दुर्घटनाओं के लिए निश्चित ही लापरवाही जिम्मेदार

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 17, 2025 07:59 IST2025-06-17T07:58:43+5:302025-06-17T07:59:15+5:30

स्थानीय अधिकारियों को जिस सख्ती के साथ नियमों का पालन कराना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है. डीजीसीए इन लापरवाहियों को रोकने के लिए  क्या कदम उठा रहा है, यह भी पता चलना मुश्किल है.

Negligence is definitely responsible for accidents | दुर्घटनाओं के लिए निश्चित ही लापरवाही जिम्मेदार

दुर्घटनाओं के लिए निश्चित ही लापरवाही जिम्मेदार

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि पुणे जिले की मावल तहसील के कुंडमाला गांव में पुल टूटने का मामला हो या फिर उत्तराखंड में एक के बाद एक हेलिकॉप्टर हादसे, इन सभी के लिए किसी न किसी की लापरवाही जिम्मेदार है. सबसे पहले बात इंद्रायणी नदी पर बने पुल की. वहां कुछ मौतें हुई हैं तो बहुत से लोग घायल हुए हैं. अब कहा यह जा रहा है कि वह पुल यातायात के लिए बंद था फिर भी लोग नदी का प्रवाह देखने के लिए वहां जा पहुंचे. पुल डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों का भार वहन नहीं कर सका और टूट गया.

प्रत्यक्षदर्शियों ने यह भी कहा है कि कुछ लोग तो दोपहिया वाहन लेकर भी पुल पर पहुंच गए थे. अब सवाल यह है कि पुल यदि यातायात के लिए बंद था तो क्या उसकी बैरिकेडिंग इस तरह की गई थी कि कोई व्यक्ति पुल पर पहुंच ही न पाए! नहीं, ऐसी कोई बैरिकेडिंग नहीं थी. कौन जिम्मेदार है इसके लिए? यदि आशंका थी कि पुल टूट सकता है तो ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए थी कि लोग वहां पहुंच नहीं पाएं.

प्रशासनिक अधिकारियों के दिमाग में यह बात तो आनी ही चाहिए थी कि रविवार को लोग वहां बारिश के कारण पहुंच सकते हैं तो कम से कम गार्ड की व्यवस्था वहां कर दी जाती ताकि लोगों को पुल पर जाने से रोका जाता! जाहिर सी बात है कि अधिकारियों ने लापरवाही बरती.

इसके साथ ही जो लोग नदी का प्रवाह देखने के लिए पुल पर पहुंचे, क्या उन्हें अंदाजा नहीं था कि यह पुल कमजोर और जंग लगा हुआ है, यह जानलेवा साबित हो सकता है! मगर हकीकत यह है कि आम आदमी भी इतना लापरवाह होता है कि इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं देता.

यह पहला मौका नहीं है कि कोई पुल धराशायी हो गया हो. देश के विभिन्न हिस्सों से इस तरह की खबरें आती रहती हैं. कई हादसे तो ऐसे हुए हैं कि पुल अधूरा बना था और ड्राइविंग करते हुए लोग अचानक नीचे गिर पड़े. निर्माण के दौरान ही पुल गिर जाने की तो न जाने कितनी घटनाएं हुई हैं. अभी मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में भी एक निर्माणाधीन पुल टूट गया और 6 मजदूर घायल हो गए. यदि लापरवाही न हो तो क्या इस तरह के हादसे होंगे? बिल्कुल नहीं होंगे! लेकिन हमारे देश में ‘चलता है’ और ‘कुछ नहीं होगा’ वाली प्रवृत्ति इस तरह हावी है कि उससे सहज ही लापरवाही जन्म ले लेती है.

अब उत्तराखंड में एक के बाद एक हो रहे हेलिकॉप्टर हादसों को ही देखें. 8 मई से 15 जून के बीच पांच हादसे हुए हैं. मुद्दा यह नहीं है कि इन हादसों में कितने लोग मरे. मामला यह है कि हादसे हुए क्यों? तकनीकी खराबी की बात कह देना गले नहीं उतरता. हकीकत यह है कि हेलिकॉप्टर संचालित करने के लिए जिन नियमों का सख्ती से, बल्कि यूं कहें कि जीरो टॉलरेंस नीति के अनुरूप पालन करना चाहिए, क्या उसका पालन किया जा रहा है.

यह बात सामने आ चुकी है कि ज्यादातर हेलिकॉप्टर ईंधन और समय बचाने के लिए निर्धारित ऊंचाई से कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं. यहां तक कि गौरीकुंड और केदारनाथ के बीच संकरी घाटी से भी हेलिकॉप्टर उड़ान भरने से परहेज नहीं करते हैं.

यह सभी को पता है कि घाटियों के बीच धुंध होती है और दृश्यता कम हो जाती है. इसके बावजूद हेलिकॉप्टर को उड़ान भरने की अनुमति मिल जाती होगी तभी तो इतने हादसे हो रहे हैं. केदारनाथ में कुल 9 कंपनियां हेलिकॉप्टर सेवा का संचालन कर रही हैं. स्थानीय अधिकारियों को जिस सख्ती के साथ नियमों का पालन कराना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है. डीजीसीए इन लापरवाहियों को रोकने के लिए  क्या कदम उठा रहा है, यह भी पता चलना मुश्किल है.

किसी भी दुर्घटना के बाद यह तो कहा जाता है कि जांच होगी लेकिन जांच में क्या निकला, यह किसी को पता नहीं चलता और यह भी पता नहीं चलता कि भविष्य में ऐसी कोई दुर्घटना रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. 37 दिनों में एक ही इलाके में 5 हेलिकॉप्टर दुर्घटनाएं गंभीर चिंता का विषय है लेकिन क्या अधिकारियों को कोई चिंता हो रही है?

Web Title: Negligence is definitely responsible for accidents

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