आहार भी माना गया है. भोजन में मांस का चलन बढ़ने के कारण भारत में 20 प्रतिशत से भी ज्यादा लोगों को भुखमरी का अभिशाप झेलना पड़ा है. जाहिर है, यदि देश को मांसाहारी बनाने की कोशिशें की जाती हैं तो भुखमरी की समस्या और भयावह रूप में सामने आएगी.

Web Title: Pramod Bhargava blog: Trying to eradicate Starvation by being a non-vegetarian!

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