हाल ही में हमने मुंबई में अत्यंत भयंकर चक्रवात तौकते को अपना कहर बरपाते देखा था. उसके बाद मुंबई में मानसून ने अपने आगमन के पहले ही दिन शहर को अस्त-व्यस्त करके रख दिया. इस बार भी ग्लोबल वार्मिग प्रमुख भूमिका निभा रही है. मौसम विशेषज्ञों के अनुसार मानसून की शुरुआत के साथ ही वातावरण में भरपूर नमी होती है और समुद्र की सतह का तापमान अभी भी बहुत गर्म है. यह भारतीय घाटियों में बनने वाली गहनता प्रणाली को बढ़ावा देना जारी रखेगा.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मौसम विज्ञान, पुणो के जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, ‘महासागर और वायुमंडलीय स्थितियां अभी भी मौसम प्रणालियों के तेज होने के लिए बहुत अनुकूल हैं. हालांकि चक्रवातों के बाद समुद्र की सतह में कुछ ठंडक आई है, लेकिन समुद्र का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक के तापमान के साथ गर्म बना हुआ है. ये गर्म समुद्री सतह के तापमान और कम ऊध्र्वाधर पवन बंगाल की उत्तरी खाड़ी के ऊपर एक निम्न दबाव प्रणाली के निर्माण और तीव्र होने के लिए अनुकूल है. इस तरह की घटनाओं की प्रवृत्ति बढ़ रही है जिसके फलस्वरूप पश्चिमी तट और मध्य भारत में भारी बारिश हो रही है.’
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय भारत में उष्णकटिबंधीय चक्र वात बढ़ रहे हैं, अनियोजित विकास इन शहरों की भेद्यता में इजाफा करता है. उदाहरण के लिए, पिछले एक दशक में भारत में बाढ़ से तीन अरब डॉलर की आर्थिक क्षति हुई है. कई अध्ययनों का दावा है कि भारत के सबसे बड़े तटीय शहर जैसे मुंबई और कोलकाता जलवायु-प्रेरित बाढ़ से सबसे गंभीर खतरों का सामना कर रहे हैं.
मुंबई और कोलकाता में बाढ़ को जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, समुद्र के स्तर में वृद्धि और अन्य क्षेत्नीय कारकों के प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. पृथ्वी विज्ञान मंत्नालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई क्षेत्न समुद्र के स्तर में वृद्धि, तूफान की वृद्धि और अत्यधिक वर्षा के कारण जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील है. पिछले 20 वर्षो के दौरान, मुंबई ने पहले ही सन् 2005, 2014, 2017 में बड़े पैमाने पर बाढ़ की घटनाओं को देखा है.
दूसरी ओर, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि परंपरागत रूप से सूखाग्रस्त जिलों ने पिछले एक दशक में अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं और तूफानी लहरों की ओर एक बदलाव दिखाया है. इसके अतिरिक्त, पिछले 50 वर्षो में महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति में छह गुना वृद्धि हुई है. ये रुझान इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि जलवायु की अप्रत्याशितता कैसे बढ़ रही है, जिससे जोखिम मूल्यांकन एक बड़ी चुनौती बन गया है, जिसमें जटिल आपदाएं व खतरे बढ़े हैं.