पानी को सहेज कर ही बच पाएंगे संकट से
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 6, 2018 07:47 AM2018-08-06T07:47:55+5:302018-08-06T07:47:55+5:30
क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि बारिश का इतना सारा पानी आखिर जाता कहां है?
पंकज चतुर्वेदी
कहा जा रहा है कि देश के एक तिहाई हिस्से में बरसात कमजोर है और वहां सूखे के हालात की संभावना है। दूसरी तरफ देश के कई हिस्सों में पानी तबाही मचाए हुए है। खासकर महानगर व बड़े शहर जो कि पूरे साल बूंद-बूंद पानी को तरसते हैं, थोड़ी सी बरसात से पानी-पानी हो रहे हैं। लेकिन विडंबना है कि पानी से लबालब दिख रही प्रकृति कुछ ही दिनों में पानी के लिए तरसती दिखेगी। बारीकी से देखें तो पानी की कमी से ज्यादा उसको व्यर्थ करने या अपेक्षित रूप से संचय नहीं कर पाने का ही परिणाम होता है कि हम पानी की कमी का रोना रोते हैं। खासतौर पर इस समय जब पानी की अफरात है, उसे सालभर संचय करने के लिए उसके आवक-जावक पर नजर रखना जरूरी है। जान लें कि बाढ़ और सूखा प्रकृति के दो पहलू हैं, बिल्कुल धूप और छांव की तरह, लेकिन बारिश बीतते ही देश भर में पानी की त्राहि-त्राहि की खबरें आने लगती हैं।
क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि बारिश का इतना सारा पानी आखिर जाता कहां है? इसका कुछ हिस्सा तो भाप बनकर उड़ जाता है और कुछ समुद्र में चला जाता है। कभी सोचा आपने कि यदि इस पानी को अभी सहेज कर न रखा गया तो भविष्य में क्या होगा और कैसे पूरी होगी हमारी पानी की आवश्यकता। दुनिया के 1.4 अरब लोगाों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है।
प्रकृति जीवनदायी संपदा यानी पानी हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है और इस चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ है हमारी जिंदगी का थम जाना। हमारा देश वह है जिसकी गोदी में हजारों नदियां खेलती थीं, आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड़ों में रह गई हैं। आखिर कहां गईं ये नदियां कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ें, हमारे गांव-मोहल्लों तक से तालाब, कुएं, बावड़ी आदि लुप्त हो रहे हैं। पानी की कमी, मांग में वृद्धि तो साल-दर-साल ऐसी ही रहेगी। अब मानव को ही बरसात की हर बूंद को सहेजने और उसे किफायत से खर्च करने पर विचार करना होगा।
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