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नरेंद्रकौर छाबड़ा का ब्लॉग: अनुकरण करने के बजाय पुरुषों के लिए उदाहरण बन सकती हैं नारियां

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Updated: March 8, 2020 10:29 IST

भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत सम्मान दिया गया है. कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं. जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख से नहीं उड़ सकता, उसी प्रकार कोई भी देश या समाज स्त्री या पुरुष दोनों में से किसी एक वर्ग द्वारा उन्नति नहीं कर सकता. अगर नर-नारी में कुछ भिन्नताएं हैं तो वे भी एक-दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं.

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पूरे विश्व में आठ मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है. अमेरिका की राजनीतिक सोशलिस्ट पार्टी के तत्वावधान में सन् 1909 में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. इसका प्रमुख उद्देश्य था अमेरिकी लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी और उनको वोट देने का अधिकार दिलाना. 1910 में कोपेनहेगन सम्मेलन में महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया. भारत में 1943 में महिला दिवस पहली बार मुंबई में मनाया गया.

भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत सम्मान दिया गया है. कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं. जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख से नहीं उड़ सकता, उसी प्रकार कोई भी देश या समाज स्त्री या पुरुष दोनों में से किसी एक वर्ग द्वारा उन्नति नहीं कर सकता. अगर नर-नारी में कुछ भिन्नताएं हैं तो वे भी एक-दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं. इसीलिए धर्मशास्त्रों में नारी को नर की अर्धागिनी कहा गया है. महिला दिवस मनाने का उद्देश्य न केवल महिलाओं का सशक्तिकरण है, बल्कि एक सशक्त समाज के निर्माण में उनके योगदान को बढ़ाना है.

अगर हम इतिहास की मानें तो पाते हैं कि नारी ने पुरुष के सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए स्वयं ही जान दांव पर लगा दी. नारी के इसी पराक्रम के चलते यह कहावत सर्वमान्य हो गई कि प्रत्येक पुरुष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है. समाज निर्माण में जितना योगदान पुरुषों का होता है, उतना ही स्त्री का भी है. आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पताका फहरा रही हैं. शिक्षा, व्यापार, नौकरी, कला, विज्ञान, खेल कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है.

यह विडंबना ही है कि इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी वर्तमान में उसका अपमान, उपेक्षा, शोषण हो रहा है. चिंता की बात तो यह है कि यह दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है, चाहे वह मां हो, बेटी, बहन या बहू. महिलाओं के श्रम की अहमियत को भी ठीक से आंका नहीं गया है.

2011 की जनगणना के हिसाब से 76 प्रतिशत महिलाएं नौकरी करने के बाद भी घर के सभी काम करती हैं, लेकिन उनके घर के काम को महत्व नहीं दिया जाता. उसे श्रम की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. अगर 2020 तक भारत को बड़ी आर्थिक ताकत बनना है तो देश की महिलाओं के श्रम की महत्ता को समझना होगा. महिलाओं के श्रम को आर्थिक दृष्टि से बराबर का सम्मान देना होगा.

नारी में इतनी शक्ति है कि वह पुरुष की बराबरी के बजाय उससे आगे बढ़ सकती है. उसका अनुकरण करने के बजाय उसके लिए उदाहरण बन सकती है. इसके लिए आवश्यक है कि वह आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियों को जीवन में उतारे. मन को सुविचारों से भरे. दीन-हीन विचारों के स्थान पर दृढ़ता के विचार लाकर सकारात्मक बदलाव लाए.

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