विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः नारे नहीं, योजनाओं का क्रियान्वयन चाहिए

By विश्वनाथ सचदेव | Published: June 4, 2020 06:27 AM2020-06-04T06:27:14+5:302020-06-04T06:27:14+5:30

पिछले चुनाव से पहले भाजपा ने ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का नारा दिया था और अधिसंख्य राज्यों में उसे सफलता मिल भी गई थी, पर इस दौरान भाजपा का नेतृत्व जिस तरह की राजनीतिक चालें चलता रहा, वह यही बताता है कि वह अपने राजनीतिक हितों से किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है- फिर भले ही कीमत कितनी और कैसी ही क्यों न चुकानी पड़े.

Narendra modi government, No slogans are needed, implementation of schemes, coronavirus | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः नारे नहीं, योजनाओं का क्रियान्वयन चाहिए

फाइल फोटो

छह साल पहले शुरू हुआ देश की नई सरकार का सफर अब अपने दूसरे दौर में है. दूसरे दौर का पहला साल भी पूरा हो चुका है. जिस भारी बहुमत के साथ देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को दूसरी बार सत्ता सौंपी और जिस तेजी के साथ उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की, वह सब एक नए विश्वास का परिचय देने वाली बात है. स्वाभाविक है एक साल पूरा होने का जश्न सरकार जोश-खरोश से मनाए. लेकिन कोरोना-काल की त्रासदी ने इस जोश को ठंडा कर दिया है. फिर भी सरकार इस अवसर का लाभ उठाने से वंचित नहीं रहना चाहती और ‘आत्म-निर्भरता’ के नए नारे के साथ उसने एक अभियान की शुरुआत भी कर दी है. 

प्रधानमंत्री ने एक लम्बी चिट्ठी देश की जनता के नाम लिखी है. यह सरकार की अब तक की उपलब्धियों के दावे का बयौरा मात्र नहीं है, नए नारों के साथ नए संकल्पों की सूची भी है. जनता इस कवायद को किस रूप में देखती है, और मोदी-सरकार को इसका किस तरह का प्रतिसाद मिलता है, यह तो आने वाला कल ही बताएगा, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं कि भाजपा अपने नए नारे का लाभ उठाने में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. और इसमें कुछ गलत भी नहीं है.

गलत यदि कुछ है तो वह यह है कि राष्ट्रीय आपदा के इस दौर में भी राजनीतिक हानि-लाभ के हिसाब-किताब से बचने की कोई कोशिश सरकार नहीं कर रही या नहीं करना चाहती. इस आपदा के दौरान भी गैर भाजपाई राज्य यह शिकायत करने के लिए विवश लग रहे हैं कि उनके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है. भाजपा का नेतृत्व, स्वाभाविक है, इस आरोप को गलत बता रहा है, पर बिहार और पश्चिम बंगाल में, जहां आगामी चुनाव बहुत दूर नहीं है, जिस तरह की गतिविधियों में भाजपा-नेतृत्व लगा दिख रहा है, वह इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि चुनावी सफलता उसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.

ज्ञातव्य है कि पिछले चुनाव से पहले भाजपा ने ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का नारा दिया था और अधिसंख्य राज्यों में उसे सफलता मिल भी गई थी, पर इस दौरान भाजपा का नेतृत्व जिस तरह की राजनीतिक चालें चलता रहा, वह यही बताता है कि वह अपने राजनीतिक हितों से किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है- फिर भले ही कीमत कितनी और कैसी ही क्यों न चुकानी पड़े.

कोरोना का मुकाबला करने के लिए लॉकडाउन करना, भले ही वह विवशतावश ही क्यों न हो, एक जरूरी और सही कदम था. सारे देश ने इसका समर्थन किया. पर भाजपा का नेतृत्व इस बात का जवाब नहीं दे पाया कि यह निर्णय लेने में विलंब क्यों हुआ. जनवरी में ही इस महामारी के आसार दिखने लगे थे; चीन, इटली, स्पेन आदि में इसका तांडव भी दिखने लगा था, फिर हमने लॉकडाउन जैसी जरूरी कार्रवाई करने के लिए इतना इंतजार क्यों किया? यह आरोप अब भी हवा में है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की भारत-यात्रा की ‘सफलता’ को देश की जनता के हितों पर तरजीह क्यों दी गई? आरोप यह भी लगा कि भाजपा मध्यप्रदेश में तख्ता-पलट की योजना को क्रि यान्वित करने में लगी थी.

लॉकडाउन एक जरूरी कदम था यह सही है, पर जिस तरह से यह कदम उठाया गया, और इसके बाद जिस तरह की कार्रवाई हुई, उस पर लगे सवालिया निशानों के बारे में सरकार ने कुल मिलाकर एक चुप्पी ही साध रखी है. फिर करोड़ों लोगों का पलायन एक त्रासदी ही नहीं है, कुल मिलाकर एक आपराधिक दस्तावेज है एक कारुणिक त्रासदी को न समझने और उसकी अनदेखी करने का.  

इस कार्यकाल की सफलता के दावों में कश्मीर से धारा 370 हटाने, तीन तलाक का मामला, राम मंदिर के निर्माण का शुरू होना, नागरिकता संशोधन कानून का लागू किया जाना आदि को गिनाया जाता है. यह सब भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में था, इसलिए सरकार को इस ‘सफलता’ का श्रेय ओढ़ने का हक है. हां, इस सबके औचित्य-अनौचित्य पर बहस हो सकती है. जिस तरह से यह सब हुआ है, उस पर सवालिया निशान भी लग सकता है. जिस तरह से ये प्रश्न उठाने वाले ‘राष्ट्रद्रोही’ घोषित किए जाते रहे, सवाल उस पर भी उठते हैं. इन और ऐसे सवालों के जवाब देने की आवश्यकता भाजपा का नेतृत्व नहीं समझता. वह यह तो कहता है कि कांग्रेस के साठ साल पर भाजपा के छह साल भारी पड़े हैं, पर इस दावे का कोई ठोस आधार सामने नहीं आता. नारे आकर्षक तो लगते हैं, पर नारे नहीं, उनका क्रि यान्वयन आधार होता है किसी भी सफलता का.

आज देश को स्मार्ट  सिटी नहीं, स्मार्ट गांव की आवश्यकता है.  हमारा लक्ष्य ‘न्यू इंडिया’ नहीं ‘नया भारत’ होना चाहिए. सात लाख गांवों वाला भारत. इन गांवों को आत्म-निर्भर बनाना होगा, ताकि गांव में रहने वालों को शहरों की ओर आने की विवशता न झेलनी पड़े. उन्हें वहीं रोजगार मिले. किसान की खुशहाली में निहित है भारत का विकास. यह विकास आकर्षक नारों से नहीं, ठोस योजनाओं के ईमानदार क्रि यान्वयन से ही होगा.

Web Title: Narendra modi government, No slogans are needed, implementation of schemes, coronavirus

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे