पवन के. वर्मा का ब्लॉग: गांधीजी के बुनियादी सिद्धांतों को समझने की जरूरत

By पवन के वर्मा | Published: January 12, 2020 10:48 AM2020-01-12T10:48:41+5:302020-01-12T10:48:41+5:30

भाजपा का यह बहिष्कारवादी दृष्टिकोण हिंदू धर्म के पोषित सिद्धांतों के एकदम खिलाफ है. इसे रेखांकित किया जाना जरूरी है क्योंकि महात्मा गांधी ने सभी धर्मो से सर्वश्रेष्ठ ग्रहण किया था, विशेष रूप से हिंदू धर्म की उदारता से प्रेरणा ली थी.

Pawan K. Varma blog: the need to understand the basic principles of Mahatma Gandhi | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: गांधीजी के बुनियादी सिद्धांतों को समझने की जरूरत

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की फाइल फोटो।

पिछले हफ्ते मैंने महात्मा गांधी पर एक शानदार और प्रेरणादायक वृत्तचित्र देखा. इसे पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता रमेश शर्मा ने बनाया है. फिल्म ने मेरी आंखों में आंसू ला दिए. बाद में मुझे लगा कि केंद्र सरकार तो गांधीजी की 150वीं जयंती धूमधाम से मना रही है, वहीं भाजपा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गांधीजी की विरासत और संदेश को मिटा रही है.

महात्मा गांधी ने परस्पर सद्भाव और सभी धर्मो के प्रति सम्मान पर बहुत जोर दिया था. वे पक्के हिंदू थे, लेकिन वचन और कर्म से ऐसे व्यक्ति थे जिसने एक समावेशी भारत की कल्पना की थी, जहां सभी भारतीय, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, समानता के साथ रहेंगे और राष्ट्रीय मुख्यधारा का हिस्सा होंगे.

भाजपा का वैश्विक नजरिया इसके विरोध में है. उसके नेता, प्रवक्ता और संबद्ध संगठन हिंदू राष्ट्र के बारे में खुलकर और बार-बार बात करते हैं और राष्ट्र को इस रूप में देखते हैं, जहां केवल हिंदुओं का एकाधिकार हो.

भाजपा का यह बहिष्कारवादी दृष्टिकोण हिंदू धर्म के पोषित सिद्धांतों के एकदम खिलाफ है. इसे रेखांकित किया जाना जरूरी है क्योंकि महात्मा गांधी ने सभी धर्मो से सर्वश्रेष्ठ ग्रहण किया था, विशेष रूप से हिंदू धर्म की उदारता से प्रेरणा ली थी. उपनिषदों ने कहा है : ‘एकम् सद्विप्रा बहुधा वदंति’ अर्थात सत्य एक है, विद्वान लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में इस बात पर जोर दिया गया है : ‘आ नो भद्रा: क्रतवो यंतु विश्वत’ अर्थात सभी दिशाओं से अच्छे विचार हमारे पास आएं.

हमारे ऋषियों ने घोषणा की थी : ‘उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात उदार हृदय वालों के लिए पूरी दुनिया परिवार के समान है. आदि शंकराचार्य ने  घोषणा की थी कि एकमात्र वास्तविकता ब्रह्म की सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय चेतना है और अन्य सभी मानव निर्मित विभेद महत्वहीन हैं.

भाजपा के नेता अक्सर सांप्रदायिक जहर उगलते हैं. सीएए-एनआरसी योजना उस बहुलता, समग्रता और समावेशी दृष्टि के खिलाफ है जिसके लिए गांधीजी जिये और मरे, और जो हमारे संविधान में निहित है. गांधीजी कभी भी विभाजन के पक्ष में नहीं थे. जब उन्होंने अनिच्छा से इसे स्वीकार किया तब भी वे जोर देकर कहते थे कि पाकिस्तान के विपरीत भारत कट्टर धार्मिक राज्य नहीं बनेगा, बल्कि उन सभी धर्मो के लोगों का आश्रय स्थल बनेगा जो यहां रहते आए हैं.

अहिंसा गांधीजी के विश्वास से जुड़ी हुई थी. लिंचिंग जैसे क्रूर हिंसक कृत्य - और वह भी हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर- से उन्हें गहरी पीड़ा हुई होती.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हालिया बयान से भी वे बहुत आहत हुए होते, जिसमें उन्होंने सीएए का विरोध करने वालों से बदला लेने की बात कही है.

निस्संदेह, सीएए का विरोध करने वालों द्वारा की गई हिंसा गलत थी. लेकिन पुलिस द्वारा किया गया असंगत बलप्रयोग गांधीजी के सिद्धांतों का मजाक उड़ाता है. जेएनयू में छात्रों और संकाय सदस्यों के खिलाफ गुंडों की संगठित हिंसा का सबसे खराब उदाहरण देखा गया.

गांधीजी को एक तरफ आधिकारिक रूप से धूमधाम से याद करना और दूसरी तरफ उनके विश्वासों को ध्वस्त करने वाले सारे कार्य करना एक क्रूर मजाक ही है. अंतत: तो गांधीजी एकजुट भारत चाहते थे, जहां सभी धर्मो के लोग सम्मान और समानता के साथ रह सकें. इसी से सामाजिक सद्भाव कायम हो सकता है जो कि खुशहाल और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए जरूरी है. गांधीजी के इसी बुनियादी पहलू को समझ कर उसके अनुसार काम करने की जरूरत है.

Web Title: Pawan K. Varma blog: the need to understand the basic principles of Mahatma Gandhi

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