लोकमत संपादकीयः राजनीतिक जंग में तब्दील हुई चिटफंड की लड़ाई
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 5, 2019 05:32 AM2019-02-05T05:32:53+5:302019-02-05T05:32:53+5:30
ऐन लोकसभा चुनाव के पूर्व सीबीआई ने जिस अप्रत्याशित रूप से तेजी दिखाई और मुख्यमंत्री के भरोसेमंद अफसर कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार पर हाथ डालने का प्रयास किया, वह निश्चित रूप से संदेहों को जन्म देता है.
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को लेकर प. बंगाल तथा केंद्र सरकार के बीच अभूतपूर्व टकराव देखने को मिल रहा है. आजाद भारत के इतिहास में यह शायद पहला मौका है जब एक पुलिस अफसर के लिए कोई मुख्यमंत्री केंद्र से सीधे टकरा रहा हो. देश में संघीय ढांचा है और ममता बनर्जी सरकार तथा केंद्र के बीच सीधे टकराव से उसकी जड़ें कमजोर हो सकती हैं एवं भविष्य में भी ऐसे टकराव को प्रोत्साहन मिल सकता है.
यह बहस का विषय हो सकता है कि शारदा चिटफंड घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की ताजा कार्रवाई केंद्र के इशारे पर हो रही है या नहीं, वह वैध है या नहीं अथवा ममता बनर्जी जो कुछ कर रही हैं वह राज्यों के मामले में केंद्र के हस्तक्षेप के खिलाफ है या वह अपना राजनीतिक स्वार्थ साधना चाहती हैं. देश के संविधान में संघीय ढांचे की संकल्पना है. इसमें केंद्र तथा राज्यों के कार्यक्षेत्रों का दायरा स्पष्ट किया गया है. इसके कारण देश में संघीय ढांचा सफलतापूर्वक काम भी कर रहा है.
साठ साल पहले केरल में ई.एम.एस. नंबूदिरीपाद के नेतृत्व वाली देश की पहली वामपंथी सरकार की बर्खास्तगी हो या सन् 1977 में कांग्रेस शासित राज्यों की विधानसभा भंग करने का मसला हो, राजनीतिक तूफान खूब उठा, संबंधित केंद्र सरकारों पर बदले की भावना से काम करने का आरोप भी लगा, मगर केंद्र व राज्य के बीच इतना गंभीर टकराव देखने को नहीं मिला. ताजा घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि देश में राजनीति का स्तर कितना गिरता जा रहा है. सीबीआई को सत्तारूढ़ दल के हाथों का खिलौना बनाने के आरोप अब चकित नहीं करते.
अलग-अलग दलों के शासन में सीबीआई जिस तरह से काम करती है, उससे उसकी विश्वसनीयता लगातार कम होती जा रही है. जहां तक शारदा चिटफंड घोटाले का सवाल है, सीबीआई इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पिछले छह साल से कर रही है. इस सिलसिले में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के चार सांसदों को वह गिरफ्तार भी कर चुकी है, मगर ऐन लोकसभा चुनाव के पूर्व सीबीआई ने जिस अप्रत्याशित रूप से तेजी दिखाई और मुख्यमंत्री के भरोसेमंद अफसर कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार पर हाथ डालने का प्रयास किया, वह निश्चित रूप से संदेहों को जन्म देता है.
सीबीआई इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का समुचित पालन कर सकती थी. सोमवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिना वारंट के सीबीआई द्वारा कोलकाता की कार्रवाई को जायज ठहराया है. इस सारे मामले में जो भी पक्ष सही या गलत हो, शारदा चिटफंड घोटाला पृष्ठभूमि में चला गया है. उसकी आड़ में सीबीआई को हथियार बनाकर ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच आर-पार की राजनीतिक लड़ाई छिड़ गई है. इसमें किसकी जीत होगी, यह तो समय ही बताएगा, मगर देश का संघीय ढांचा जरूर कमजोर हो जाएगा.