New Education Policy: नई शिक्षा नीति से आगे देखने की जरूरत?, महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात व उत्तर प्रदेश के अभिभावकों का मानना...
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 22, 2024 06:08 IST2024-11-22T06:05:40+5:302024-11-22T06:08:13+5:30
New Education Policy: भाजपा सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति (एनईपी) के बावजूद शिक्षा के मानकों और सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं.

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New Education Policy: कुछ दिन पहले की बात है, एक मशहूर दंत चिकित्सक दोस्त ने इस बात पर प्रश्न किया कि उनकी बेटी विदेश से भारत क्यों लौटे, जहां वह मैनेजमेंट कोर्स की पढ़ाई करने गई थी. एक और दोस्त, जो आईएएस अधिकारी हैं, ने तुरंत डॉक्टर का समर्थन किया और कहा कि वह देश में उच्च शिक्षा की स्थिति को अच्छी तरह से जानते हैं और यही बेहतर होगा कि बिटिया अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई विदेश में ही करे. ऐसा विचार रखने वाले वे लोग अकेले नहीं हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात व उत्तर प्रदेश के सैकड़ों अभिभावकों का दृढ़ता से मानना है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में तेजी से गिरावट आ रही है और भाजपा सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति (एनईपी) के बावजूद शिक्षा के मानकों और सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं.
रात्रि भोज के दौरान हुई यह बातचीत और अकादमिक हलकों में तथा उसके बाहर भारत के शिक्षा परिदृश्य पर केंद्रित मेरी बातचीत ने, कम कठोर शब्दों में भी कहा जाए तो, मुझे काफी उदास कर दिया. हाल ही में आई ‘ओपन डोर्स रिपोर्ट-2024’ में अमेरिका में अध्ययन के लिए जाने वाले छात्रों के बारे में बताया गया है कि भारत उस देश में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को भेजने वाला शीर्ष देश है.
‘सर्वकालिक उच्चतम’ आंकड़ा कहता है कि शैक्षणिक वर्ष 2023-24 में 3,31,602 भारतीय छात्रों ने दाखिला लिया, जो भारत से अमेरिका जाने वाले 2022-23 के सत्र से 23 प्रतिशत अधिक है. यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अधिक से अधिक युवा बेहतर शिक्षा के लिए महंगे देश में जाने हेतु भारत छोड़ रहे हैं. उनमें से कुछ अमीर हो सकते हैं लेकिन सभी नहीं.
मैं ब्रिटेन के विश्वस्तर पर प्रशंसित विश्वविद्यालयों या सिंगापुर या ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में जाने वाले छात्रों के बारे में बात तो कर ही नहीं रहा हूं. हम यह भी न भूलें कि बहुत से छात्रों को यूक्रेन जैसे छोटे से देश से निकाला जाना पड़ा, जहां वे भारत से मेडिकल की डिग्री लेने गए थे. युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकासी वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सराहनीय कदम था.
लेकिन उन कारणों के बारे में क्या जिन्होंने उन्हें भारत छोड़कर बहुत छोटे देश में जाने के लिए मजबूर किया? हमने, एक राष्ट्र के रूप में, उस मुद्दे पर चर्चा करना ही बंद कर दिया है, हालांकि भारत में चिकित्सा शिक्षा के मानक और सुविधाएं अगर अन्य विकसित देशों से नहीं तो यूक्रेन से तो बेहतर ही हैं.
हमारी परीक्षा व्यवस्था और नीट, जेईई या सीयूईटी में पेपर लीक होना अच्छी सार्वजनिक नीतियों के संकट का परिणाम है. कुलपतियों (या निजी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपतियों) के शिक्षा मानकों से लोगों के मन में उनकी योग्यता के बारे में संदेह बढ़ रहा है. भारत भर में उच्च शिक्षा संस्थानों के कई कुलपति या निदेशक वित्तीय अनियमितताओं के लिए पकड़े गए हैं;
कुछ ठीक से अंग्रेजी नहीं लिख सकते थे; और कुछ कुलपतियों पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया गया था. परिसरों में शैक्षणिक माहौल किसी भी तरह से योग्यता को बढ़ावा नहीं दे रहा है. पुस्तकालय लगभग हमेशा सुनसान रहते हैं. मौलिक शोध कार्य संस्थानों की प्राथमिकता नहीं है.
एक तरफ केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और दूसरे भाजपा नेता यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे सभी विश्वविद्यालय और केंद्रीय शिक्षा संस्थान अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अंदर से हालात बहुत ज्यादा भयावह हैं. भाजपा, जिसके कई नेता आरएसएस द्वारा शुरू किए गए सरस्वती शिशु मंदिर के छात्र रहे हैं, शिक्षा को उतनी गंभीरता से क्यों नहीं ले रही है जितना कि उसे लेना चाहिए. अगर हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली इतनी ही शानदार होती, तो हम भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की वृद्धि नहीं देख पाते.
यह ग्राफ लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है क्योंकि एशियाई और यूरोपीय देशों के विश्वविद्यालय नई-नई शाखाएं यहां खोल रहे हैं. धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, ताकि ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों द्वारा भारत में अपनी शाखाएं खोलने करने की संभावना का पता लगाया जा सके. क्या इसका मतलब यह है कि हम सर्वश्रेष्ठ देने में पीछे हैं?
यहां पहले से ही कई विदेशी विश्वविद्यालय मौजूद हैं, जो भारतीय विश्वविद्यालयों को टक्कर दे रहे हैं. एक तरह से यह अच्छा ही है क्योंकि इससे भारतीय विश्वविद्यालयों को छात्रों के लाभ के लिए अपनी व्यवस्था, संकाय और सुविधाओं में सुधार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. परंतु क्या ऐसा हो रहा है?
असल समस्या उन लोगों के बारे में है जो विदेश जाना या उच्च शिक्षा के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेना वहन नहीं कर सकते. डिजिटल क्रांति और नई शिक्षण विधियों के दौर में, भारतीय छात्रों को भी सीखने के लिए समुचित, लेकिन किफायती अवसर मिलना चाहिए. भारत में शैक्षणिक माहौल राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण प्रदूषित होता जा रहा है, जिससे शैक्षणिक स्तर पर बुरा असर पड़ रहा है.
हमारे कोई भी विश्वविद्यालय या आईआईएम, आईआईटी जैसे संस्थान वैश्विक मानकों के आसपास नहीं हैं, लेकिन हम लगातार ‘विश्व-गुरु’ होने की बात करते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा का स्तर और सुविधाएं इतनी दयनीय हैं कि हम उनकी तुलना किसी छोटे यूरोपीय देश से भी नहीं कर सकते, इंग्लैंड या अमेरिका की तो बात ही छोड़िए.