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ब्लॉग: पहले नूपुर शर्मा, फिर अग्निपथ और अब जदयू से तनातनी.....एक के बाद एक मुश्किलों से जूझ रही भाजपा

By हरीश गुप्ता | Updated: June 23, 2022 10:49 IST

भाजपा भले ही चुनावी जीत की सफलता लगातार हासिल कर रही है पर उसके सामने भी कई मुश्किलें हैं। फिर चाहे नूपुर शर्मा विवाद हो या अग्निपथ स्कीम पर मचा घमासान, जर्मनी दौरे से पहले पीएम नरेंद्र मोदी इन परेशानियों से पार पाना चाहते हैं।

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ऐसा लगता है कि भाजपा अपनी क्षमता से अधिक काम करने का प्रयास कर रही है. वह संघ परिवार के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा खड़ी की जाने वाली परेशानी के बावजूद नूपुर शर्मा मामले को संभालने में कामयाब रही. विवाद अब धीमी मौत मर रहा है. लेकिन अग्निपथ विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भाजपा को अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए अपने सहयोगी दलों और अन्य के समर्थन की जरूरत है. 

प्रधानमंत्री जी7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए जर्मनी का दौरा कर रहे हैं, जहां वे प्रवासी भारतीयों को भी संबोधित करेंगे. इसलिए वे जाने से पहले इन विवादों का अंत चाहते थे. लेकिन मोदी के सामने एक नया सिरदर्द है - भाजपा और जनता दल (यू) के बीच बढ़ता तनाव, हालांकि मामला सुलझाने के प्रयास जारी हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिन-ब-दिन भाजपा के खिलाफ मुखर होते जा रहे हैं और प्रदेश के भाजपा नेता उन्हें उसी तरह से जवाब भी दे रहे हैं. 

नीतीश कुमार के आक्षेप भाजपा को पटखनी देने की व्यापक योजना का हिस्सा हैं या महज नकली द्वंद्वयुद्ध? उन्होंने 2012 में यूपीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को वोट दिया था, जब वे एनडीए का हिस्सा थे. 2017 में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट दिया, हालांकि वे तब यूपीए के साथ थे. 

नीतीश ने इस बात की भी परवाह नहीं की थी कि यूपीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मीरा कुमार बिहार से ताल्लुक रखती हैं. अब इस बार एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू अगर ओडिशा से आने वाली आदिवासी हैं तो विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं. हालांकि जदयू ने द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी  का स्वागत करते हुए उनको अपना समर्थन घोषित कर दिया है.

आरसीपी सिंह की पहेली

सभी की निगाहें अब केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह की किस्मत पर टिकी हैं. वे कभी नीतीश कुमार के पसंदीदा थे, जिनका उदय चमत्कारिक रहा है. वे 2003 में रेल मंत्रालय में नीतीश कुमार के निजी सचिव थे और बाद में उन्हें राज्यसभा की सीट दी गई. नीतीश ने उन्हें जनता दल (यू) का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया. जैसे कि यह पर्याप्त नहीं था, नीतीश कुमार ने उन्हें मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में जद (यू) कोटे के तहत नामित किया. लेकिन उतना ही उथल-पुथल भरा उनका पतन भी है. 

सिंह के नजरों से गिरने का कारण क्या है, दोनों के बीच क्या हुआ, इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. नीतीश उनसे इतने नाराज थे कि उन्होंने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने से इनकार कर दिया. तकनीकी रूप से सिंह 7 जुलाई तक राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने तक पद पर बने रह सकते हैं. लेकिन राजनीतिक रूप से, नीतीश कुमार के नाराज होने और राज्यसभा टिकट देने से इनकार करने के बाद सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे देना चाहिए. 

मोदी आरसीपी सिंह को बर्खास्त करेंगे या सांसद न होने पर भी उन्हें अपना मंत्री पद बरकरार रखने की अनुमति देंगे, इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है. ऐसी खबरें भी हैं कि कैबिनेट में फेरबदल कभी भी हो सकता है क्योंकि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कार्यकाल अगले महीने की शुरुआत में खत्म हो रहा है. लेकिन किसी को भी यह पता नहीं है कि क्या जद (यू) आरसीपी सिंह के स्थान पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए मोदी को एक वैकल्पिक नाम भेजेगा. इस बीच आरसीपी सिंह आध्यात्मिक गुरुओं और योग गुरुओं से मुलाकात कर रहे हैं.

अंदरूनी सिरदर्द

अपने पक्ष के दो नेता भी प्रधानमंत्री और भाजपा के लिए सिरदर्द बने हैं. भाजपा के  ‘युवा तुर्क’ नेता वरुण गांधी 2014 में मोदी को विरासत में मिले थे, जब उन्होंने कमान संभाली थी, जबकि सत्यपाल मलिक उनकी अपनी पसंद हैं. कहा जाता है कि मोदी 2014 में भी वरुण गांधी को लोकसभा का टिकट देने के खिलाफ थे, लेकिन वे तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के कहने पर मान गए.

 पिछले फेरबदल में मंत्री पद से चूकने वाले वरुण गांधी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए प्राय: रोज ही एक ट्वीट पोस्ट कर रहे हैं. आठ बार की लोकसभा सांसद उनकी मां मेनका गांधी इस बार सरकार में शामिल नहीं की गईं. सूत्रों की मानें तो वरुण गांधी भाजपा से निष्कासित होना चाहते हैं ताकि वे पार्टी से बाहर एक नया सफर तय कर सकें. लेकिन मोदी उन्हें उपकृत करने के मूड में नहीं हैं. 

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मामला अधिक जटिल है. पद पर रहते हुए वे मोदी सरकार के खिलाफ रोजाना कोई न कोई तीखा हमला कर रहे हैं. एक बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर सरकार जनता के खिलाफ जाती है तो जनता को उसे उखाड़ फेंकना चाहिए. 

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