अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: पंजाब में राजनीतिक सर्कस से हो सकता है कांग्रेस को नुकसान

By अभय कुमार दुबे | Published: July 28, 2021 10:21 AM2021-07-28T10:21:37+5:302021-07-28T10:23:03+5:30

पंजाब के मतदाता हैरत में हैं कि कांग्रेस के अदर ये यह हो क्या रहा है. पंजाब के चुनाव में कांग्रेस अगर जीतते-जीतते रह गई तो इसका ठीकरा अमरिंदर सिंह के नहीं बल्कि आलाकमान के दर पर फूटेगा.

Navjot Sidhu vs Amarinder Singh Political circus in Punjab may harm Congress | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: पंजाब में राजनीतिक सर्कस से हो सकता है कांग्रेस को नुकसान

पंजाब में राजनीतिक सर्कस से हो जाएगा कांग्रेस का नुकसान (फोटो- ट्विटर)

कौन नहीं जानता कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सोनिया गांधी के बीच बहुत अच्छे संबंध रहे हैं. 2014 में जब जेटली को सिद्धू की जगह अमृतसर से टिकट मिला तो सोनिया ने अमरिंदर को फोन किया कि वे वहां से लोकसभा का चुनाव लड़ें. 

हालांकि इससे पहले अमरिंदर लोकसभा का चुनाव न लड़ने का मन बना चुके थे, फिर भी सोनिया के आग्रह का आदर करते हुए वे तैयार हो गए और जेटली को हरा दिया. लेकिन अब अमरिंदर को साफ दिखाई दे रहा है कि सोनिया भी उस तरह से उनके साथ नहीं रह गई हैं. 

दिल्ली में सोनिया से मिलने के बाद से ही वे यह समझ गए थे कि अब सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष बनने से नहीं रोका जा सकता. जो भी हो, अमरिंदर को इस समय नहीं पता है कि चुनाव के बाद आलाकमान से उनके पक्ष में संदेश आएगा या उनका ताज सिद्धू को पहना दिया जाएगा.

क्या नवजोत सिंह सिद्धू के रूप में कांग्रेस का हाईकमान पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा मुख्यमंत्री पद का एक वैकल्पिक उम्मीदवार तैयार कर रहा है? अगर सिद्धू को केवल संगठन की कमान देने का इरादा होता तो फिर वे विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में जुटाने की मुहिम क्यों चलाते? 

सिद्धू की गतिविधियां देख कर ऐसा लगता है कि जैसे विधायक दल के नेता का चुनाव हो रहा हो. जो विधायक सिद्धू के साथ गलबहियां डाले दिख रहे हैं, उन्हें यह पक्की उम्मीद होगी कि ऐसा करके वे अगले विधानसभा चुनाव में एक बार फिर टिकट मिलने की गारंटी कर ले रहे हैं. 

दरअसल, वे सिद्धू में एक साथ तीन खूबियां देख रहे हैं. पहली, वे कांग्रेस आलाकमान के खासुलखास हैं. उनके तार सीधे प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी से जुड़े हैं. दूसरे, अध्यक्ष के रूप में पार्टी का चुनाव चिह्न् किसी भी उम्मीदवार को सिद्धू की मुहर और दस्तखतों के बिना नहीं मिलेगा. तीसरे, अगर कांग्रेस फिर से चुनाव जीती तो पार्टी के भीतर अमरिंदर सिंह को विधायक दल के नेता के लिए सिद्धू के जरिये ही चुनौती दिलवाई जाएगी. 

कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि अगली बार अमरिंदर सिंह के लिए सिद्धू को रोकना बहुत मुश्किल होगा. यह सही है कि पंजाब के ज्यादातर कांग्रेस सांसद सिद्धू के साथ नहीं हैं. लेकिन सिद्धू को इसकी परवाह नहीं है. लोकसभा चुनाव अभी बहुत दूर है. जब आएगा, तब देखी जाएगी.

गनीमत है कि बेरोकटोक चल रही अंतर्कलह के बावजूद इस समय कांग्रेस अकाली दल से बहुत आगे है. पंजाब की यह अंतर्कलह कहां से आई? इसकी मैन्युफैक्चरिंग पंजाब में नहीं, बल्कि दिल्ली में हुई है. सिद्धू जब अमृतसर से भाजपा के सांसद थे तो उनकी हैसियत क्या थी? क्या वे पंजाब भाजपा के कोई बड़े नेता थे? वे सिर्फ एक मुखर नेता थे जो अलंकारिक भाषा बोल कर अपनी ओर ध्यान खींचता था. 

उनका एक यूएसपी उनका पूर्व-क्रिकेटर होना और टीवी पर हिंदी-अंग्रेजी में दिलचस्प कमेंट्री करना भी था. इसके अलावा उनके पास कोई राजनीतिक पूंजी नहीं थी.

भाजपा ने जब उनका टिकट काटा तो सिद्धू नाराज हो गए. उन्होंने यह परवाह भी नहीं की कि यह टिकट उस व्यक्ति को दिया गया जिसे वे अपना राजनीतिक गुरु मानते थे- अरुण जेटली को. इसके बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी में जाने की कोशिश की. जब वहां उनकी पटरी नहीं बैठी तो वे कांग्रेस में चले गए. 

कांग्रेस का आलाकमान अमरिंदर सिंह की खुदमुख्तारी से अनमना रहता है. इसलिए उसने सिद्धू को शह देनी शुरू कर दी. कहा जाता है कि सिद्धू प्रियंका गांधी की व्यक्तिगत पसंद हैं. यह देख कर अमरिंदर सिंह विरोधी खेमा भी सिद्धू के साथ जुड़ गया (यह अलग बात है कि नई परिस्थितियों में राज्य के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा अमरिंदर के साथ खड़े हो गए हैं). यह राजनीतिक सर्कस लगातार चल रहा है. कांग्रेस अपनी संभावनाएं कमजोर कर रही है. 

पंजाब के मतदाता हैरत में हैं कि यह हो क्या रहा है. अगर पंजाब के चुनाव में कांग्रेस जीतते-जीतते रह गई तो इसका ठीकरा अमरिंदर सिंह के दरवाजे पर नहीं बल्कि आलाकमान के दर पर फूटेगा.

पंजाब का चुनाव किसान आंदोलन के सामने भी दुविधा पेश करने वाला है. इस आंदोलन ने पंजाब में भाजपा को पूरी तरह से सिफर कर दिया है. लेकिन दोनों मुख्य पार्टियां (कांग्रेस और अकाली दल) खुद को इस आंदोलन के समर्थक के रूप में पेश करती हैं. 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में तो वे भाजपा का विरोध करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे, लेकिन पंजाब में भाजपा कोई ताकत ही नहीं है. ऐसे में समर्थन देने के सवाल पर आंदोलन में कुछ मतभेद भी पैदा हो सकते हैं.

Web Title: Navjot Sidhu vs Amarinder Singh Political circus in Punjab may harm Congress

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