ब्लॉग: बुढ़ापे में अपने लिए जरूर करके रखें पहले से इंतजाम
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 30, 2023 12:41 PM2023-11-30T12:41:29+5:302023-11-30T12:48:22+5:30
बिजनेसमैन विजयपत सिंघानिया ने बुजुर्गों से की अपील, ‘जीते जी कुछ न दो, विल करो।’ एक इतना बड़ा व्यक्ति किस मोड़ पर पहुंच गया, जिसने एक कंपनी को मेहनत से खड़ा किया था, वो लोगों से, सभी माता-पिता से प्रार्थना कर रहा है कि अपने जीते जी अपनी प्रॉपर्टी न बच्चों के नाम करो, न उनको गिफ्ट करो।
किरण चोपड़ा: ‘जीते जी कुछ न दो, विल करो।’ यह पंक्तियां बिजनेसमैन विजयपत सिंघानिया ने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू कहीं। वरिष्ठ नागरिक केसरी में बुजुर्गों के लिए काम करते 20 साल हो गए, ऐसे बहुत से केस मेरे सामने आए। इसके बारे में मैंने 7 किताबें भी लिखीं, जिसमें रियल बातें हैं, कोई स्टोरी नहीं परंतु जब मैं सिंघानिया का इंटरव्यू सुन रही थी, तब भी मेरी आंखें नम हो गईं।
एक इतना बड़ा व्यक्ति किस मोड़ पर पहुंच गया, जिसने एक कंपनी को मेहनत से खड़ा किया था, वो लोगों से, सभी माता-पिता से प्रार्थना कर रहा है कि अपने जीते जी अपनी प्रॉपर्टी न बच्चों के नाम करो, न उनको गिफ्ट करो। उनके हिसाब से सभी माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करते हैं, उनको जिंदगी की सारी खुशियां देना चाहते हैं, परंतु वही बच्चे जब उनको सबकुछ मिल जाता है तो बदल जाते हैं।
मेरे पास बहुत से ऐसे माता-पिता आते हैं, जो रोते हुए यह भी कहते हैं कि उन्होंने अपना सबकुछ बेटों को दे दिया तो उसके बाद वो यह कहते हैं आपने हमारे लिए कुछ अलग से नहीं किया। जन्म दिया था तो पालना भी था और यह हमारा हक है। वो अपना फर्ज भूल जाते हैं।
ऐसे भी लोग आते हैं, जिनके बच्चे उन्हें पूजते हैं, ईश्वर का दर्जा देते हैं। कितनी दुखद बात है कि सारी उम्र तिनका-तिनका जोड़कर कड़ी मेहनत कर बुढ़ापे को सुखद बनाने के लिए लोग घर बनाते हैं, जमीन-जायदाद बनाते हैं। बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान खड़ा करते हैं, परंतु वो संपत्ति कभी-कभी उनके लिए अभिशाप बन जाती है।
ऐसे ही एक मां मेरे सामने आई, जिसके बेटे-बहू ने उन्हें जबरदस्ती डरा-धमका कर दुनिया की नजर में सेवा का ढोंग करते हुए अपने पास रखा हुआ था और उसने जबरदस्ती सारी वसीयत, प्रॉपर्टी, कंपनी के शेयर अपने नाम करवा लिए। वो मां जाने-अनजाने में अपने बड़े बेटे और बहू-पोतों के साथ अन्याय कर बैठी।
जब उसको अपनी गलती का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बड़ा बेटा दुनिया छोड़ कर जा चुका था। जाते-जाते मां ने अपनी बहू से माफी मांगी और अपनी गलती पर पछतावा भी किया। बहुत आशीर्वाद भी दिए परंतु उसका क्या फायदा। सो कहीं-कहीं बुजुर्ग भी दबाव में आकर गलती कर जाते हैं।
मेरा मानना है कि 65 के बाद हर बुजुर्ग को अपनी वसीयत के बारे में विचार कर लेना चाहिए और वसीयत तैयार करनी चाहिए कि उनके जाने के बाद किसको क्या मिले, पर जीते जी नहीं देना चाहिए।
कैसी विडंबना है! बचपन में हमारे मां-बाप हमें उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं, आज हम क्यों नहीं उनकी बाजू पकड़ कर चल सकते, उनका सहारा बन सकते, जब उन्हें हमारे सहारे की जरूरत है। हालांकि, ऐसे भी परिवार कम नहीं, जहां माता-पिता को आज के जमाने में भी पूजा जाता है।