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ब्लॉग: अब खतरनाक रूप लेने लगा है देश में शहरीकरण

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 30, 2024 11:37 IST

देश इस वक्त भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। गर्मी का प्रकोप मनुष्य की सहनशक्ति से बाहर होता जा रहा है।

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ठळक मुद्देबढ़ते तापमान के लिए कांक्रीट के बढ़ते जंगलों को जिम्मेदार ठहराया गया है हरियाली की नई जगह, नए तालाब, जलाशय नहीं बनाए जा रहे हैं, इससे तापमान बढ़ रहा हैदेश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि शहरों के विकास को ही देश के विकास का पैमाना मान लिया गया

देश इस वक्त भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। गर्मी का प्रकोप मनुष्य की सहनशक्ति से बाहर होता जा रहा है। बुधवार को बिहार में प्रचंड गर्मी के कारण बड़ी संख्या में विद्यार्थी बेहोश हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। बढ़ते तापमान के लिए आम तौर पर जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़ा कारण बताया जाता है। विभिन्न अध्ययनों से भी यही निष्कर्ष निकलता है लेकिन तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि के लिए बढ़ता शहरीकरण भी जिम्मेदार है। जिस भूखंड पर एक मकान हुआ करता था, उसी पर अब दर्जनों फ्लैटवाली अट्टालिकाएं बनने लगी हैं।

शहरों में पेड़ों, घने वृक्षों के परिसरों, तालाबों, जलाशयों की जगहों पर कांक्रीट के जंगल खड़े होने लगे हैं।इसके कारण बड़े शहरों में तापमान बढ़ने लगा है। एक जमाने में जिन शहरों में भीषण गर्मी के दिनों में भी रातें ठंडी हुआ करती थीं, वहां अब एयर कंडीशनर तथा कूलर के बिना रात गुजरना मुश्किल हो गया है।सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट नामक संस्था की ताजा रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के लिए कांक्रीट के बढ़ते जंगलों को जिम्मेदार ठहराया गया है।

इस संस्था ने 24 वर्षों तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई के तापमान का अध्ययन किया। संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े शहरों में जगह की कमी के कारण ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी की जा रही हैं। ये इमारतें हरियाली वाले क्षेत्रों, पुराने जलाशयों, तालाबों को खत्म कर बनाई जा रही हैं। उनकी जगह हरियाली की नई जगह, नए तालाब, जलाशय नहीं बनाए जा रहे हैं। इससे तापमान बढ़ रहा है। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि शहरों के विकास को ही देश के विकास का पैमाना मान लिया गया।

गांव तथा कस्बे विकास के लिहाज से उपेक्षित रह गए। इससे वहां रोजगार के परंपरागत अवसर भी खत्म होते चले गए। ज्यादा लागत, कम आमदनी, वर्षा की अनियमितता के कारण लोग खेती से विमुख होने लगे हैं। ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों में ब्रांडेड कंपनियों के आकर्षण के चलते कुटीर उद्योग भी दम तोड़ रहे हैं।इससे रोजगार एवं बेहतर जिंदगी की तलाश में ग्रामीण युवाओं का पलायन बड़े शहरों की तरफ होने लगा।इससे महानगरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी और उसी अनुपात में मकानों की मांग में भी तेजी से वृद्धि हुई। महानगरों में जमीन सीमित होने के कारण हरियाली की कीमत पर ऊंची इमारतों का निर्माण होने लगा। पेड़ों की जगह बहुमंजिला इमारतें खड़ी होने से तापमान में भी वृद्धि होने लगी।

शहरीकरण का स्तर पांच दशक पहले ही खतरनाक रूप लेने लगा था लेकिन उसे रोकने के लिए किसी सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए। जलवायु परिवर्तन के प्रति आगाह करने वाले विशेषज्ञ बार-बार सरकार को चेतावनी देते रहे लेकिन बड़े शहरों के विकास को देश के विकास का पैमाना मान चुकी सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2001 में देश की लगभग 28 प्रतिशत आबादी ही शहरी क्षेत्रों में रहती थी। 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 33.6 प्रतिशत हो गया और एक अनुमान के मुताबिक अब करीब 37 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लग गई है। 2050 तक देश की आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी। इन लोगों की रोजगार के अलावा अन्य जरूरतें भी हैं। इनमें सबसे बड़ी जरूरत सिर छुपाने के लिए छत की है। ऐसे में शहरों में सीमेंट-कांक्रीट के जंगल बढ़ते ही जाएंगे।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस सदी के अंत तक तापमान में डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है। अब भी सबकुछ नियंत्रण से बाहर नहीं हुआ है। महानगरों के विकास को लेकर सरकार को अपनी धारणा बदलनी होगी। ग्रामीण तथा कस्बाई क्षेत्रों के विकास पर उसे ध्यान केंद्रित करना होगा।

वहां रोजगार के नए अवसर सृजित करने होंगे तथा कृषि को लाभदायक व्यवसाय बनाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। शहरीकरण पर लगाम कसकर हम तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं। 

 

टॅग्स :हीटवेवभारतीय मौसम विज्ञान विभागदिल्लीभारत
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