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पवन के. वर्मा का ब्लॉग: सीएए पर बाहरी दखल स्वीकार्य नहीं

By पवन के वर्मा | Updated: March 9, 2020 06:16 IST

ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर भारतीय आपस में असहमत हैं और प्राय: बहुत ही जोरदार ढंग से. लेकिन याद रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन असहमतियों के बावजूद, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मुद्दों को सुलझाने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हैं. इनमें गणतंत्र का संविधान, संसद, सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, अपना विरोध और असंतोष दर्ज कराने की स्वतंत्रता, गैरसरकारी नागरिक मंच तथा लोकतांत्रिक बहस के लिए उपलब्ध विशाल कैनवास का समावेश है.

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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैशेलेट ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर एक हस्तक्षेप याचिका दायर की है. उनका तर्क है कि यह अधिनियम धर्म के आधार पर प्रवासियों के साथ भेदभाव करता है.

निश्चित तौर पर, मिशेल बैशेलेट से स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए कि हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का उनका प्रयास स्वागत योग्य नहीं है. इसलिए नहीं कि उनकी चिंता अकारण है. न ही उन्हें पक्षपाती कहा जा सकता है या दुर्भावनापूर्ण इरादे का आरोप लगाया जा सकता है. फिर भी, ऐसी कुछ चीजें हैं जो सुश्री मिशेल को हमारे देश के बारे में जानना आवश्यक है, यह समझने के लिए कि क्यों उनका हस्तक्षेप न प्रासंगिक है और न ही आवश्यक.

ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर भारतीय आपस में असहमत हैं और प्राय: बहुत ही जोरदार ढंग से. लेकिन याद रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन असहमतियों के बावजूद, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मुद्दों को सुलझाने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हैं. इनमें गणतंत्र का संविधान, संसद, सुप्रीम कोर्ट, मीडिया, अपना विरोध और असंतोष दर्ज कराने की स्वतंत्रता, गैरसरकारी नागरिक मंच तथा लोकतांत्रिक बहस के लिए उपलब्ध विशाल कैनवास का समावेश है.

मुझे पता है कि वर्तमान में कुछ लोगों को लग रहा है कि ये लोकतांत्रिक साधन आज खतरे में हैं. शायद कुछ मामलों में वे हैं. हमारा सामना एक ऐसी सत्ता से हो रहा है, जो मानती है कि जो भी उससे असहमत है वह राष्ट्रविरोधी है,  ‘गद्दार’ अथवा देशद्रोही है.

सबसे ज्यादा चिंता की बात जानबूझकर धर्म के आधार पर विभाजन करके चुनावी लाभ पाने का एजेंडा है जिससे सामाजिक शांति और सौहार्द बिगड़ता है. लेकिन इन सब के बावजूद, मुझे अभी भी अपने लोकतंत्र की प्रभावकारिता और भारत के लोगों की समझ पर पूर्ण विश्वास है, जिन्होंने अतीत में साबित किया है कि उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता है या उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

इसीलिए मुझे लगता है सुश्री बैशेलेट की चिंताएं भले ही उनके नजरिये से सही हों, उन्हें हमारे मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. विदेश मंत्रलय ने सही कहा है कि सीएए भारत का आंतरिक मामला है और किसी भी विदेशी पार्टी को भारत की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों पर दखल देने का कोई अधिकार नहीं है.

सीएए के मामले में एक तरफ अधिनियम का जोरदार समर्थन करने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ उसका उतने ही जोरों से विरोध करने वाले भी हैं. इस जीवंत बहस को बाधित करने का कोई भी प्रयास गलत होगा और हमारे आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने के लिए और प्रयासों को आमंत्रित करेगा. लेकिन जब तक बहस जारी है और लोकतांत्रिक तरीके से आयोजित चुनावों के जरिए इसका परीक्षण किया जाता है, यह मानने का पूरा कारण है कि हमारे पास अपनी समस्याओं को हल करने की क्षमता है.

टॅग्स :नागरिकता संशोधन कानूनकैब प्रोटेस्टसुप्रीम कोर्ट
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