Lok Sabha Elections 2024: 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी बीजेपी!, सीट बंटवारे पर परिस्थिति को भांपने की कोशिश
By हरीश गुप्ता | Published: November 30, 2023 12:08 PM2023-11-30T12:08:22+5:302023-11-30T12:10:31+5:30
Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनावों के लिए सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा हो चुका है और भाजपा 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. शेष 22 सीटें शिवसेना के शिंदे गुट और एनसीपी के अजित पवार गुट के खाते में जाएंगी.
Lok Sabha Elections 2024: महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा का चेहरा और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस एक कुशल शिल्पकार भी हैं. हाल ही में, उन्होंने स्थिति को भांपने और लोगों की प्रतिक्रिया जानने के उद्देश्य से कहा कि लोकसभा चुनावों के लिए सहयोगियों के साथ सीटों का बंटवारा हो चुका है और भाजपा 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
जाहिर है, शेष 22 सीटें शिवसेना के शिंदे गुट और एनसीपी के अजित पवार गुट के खाते में जाएंगी. लेकिन हंगामा तब मचा जब सहयोगियों ने संकेत दिया कि ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. यह भी दावा किया गया कि ऐसी कोई चर्चा भी नहीं हुई. माहौल को भांपते हुए फड़नवीस ने गुस्से को शांत करने की कोशिश की.
लेकिन तथ्य यह है कि एनडीए के साझेदार इस समझ पर पहुंच गए थे कि गठबंधन के सभी मौजूदा लोकसभा सांसदों की सीटें संबंधित पार्टियों को मिलेंगी. भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 23 सीटें हासिल की थीं और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देकर हासिल की थी.
एनडीए के अन्य दो गुट इस फॉर्मूले के आधार पर 11-11 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. फडणवीस की सार्वजनिक टिप्पणियों ने शायद इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. लेकिन भाजपा 2024 में 26 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है.
भाजपा में फिल्मी सितारों की मांग
लोकसभा चुनाव भले ही अभी 6 महीने दूर हों लेकिन भाजपा नेतृत्व पांच राज्यों के चुनाव के साथ-साथ जिताऊ उम्मीदवारों के चयन में भी व्यस्त है. भाजपा मुख्यालय से आ रही रिपोर्टों से पता चलता है कि वह फिल्म उद्योग से लोकसभा चुनाव में उतारे जाने वाले नए चेहरों की तलाश कर रही है.
हेमा मालिनी पहले ही 75 साल की उम्र सीमा पार कर चुकी हैं, हो सकता है कि उन्हें इस बार मथुरा से मैदान में न उतारा जाए. सनी देओल ने भी चुनाव लड़ने की अनिच्छा जाहिर कर दी है और भाजपा को गुरदासपुर में नया चेहरा ढूंढ़ना होगा. भाजपा पहले से ही पंजाब में बिना किसी सहयोगी के कड़ी चुनौती का सामना कर रही है और नए चेहरे की तलाश कर रही है.
इसी तरह किरण खेर की भी तबीयत पिछले कुछ समय से ठीक नहीं चल रही है और भाजपा को चंडीगढ़ में नए चेहरे की जरूरत होगी. इस सिलसिले में हिंदी सिने जगत के लोकप्रिय सितारे अक्षय कुमार, कंगना रनौत और माधुरी दीक्षित का नाम सामने आ रहा है. अक्षय कुमार प्रधानमंत्री मोदी के करीबी रहे हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम का इंटरव्यू लेने के लिए एंकर भी बने थे.
कहा जा रहा है कि उन्हें दिल्ली की चांदनी चौक सीट से मैदान में उतारा जा सकता है. कंगना रनौत पहले ही राजनीति में आने की इच्छा जता चुकी हैं और उन्हें मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस की प्रतिभा सिंह के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है. माधुरी दीक्षित को भी मुंबई उत्तर या मथुरा से मैदान में उतारा जा सकता है.
लॉकेट चटर्जी (पश्चिम बंगाल) और कन्नड़ फिल्म स्टार सुमन लता (कर्नाटक) के अलावा तीन भोजपुरी अभिनेता; मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव पहले से ही भाजपा सांसद हैं. भाजपा दक्षिण के कुछ फिल्मी सितारों को भी चाहती है. हरियाणा से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए क्रिकेट स्टार वीरेंद्र सहवाग का नाम भी चर्चा में है.
वरिष्ठ नेताओं का शक्तिप्रदर्शन !
भाजपा नेतृत्व को कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि पार्टी में पुराने नेता जगह छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं. उनके लिए कर्नाटक के ताकतवर लिंगायत नेता बी.एस. येदियुरप्पा आदर्श हैं. जिस तरह से येदियुरप्पा यह सुनिश्चित करने में सफल रहे कि उनके बेटे बी.वाई. विजयेंद्र को कर्नाटक में भाजपा अध्यक्ष के रूप में स्थापित किया जाए.
उसने अन्य राज्यों में शिवराज सिंह चौहान, वसुंधराराजे सिंधिया जैसे नेताओं को प्रेरित किया है. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी सहित कुछ अन्य वरिष्ठ नेता उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए, जहां बी.एस. येदियुरप्पा के बेटे ने कार्यभार संभाला, जिससे यह संकेत गया कि राज्यों में खाई चौड़ी हो रही है.
येदियुरप्पा ने यह भी सुनिश्चित किया कि उनके वफादार आर.अशोक को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया जाए. लेकिन जनता दल (एस) के एच.डी. देवेगौड़ा के साथ हुए गठबंधन से बहुत से लोग खुश नहीं हैं. हालांकि, येदियुरप्पा को बता दिया गया कि यह गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए है और उन्हें ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए.
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कई वरिष्ठ नेता, खासकर दो साल पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाए गए नेता, पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. यदि भाजपा इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है, तो आलाकमान को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है और बढ़ते असंतोष को रोकने के लिए उन्हें मनाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.
अपने आप में सिमटे नीतीश
पिछले महीने राज्य विधानसभा और विधान परिषद में महिलाओं को लेकर अपने विवादास्पद संबोधन के बाद, नीतीश कुमार को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. तब से वह वस्तुतः अपने आप में सिमट गए हैं. यहां तक कि पार्टी में और उसके बाहर भी उनके कट्टर वफादार इस बात से हैरान हैं कि उनके जैसे चतुर नेता के साथ क्या गलत हुआ.
बिहार में अजीबोगरीब कहानियां सुनने को मिल रही हैं कि कैसे अन्यमनस्क रहने वाले नीतीश कुमार एक कप चाय के लिए एक कैबिनेट मंत्री के घर दो बार चले गए. कुछ घूंट पीने के बाद वे चले गए और कुछ देर बाद वापस आकर चाय मांगी. कई लोग कहते हैं कि उनकी शैली और तौर-तरीकों में जबरदस्त बदलाव आया है और कभी-कभी अचानक आने वाला गुस्सा बढ़ गया है.
एक समय मीडिया के प्रिय रहे नीतीश कुमार ने अपने जनता दरबार और अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में पत्रकारों को आमंत्रित करना बंद कर दिया है और उनका कार्यालय अब उनके दैनिक कार्यक्रम के बारे में जानकारी नहीं देता है. हाल ही में उन्होंने इंतजार कर रहे पत्रकारों को हाथ जोड़कर और झुककर आगे चले जाने का इशारा किया.
जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि नीतीश पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद ही कुछ बोलेंगे. ओबीसी जनगणना पर उनके फैसले ने पहले ही भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है. साफ है कि ओबीसी जनगणना का मुद्दा तेजी से तूल पकड़ रहा है और पीएम मोदी को इससे निपटने का रास्ता ढूंढना होगा.