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पवन के. वर्मा का ब्लॉग: महामारी से लड़ने के लिए संयुक्त प्रयास जरूरी

By पवन के वर्मा | Updated: March 23, 2020 06:37 IST

...कुछ मामलों में लोग इस अच्छी पहल को समझ नहीं पा रहे हैं. इसमें एक तो हैं आंदोलन करने वाले प्रदर्शनकारी, जो स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं और अपना प्रदर्शन फिलहाल छोड़ने को तैयार नहीं हैं. दूसरा है प्रार्थना स्थलों पर साप्ताहिक प्रार्थना जारी रखने का मुद्दा.

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कभी-कभी जब वैश्विक संकट आता है, जैसा कि इन दिनों हम कोरोना महामारी के रूप में देख रहे हैं, तो लोगों को अपने व्यवहार में बदलाव लाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि बदलती परिस्थितियों में पुराने तरीकों से ही व्यवहार करते रहना आत्मघाती साबित हो सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में समस्या की इसी गंभीर प्रकृति को दोहराया है और बताया है कि वायरस को हराने के लिए संयुक्त  प्रयास के रूप में आम लोगों को क्या करना चाहिए. इस प्रयास का एक प्रमुख पहलू ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ है. व्यवहार में इसका मतलब है कि लोगों को किसी भी स्थान पर बड़ी संख्या में नहीं जुटना चाहिए.

एक तरफ सरकार इसे सुनिश्चित करने के प्रयास में जुटी है- स्कूल, कॉलेज, मॉल, सिनेमा और यहां तक कि आंशिक रूप से कार्यालय भी बंद हो गए हैं, निजी क्षेत्र भी अपने स्तर पर इसके उपाय कर रहे हैं, तो कुछ मामलों में लोग इस अच्छी पहल को समझ नहीं पा रहे हैं. इसमें एक तो हैं आंदोलन करने वाले प्रदर्शनकारी, जो स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं रहे हैं और अपना प्रदर्शन फिलहाल छोड़ने को तैयार नहीं हैं. दूसरा है प्रार्थना स्थलों पर साप्ताहिक प्रार्थना जारी रखने का मुद्दा.

मेरा दृढ़ विश्वास है कि सभी धर्मो का समान रूप से सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन सम्मान करने का मतलब यह नहीं कि आप वह कहने से बचें जो आपको सही लगता है, भले ही वह किसी भी धर्म से संबंधित हो. यही कारण है कि मैंने अवध राम नवमी मेला को रद्द करने से इंकार करने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना की थी. हालांकि अब उनके इसे रद्द करने से मुङो संतोष है. अगर आदित्यनाथ जैसे कट्टर हिंदुत्ववादी, कोरोना वायरस जैसे बड़े खतरे को ध्यान में रखते हुए, हिंदुओं के बीच इतने लोकप्रिय त्यौहार के आयोजन को रद्द कर सकते हैं तो सभी धर्मो के लोगों को एक स्थान पर एकत्रित होने के अवसरों से बचना चाहिए.

मैं समझता हूं कि श्रद्धालुओं के लिए अपने धार्मिक कृत्य बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब व्यापक राष्ट्रीय - और अंतर्राष्ट्रीय भी - हितों के लिए लोगों को बड़े परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है. हो सकता है लोगों को यह बदलाव पसंद न आए लेकिन ऐसे समय में धार्मिक नेताओं को आगे आना चाहिए और परिस्थितियों को देखते हुए लोगों को सही निर्णय लेने के लिए राजी करना चाहिए.

टॅग्स :कोरोना वायरसइंडियाशाहीन बाग़ प्रोटेस्टमोदी सरकारलोकमत हिंदी समाचार
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