ये चुनाव और राजनीति का वो जमाना..., जनता ने 5 वर्षों के लिए विजय वरदान दिया?

By विजय दर्डा | Updated: November 25, 2024 05:40 IST2024-11-25T05:39:20+5:302024-11-25T05:40:46+5:30

Maharashtra Election Results 2024 Updates: बाबूजी के भीतर भी महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महान लोगों के जेहन से उपजा सपना पल रहा था.

Maharashtra Election Results 2024 Updates This era of elections and politics blog Dr Vijay Darda | ये चुनाव और राजनीति का वो जमाना..., जनता ने 5 वर्षों के लिए विजय वरदान दिया?

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Highlightsमैंने जब होश संभाला, तब मेरे परिवेश में राजनीति की खुशबू पल-बस रही थी.सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखे जा रहे थे. महान नेताओं, उनकी नीतियों और उनके सपने के बारे में अक्सर बताया करते थे.

Maharashtra Election Results 2024 Updates: आज जब मेरे बाबूजी वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी जवाहरलालजी दर्डा की 27वीं पुण्यतिथि है, तब अपने महाराष्ट्र में राजनीति चरम पर है. चुनाव हो चुके हैं और सरकार बस बनने ही वाली है. जनता ने जिसे बेहतर समझा उसे पांच वर्षों के लिए विजय वरदान दिया है. बाबूजी की पुण्यतिथि पर मुझे तो वो जमाना याद आ रहा है, जब राजनीति काफी हद तक स्वच्छ हुआ करती थी. मगर आज क्या हालात हैं, यह किसी से छिपा नहीं है इसलिए इस बार के कॉलम में थोड़ी चर्चा इसी बात पर! मैंने जब होश संभाला, तब मेरे परिवेश में राजनीति की खुशबू पल-बस रही थी.

राजनेताओं के मन में सदियों से दमित देश को दुनिया के फलक पर तेजी से लाने और मजबूत बनाने की जिद पल रही थी. सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखे जा रहे थे. बाबूजी के भीतर भी महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे महान लोगों के जेहन से उपजा सपना पल रहा था.

बाबूजी हमें इन महान नेताओं, उनकी नीतियों और उनके सपने के बारे में अक्सर बताया करते थे. आम आदमी की बदहाली को लेकर उनकी वेदना भी बातचीत में छलक आया करती थी. वे चाहते थे कि मैं और मेरा छोटा भाई राजेंद्र देश की बुनियादी स्थितियों को समझें, इसलिए उन्होंने वर्षों हमें भारतीय रेल के तीसरे दर्जे में सफर कराया ताकि हम आम आदमी की वेदना को समझ सकें और हमारे भीतर करुणा पैदा हो. बाबूजी नहीं चाहते थे कि हम दोनों भाई राजनीति में जाएं. 1962 की बात है जब वसंतराव नाईक ने उनसे पूछा कि बच्चों को राजनीति से क्यों दूर रखते हैं.

बाबूजी ने तब कहा था कि हमारा दौर अलग था, अब राजनीति में जाति, धर्म और ईर्ष्या हावी होगी. मैं नहीं चाहता कि दोनों बच्चों में निराशा और कुंठा पैदा हो या फिर इतर समाज के लिए द्वेष पैदा हो. दोनों भाई राजनीति से अलग ही रहें तो बेहतर है. हालांकि नियति को कुछ और मंजूर था. 1998 में बालासाहब ठाकरे नागपुर स्थित हमारे निवास यवतमाल हाउस में पधारे और कहा कि मैं तुम्हें राज्यसभा में भेजना चाहता हूं. मेरी मां ने कहा कि यदि राज्यसभा में जाना ही है तो पहले सोनिया गांधी से बात करो. मैं उनसे मिला, उन्होंने कहा कि देखती हूं.

इस बीच मेरा निर्दलीय चुनाव लड़ना तय हो चुका था. मैंने जीत हासिल की. सभी दलों के वोट मुझे मिले. मैं धन्यवाद देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के पास गया तो उन्होंने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि वक्त आने पर अपने नेता से दोस्ती कर लेना. वही हुआ भी. माधवराव सिंधिया ने एक दिन कहा कि सोनिया गांधी मिलना चाहती हैं.

मैं उनसे मिला और उसके बाद के वर्षों में कांग्रेस ने मुझे दो और कार्यकाल दिए. राजनीति में राजेंद्र का आना भी अचानक ही हुआ. माधवराव सिंधिया और ए.आर. अंतुले जैसे नेता चाहते थे कि राजेंद्र औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजी नगर) से चुनाव लड़ें क्योंकि वे बहुत लोकप्रिय हैं. राजेंद्र विजयी हुए और पहली ही बार में मंत्री भी बने. बाद के दो और टर्म में भी वे मंत्री रहे.

कहने का आशय यह है कि राजनीति में हमारी एक्सीडेंटल एंट्री हुई. लेकिन हमने वास्तव में राजनीति नहीं की बल्कि हम बाबूजी की सीख के अनुरूप लोकनीति पर चलकर लोककल्याण के काम में लगे रहे हैं.
बाबूजी के जमाने में राजनीति की खास बात यह थी कि दलों और विचारों की भिन्नता के बावजूद एक-दूसरे के लिए कहीं भी मनभेद नहीं था.

अभी-अभी निपटे चुनाव में ही आपने देखा कि राजनेताओं ने किस तरह के निम्नस्तरीय हमले किए. घर-परिवार तक को घसीटा गया. चुनाव के दौरान मैं बार-बार यही सोचता रहा कि राजनीति इस तरह की क्यों होती जा रही है? अपने इसी कॉलम में मैंने पहले लिखा था कि खुद के खिलाफ चुनावी सभा में अटल बिहारी वाजपेयी को पहुंचाने के लिए बाबूजी ने कार की व्यवस्था की थी!

एक और प्रसंग मुझे याद आ रहा है. गोविंदराव बुचके यवतमाल जिला परिषद में चुनाव लड़ रहे थे. ग्रामीण इलाके में सभा के लिए जाते हुए उनकी कार खराब हो गई. कुछ ही देर में वहां से बाबूजी गुजरे. उन्होंने बुचके को उनके सभा स्थल तक अपनी कार में पहुंचाया. आज किसी राजनेता से आप ऐसी उम्मीद कर सकते हैं?

यह बाबूजी की सीख ही है कि मैं या राजेंद्र भले ही कांग्रेस में हैं मगर सभी दलों के राजनेताओं के साथ रिश्तों में मधुरता है. सदन में चर्चा के दौरान दूसरे दलों के सांसदों के साथ विभिन्न विषयों पर मेरी तीखी बहस होती थी लेकिन कुछ घंटों बाद ही हम संसद के सेंट्रल हॉल में साथ चाय पी रहे होते थे. बाबूजी कहा करते थे कि अपने विचारों पर दृढ़ रहो लेकिन दूसरों के विचारों का भी सम्मान करो.

विचारों की भिन्नता ही नई सोच को जन्म देती है इसलिए दूसरों को सुनना बहुत जरूरी है. आज क्या कोई किसी को सुनना चाहता है? आज तो आप यदि मतभिन्नता प्रकट करते हैं तो आपको देशद्रोही की श्रेणी में रखने वालों की कमी नहीं है. जब महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव चल रहा था, तब मुझे बाबूजी से सुना वह प्रसंग याद आ रहा था कि किस तरह अटल बिहारी वाजपेयी सदन में जवाहरलाल नेहरू पर तीखे हमले करते थे लेकिन सेंट्रल हॉल में मिलने के बाद पंडित नेहरू उन्हें शाबाशी देना नहीं भूलते थे- ‘तुमने बहुत ही अच्छा बोला!’ वाजपेयी भी उनका बहुत सम्मान करते थे. उन्होंने मुझे खुद एक प्रसंग सुनाया था.

1977 में विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी ने गौर किया कि साउथ ब्लॉक में टंगी नेहरू की तस्वीर गायब है. उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि तस्वीर कहां गई? अधिकारी लज्जित हुए और उसी दिन तस्वीर फिर से टंग गई. लेकिन बीते चुनाव में राजनीति के भीतर सम्मान को तार-तार होते देखना दुखद था. खासतौर पर हिंसा की घटनाओं ने मुझे बहुत व्यथित किया है.

हमारा महाराष्ट्र ऐसा तो कतई नहीं था! अब नए दौर में मैं राजनीतिक दलों से गुजारिश करूंगा कि जीत-हार से अलग हटकर वे एक-दूसरे को सम्मान दें. सम्मान से मुझे बाबूजी के दौर की एक घटना याद आ गई. यवतमाल स्थानीय निकाय के चुनाव में बाबूजी को हरा दिया गया था.

जांबुवंतराव धोटे का एक तरह से वह राजनीतिक जन्म था. धोटे का विजय जुलूस जब गांधी चौक पर पहुंचा तो बाबूजी ने वहां पहुंच कर धोटे को माला पहनाई और बधाई दी. महाराष्ट्र को आगे ले जाना है तो आज इसी तरह के बड़े दिल वाली राजनीति की जरूरत है. वो जमाना बहुत याद आता है.

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