समेकित विकास से ही बचाया जा सकता है अंडमान का पर्यावरण

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: September 19, 2025 07:43 IST2025-09-19T07:42:29+5:302025-09-19T07:43:41+5:30

कोई 72,000 करोड़ रुपए की एकीकृत परियोजना में एक मेगा पोर्ट, एक हवाई अड्डा परिसर, 130 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत शहर, सौर और गैस आधारित बिजली संयंत्र के निर्माण शामिल हैं.

Only integrated development can save the environment of Andaman | समेकित विकास से ही बचाया जा सकता है अंडमान का पर्यावरण

समेकित विकास से ही बचाया जा सकता है अंडमान का पर्यावरण

क्या विकास के प्रतिमान में आदिम लोगों के नैसर्गिक पर्यावास, जीवन शैली, बोली-भाषा को संरक्षित करने की कोई नीति नहीं है? हिंद महासागर में 572 द्वीपों का समूह अंडमान निकोबार इन दिनों ऐसे ही द्वंद्व से गुजर रहा है. ये द्वीप इंडोनेशिया और थाईलैंड के पास हैं. 2013 में इसे यूनेस्को के जैवमंडल कार्यक्रम (ह्यूमन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम) में शामिल किया गया. यह जगह समृद्ध जैव विविधता और वन्यजीवों की असाधारण विविधता का घर है.

सरकार के अनुसार, यह दुनिया में सबसे अच्छी तरह से संरक्षित उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में से एक है. ग्रेट निकोबार द्वीप में मेगा डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत सितंबर, 2020 में उस समय हुई थी जब कोविड के चलते दुनिया थमी हुई थी. उस समय  नीति आयोग ने मास्टर प्लान तैयार करने के लिए ‘रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी)’ जारी किया था.
कोई 72,000 करोड़ रुपए की एकीकृत परियोजना में एक मेगा पोर्ट, एक हवाई अड्डा परिसर, 130 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत शहर, सौर और गैस आधारित बिजली संयंत्र के निर्माण शामिल हैं.

यहां आने वाले सालों में कोई चार लाख बाहरी लोगों, अर्थात वर्तमान आबादी के कई हजार प्रतिशत को बसाने की योजना है. मार्च, 2021 में गुरुग्राम स्थित एक परामर्श एजेंसी एईकॉम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 126 पेजों की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) जारी की थी. इसकी रिपोर्ट पाते ही वन तथा पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति लेने की औपचारिकता शुरू हो गई.

द्वीप में जीवों की 330 प्रजातियां दर्ज की गई हैं जबकि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के अध्ययन के अनुसार, इसकी संख्या दोगुना से अधिक, यानी 695 है. यह रिपोर्ट यह भी कहती है कि ग्रेट निकोबार से दूसरी जगह किसी प्रवासी पक्षी की सूचना नहीं मिली है जबकि यह सर्वविदित है कि यह द्वीप विश्व स्तर पर दो महत्वपूर्ण पक्षी फ्लाईवे की जगह है, अर्थात जिस रास्ते से होकर प्रवासी पक्षी भारत आते हैं. इसके साथ ही ग्रेट निकोबार में प्रवासी पक्षियों की 40 से अधिक प्रजातियां दर्ज की गई हैं.

निकोबार में विकास की योजना में विरली प्रजाति के आदिवासियों के साथ भी ‘शब्द-भ्रम’ खेला गया. विशेष रूप से संवेदनशील पांच जनजातीय समूहों- ग्रेट अंडमानी, जारवा, ओंज, शोम्पेन और उत्तरी सेंटिनली के नैसर्गिक आवास को नजरंदाज किया गया. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि ‘आदिवासियों के अधिकारों की अच्छी तरह से रक्षा की जाएगी और उनका ध्यान रखा जाएगा.’ लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि ‘जब भी परियोजना के निष्पादन हेतु भूमि के मौजूदा नियमों/नीतियों/कानून से कोई छूट प्रदान करने की आवश्यकता होगी, तो यह निदेशालय सक्षम प्राधिकारी से उस प्रभाव के लिए आवश्यक छूट की मांग करेगा.’

उल्लेखनीय है कि ग्रेट निकोबार ‘निकोबार द्वीप समूह’ का सबसे दक्षिणी द्वीप है. यहां 1,03,870 हेक्टेयर के विलक्षण और संकटग्रस्त उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित हैं.  यह बहुत ही समृद्ध और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें एंजियोस्पर्म, फर्न, जिम्नोस्पर्म, ब्रायोफाइट्स की 650 प्रजातियां शामिल हैं. अगर यहां का पर्यावरण बचाना है तो एकांगी के बजाय समेकित विकास का नजरिया अपनाना होगा.

Web Title: Only integrated development can save the environment of Andaman

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