पवन के. वर्मा का ब्लॉग: चुनाव परिणाम सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए सबक

By पवन के वर्मा | Published: November 3, 2019 07:16 AM2019-11-03T07:16:19+5:302019-11-03T07:16:19+5:30

सच्चाई यह है कि भाजपा ने बुरा प्रदर्शन तो नहीं किया है लेकिन उम्मीदों के अनुरूप भी वह नतीजे नहीं दे पाई है. हरियाणा में उसे भारी जीत की उम्मीद थी और उसने नारा भी दिया था : ‘अबकी बार पचहत्तर पार.’ लेकिन पार्टी वहां बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी.

Pawan K. Varma blog: election results lessons for both the ruling and the opposition | पवन के. वर्मा का ब्लॉग: चुनाव परिणाम सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए सबक

पवन के. वर्मा का ब्लॉग: चुनाव परिणाम सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों के लिए सबक

तेजी से घूमते घटनाचक्र के बीच हम प्राय: किसी विशेष बदलाव के प्रति ठंडे दिमाग से सोचने-समझने से महरूम रह जाते हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र राज्य विधानसभा के हाल ही में संपन्न चुनाव ऐसा ही एक बिंदु है. परिणाम सामने आने के बाद कुछ टीकाकारों ने समय से पहले ही भाजपा के अवसान की बात कहनी शुरू कर दी तो अन्य ने भगवा पार्टी के निरंतर वर्चस्व बनाए रखने का स्तुतिगान किया. 

मेरे विचार में दोनों निष्कर्ष हकीकत से दूर थे. सच्चई हमेशा की तरह इन दोनों के बीच थी. दोनों राज्यों में भाजपा की निरंतर बढ़त कायम रही है. दोनों राज्यों में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. महाराष्ट्र में उसका स्ट्राइक रेट भी प्रभावशाली था, क्योंकि पिछले बार के मुकाबले कम सीटों पर चुनाव लड़कर भी उसने 105 सीटें हासिल कीं. हरियाणा में भी एंटी-इनकंबेंसी को मात देते हुए वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. जाहिर है कि 2019 के आम चुनाव में शानदार जीत का मोमेंटम अभी भी नजर आ रहा है.

सच्चाई यह है कि भाजपा ने बुरा प्रदर्शन तो नहीं किया है लेकिन उम्मीदों के अनुरूप भी वह नतीजे नहीं दे पाई है. हरियाणा में उसे भारी जीत की उम्मीद थी और उसने नारा भी दिया था : ‘अबकी बार पचहत्तर पार.’ लेकिन पार्टी वहां बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी. महाराष्ट्र में उम्मीद थी कि भाजपा-शिवसेना मिलकर 200 सीटों का आंकड़ा पार कर लेंगी, लेकिन वे मुश्किल से 160 सीटों के आसपास सिमट कर रह गईं.

भाजपा के लिए अगर चीजें बिल्कुल गलत नहीं हुईं तो पूरी तरह से सही भी नहीं हुईं. स्पष्ट रूप से हिंदुत्व और अतिराष्ट्रवादी बयानों के संयोजन से भाजपा को जिस लाभ की उम्मीद थी वह उसे नहीं मिला. अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाने की पार्टी की बड़ी उपलब्धि की तुलना में मतदाताओं को स्थानीय मुद्दों और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों तथा बेरोजगारी व किसानों की बदहाली की ज्यादा चिंता थी. यहां तक कि बिहार में भी, जहां पांच सीटों पर उपचुनाव हुए, एनडीए का प्रदर्शन कमजोर रहा और वह सिर्फ एक सीट जीत सकी. वहां फायदा अप्रत्याशित रूप से राजद जैसी पार्टी को मिला, जिसे लोग विघटन के कगार पर मान रहे थे.

यहां विपक्ष के लिए भी कुछ महत्वपूर्ण सबक हैं. वह बहुत ही अनमने ढंग से चुनाव मैदान में उतरा था. उसके पास कोई सुनियोजित रणनीति नहीं थी, महत्वपूर्ण फैसले अंतिम क्षणों में लिए गए, चुनाव प्रचार बहुत जोरदार नहीं था और अपने आपको उसनेभाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. इसका अपवाद केवल शरद पवार थे जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में भी पूरे जोश के साथ महाराष्ट्र में  चुनाव लड़ा और आश्चर्य नहीं कि राकांपा ने अपेक्षा से बहुत अच्छा प्रदर्शन किया.

कहा जा सकता है कि अपनी ढिलाई के बावजूद विपक्ष ने आश्चर्यजनक ढंग से बेहतर प्रदर्शन किया. उदाहरण के लिए, हरियाणा में कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव के मात्र कुछ दिन पहले कार्यभार सौंपा. यदि कुछ माह पहले ही उन्हें जिम्मेदारी सौंप दी जाती तो परिणाम कांग्रेस के लिए और बेहतर हो सकता था. तथ्य यह है कि विपक्ष ने मतदाताओं को प्रभावित नहीं किया बल्कि मतदाताओं ने ही विपक्ष को खड़ा किया. इसलिए विपक्ष, खासकर कांग्रेस के लिए इससे बहुत सबक लेने की जरूरत है.

हमारे जैसे जीवंत लोकतंत्र में प्रभावी विपक्ष का होना जरूरी है. अब यह विपक्ष पर है कि वह खुद को मजबूत बनाने का प्रयास करे. भाजपा के लिए इन चुनावों का सबक यह है कि वह अर्थव्यवस्था की सच्चाई का सामना करने से इनकार न करे और हिंदुत्व की राजनीति तथा अतिराष्ट्रवादी बयानों की सीमाओं को समङो. आखिरकार तो वोटर ही राजा होता है.

Web Title: Pawan K. Varma blog: election results lessons for both the ruling and the opposition

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