ब्लॉग: पर्वतारोहण के लिए चाहिए फौलादी जज्बा
By रमेश ठाकुर | Published: August 1, 2023 10:46 AM2023-08-01T10:46:33+5:302023-08-01T10:48:28+5:30
पर्वतारोहण क्षेत्र की पिछले दिनों की एक दुखद घटना को सभी जानते हैं जो उत्तराखंड के पर्वतों पर हुई।
पर्वतारोहण सभी को अपनी तरफ आकर्षित करता है, पर है बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण। एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोहियों की संख्या अब गुजरे समय के मुकाबले अच्छी-खासी है।
उसकी वजह ये है कि पर्वतारोहण के लिए राज्य सरकारें अब हरसंभव सहयोग करती हैं। बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है, प्रशिक्षण का प्रावधान है जिसमें शारीरिक-मानसिक रूप से खिलाड़ियों को मजबूत किया जाता है, जबकि एक वक्त था जब इस ओर हुकूमतों का ध्यान ज्यादा नहीं हुआ करता था।
पर्वतारोहण की पहली शर्त होती है तन और मन दोनों को फौलादी बनाना क्योंकि इस खेल में डर के आगे ही जीत होती है। आज मंगलवार को राष्ट्रीय पर्वतारोहण दिवस है जो इन बातों का बुनियादी रूप से ऐसे खिलाड़ियों को एहसास करवाता है, जो इस खेल में भाग लेने की सोचते हैं। पहाड़ चढ़ने के वक्त पर्वतारोहियों के साथ सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं हाइपोथर्मिया के चलते होती हैं।
जब शरीर का तापमान तेजी से गिरने लगता है तो उसे हाइपोथर्मिया कहते हैं ऐसे में खिलाड़ियों की सोचने और पर्वत पर चढ़ने की क्षमता कम हो जाती है।
पर्वतारोहण के दौरान ट्रेनिंग में कमी भी जानलेवा साबित होती है. कई बार अनुभवी प्रशिक्षक भी पर्वतारोहण के दौरान मौसम के मिजाज को नहीं समझ पाते या फिर संभावित खतरों को हल्के में लेते हैं।
जो बिन बुलाए हादसों का कारण बन जाते किसी भी पर्वत को चढ़ने से पहले पर्वतारोही के लिए सरकारी गाइडलाइन्स का फॉलो करना जरूरी होता है क्योंकि अब सरकार की ओर से कई सुविधाएं और मुआवजे का प्रावधान है।
पर्वतारोहण क्षेत्र की पिछले दिनों की एक दुखद घटना को सभी जानते हैं जो उत्तराखंड के पर्वतों पर हुई। उत्तरकाशी की द्रौपदी डांडा-2 पर्वत चोटी के पास हुए हिमस्खलन में करीब 26 पर्वतारोहियों की असमय मौत हो गई, घटना में कई खिलाड़ी लापता भी हुए जिनका कोई पता नहीं चल सका।