निरंकार सिंह का ब्लॉगः 40 लाख लोग जलवायु संकट को दूर करने के लिए सड़कों पर उतरे, गांधी की राह पर ही बचेगी दुनिया
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 26, 2019 07:53 PM2019-09-26T19:53:20+5:302019-09-26T19:54:18+5:30
वैज्ञानिकों ने 5 करोड़ साल से ज्यादा पहले के काल के वार्मिग मॉडल के अध्ययन के बाद यह आशंका जताई है. अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं ने पहली बार सफलतापूर्वक एक जलवायु मॉडल का उपयोग किया जो आदिकाल की ग्लोबल वार्मिग से मिलता-जुलता है.
दुनिया के 163 देशों के 40 लाख लोग जलवायु संकट को दूर करने के लिए सड़कों पर उतरे. इसी महीने संयुक्त राष्ट्र युवा जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले इन प्रदर्शनकारियों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम उठाने की मांग की है.
उधर धरती के बढ़ते तापमान से जलवायु जिस तरह से बदल रही है, अब वह हमारे अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है. भविष्य में ग्लोबल वार्मिग में तेजी आ सकती है क्योंकि आने वाले समय में कार्बन- डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में और ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है.
वैज्ञानिकों ने 5 करोड़ साल से ज्यादा पहले के काल के वार्मिग मॉडल के अध्ययन के बाद यह आशंका जताई है. अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के शोधकर्ताओं ने पहली बार सफलतापूर्वक एक जलवायु मॉडल का उपयोग किया जो आदिकाल की ग्लोबल वार्मिग से मिलता-जुलता है.
सवाल है कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क्या किया जाए. क्या हम जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का समापन या प्रबंधन कर सकते हैं? विकास के प्रचलित मॉडल पर चलते हुए तो हम इसका समाधान नहीं खोज सकते हैं. इस संकट का अनुमान महात्मा गांधी ने पहले ही लगा लिया था.
उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि आधुनिक सभ्यता, प्रकृति का ध्यान नहीं रखती है और मनुष्य प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रहते हुए अपनी इच्छाओं को घटाने के लिए तैयार नहीं होता है तो अनेक प्रकार के सामाजिक-राजनीतिक उथलपुथल, पारिस्थितिकीय विनाश तथा मानव समाज के लिए अन्य दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियां जन्म लेंगी.
तथ्य यह है कि मानव समाज ने संसाधनों का जरूरत से ज्यादा दोहन ही नहीं किया है बल्कि मनुष्य तथा प्रकृति के बीच के मौलिक तादाम्य को तोड़ दिया है. गांधी इस तादाम्य के बारे में सजग थे. गांधी का विचार था कि पृथ्वी सभी मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है, लेकिन किसी के भी लालच की पूर्ति नहीं हो सकती है.
हमारे पास गांधी की ओर लौटने के सिवा कोई रास्ता नहीं है. महात्मा गांधी का स्वराज या स्वशासन तथा स्वदेशी के माध्यम से लोगों का अपने वातावरण (पर्यावरणीय, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक) को नियंत्रित करने का दृष्टिकोण आज के बाजार संचालित पूंजीवादी तरीके के विकास की तुलना में विश्व को ज्यादा संतुलित और पर्यावरण-पूरक विकास की ओर ले जाने में ज्यादा सक्षम है.