Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा टिकटों पर अनिश्चितता के बादल, जय पांडा, आरसीपी सिंह का क्या होगा?
By हरीश गुप्ता | Published: February 29, 2024 03:14 PM2024-02-29T15:14:15+5:302024-02-29T15:15:30+5:30
Lok Sabha Elections 2024: राजनाथ सिंह के पुत्र के उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक होने या अमित शाह के पुत्र के क्रिकेट निकाय (बीसीसीआई) में होने की वंशवाद से तुलना की गई है.

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Lok Sabha Elections 2024: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इधर अपनी रैलियों में वंशवाद की राजनीति को बुराइयों का मूल कारण बताते हुए विपक्ष पर अपने हमले तेज कर दिए हैं. कोई नहीं जानता कि वास्तव में उनके दिमाग में क्या चल रहा है. पिछले दिनों दिए गए भाषण में मोदी ने वंशवाद का जिक्र किस संदर्भ में किया था, इसे समझने के लिए भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गजों को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. वंशवाद का जिक्र करते हुए मोदी ने अचानक विपक्ष की उन टिप्पणियों का उल्लेख भी किया जिसमें भाजपा में पनप रही वंशवाद की परंपरा की ओर इशारा किया गया था.
उन्होंने उन विपक्षी नेताओं की उन बातों का उपहास उड़ाया जिसमें राजनाथ सिंह के पुत्र के उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक होने या अमित शाह के पुत्र के क्रिकेट निकाय (बीसीसीआई) में होने की वंशवाद से तुलना की गई है. मोदी ने विपक्षी दलों को कड़ा जवाब देते हुए कहा कि उनके राजवंश शक्तियों को नियंत्रित कर रहे हैं, जबकि भाजपा में ऐसा नहीं है.
मोदी की हालिया टिप्पणियों से बहुत पहले, ऐसी खबरें चल रही थीं कि राजनाथ सिंह के पुत्र, विधायक और भाजपा की उप्र इकाई के उपाध्यक्ष अजय सिंह को लोकसभा के लिए मैदान में उतारा जा सकता है और चुनाव के बाद रक्षा मंत्री को एक अतिरिक्त संवैधानिक जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
प्रधानमंत्री यह धारणा बनाने में सफल रहे हैं कि उनकी सरकार तीसरा कार्यकाल संभालने जा रही है और नए मतदाताओं के मत भी उन्हें मिल सकते हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी बड़े पैमाने पर बदलाव करेंगे और विभिन्न क्षेत्रों से नए चेहरों को शामिल करेंगे.
मोदी, आने वाले वर्षों में भाजपा के आधार का विस्तार करने के लिए दक्षिणी भारतीय राज्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के साथ, वहां की प्रतिभाओं को अपने साथ जोड़ सकते हैं. भाजपा को 2019 में लगभग 4 प्रतिशत वोट मिले थे और 2024 में इसे 10 प्रश तक ले जाने का लक्ष्य है.
मोदी ने अश्विनी वैष्णव के साथ राज्य मंत्री एल. मुरुगन को भी राज्यसभा का टिकट देकर एक अपवाद बनाया. यह इस बात का संकेत है कि नए मंत्रालय में एक नया युग देखने को मिल सकता है. कई रिक्तियों के बावजूद मोदी ने जान-बूझकर जुलाई 2021 से अपने मंत्रिमंडल में कोई फेर-बदल नहीं किया है. यह इंगित करता है कि उम्र अब कोई मानदंड नहीं रहा.
क्या सत्यपाल मलिक पुस्तक लिख रहे हैं?
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो(सीबीआई) ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मंजूर की गई कुछ परियोजनाओं के सिलसिले में दिल्ली और अन्य स्थानों पर सत्यपाल मलिक और उनके कई सहयोगियों के परिसरों पर छापे मारे. सीबीआई ने अभी तक यह खुलासा नहीं किया है कि इन छापों के दौरान क्या बरामद हुआ है और न ही मलिक ने इस संबंध में कोई विवरण दिया है.
भाजपा नेतृत्व भी चुप्पी साधे हुए है क्योंकि वह समझ नहीं पा रहा है कि सत्यपाल मलिक परिदृश्य में कैसे उभरे और 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें जम्मू-कश्मीर स्थानांतरित कर दिया गया. मलिक के करीबी सूत्रों का कहना है कि वह अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान चार राज्यों के राज्यपाल रहने के दौरान एक पुस्तक लिखने पर विचार कर रहे थे.
पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए हमले के बारे में उनके बयानों ने सत्तारूढ़ सरकार को बहुत नाराज किया है. विचार किया जा रहा है कि आखिर एक मौजूदा राज्यपाल ‘लक्ष्मण रेखा’ को पार करते हुए इस तरह के बयान कैसे दे सकता है. उन्हें तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान दिए गए इन दो अनुबंधों के बारे में सीबीआई ने उनसे पूछताछ की. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में पद पर रहते हुए उनकी रिपोर्ट के कारण भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को प्रमुख पद से हटा दिया गया था. मलिक वास्तव में पुस्तक लिखेंगे भी या केवल विचार कर रहे हैं-यह साफ नहीं है. मलिक गाथा लिखी जानी बाकी है.
बांसुरी स्वराज, एक नई चर्चा
कौन हैं बांसुरी स्वराज! मार्च 2023 में दिल्ली भाजपा के कानूनी प्रकोष्ठ के सह-संयोजक के रूप में नियुक्ति से पहले तक उन्हें कोई नहीं जानता था. कोई नहीं जानता था कि वह सुषमा स्वराज और स्वराज कौशल की बेटी हैं. अंग्रेजी साहित्य में बीए (ऑनर्स) के साथ वारविक विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह लंदन के बीपीपी लॉ स्कूल में कानून की पढ़ाई करने चली गईं और 2007 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया में दाखिला लिया. उनके पास 17 साल का अनुभव है और उनकी बड़ी साख है.
वह भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं और ऐसी खबरें हैं कि उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में दिल्ली से मैदान में उतारा जा सकता है. वह टीवी चैनलों पर भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाला एक लोकप्रिय चेहरा भी हैं और उन्होंने भाजपा के विरोधियों को भी प्रभावित किया है.
जय पांडा, आरसीपी सिंह का क्या होगा?
अन्य दलों से भाजपा में शामिल हुए दो वरिष्ठ नेताओं- बैजयंत जय पांडा और आरसीपी सिंह का भविष्य अधर में लटक गया है. पांडा बीजू जनता दल से भाजपा में आए थे, जबकि आरसीपी सिंह जनता दल (यू) से. चूंकि, इन दोनों राज्यों में नए राजनीतिक घटनाक्रम उभरे हैं, इसलिए इनका भविष्य अब अधर में लटक गया है.
जय पांडा को 80 लोकसभा सीटों वाला उप्र जैसा अहम राज्य सौंपा गया है. आरसीपी सिंह भाजपा में हैं, लेकिन बिहार जाने के लिए उत्सुक हैं क्योंकि नीतीश के नेतृत्व वाली जद (यू) फिर से भाजपा के साथ आ गई है. आरसीपी सिंह मोदी सरकार में जेडीयू कोटे से कैबिनेट मंत्री थे. लेकिन वह और जय पांडा दोनों ही अब संसद सदस्य नहीं हैं. दोनों अपने पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को पसंद नहीं करते हैं और पूरा जोर लगाएंगे कि भाजपा उन्हें मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल न करे. आरसीपी सिंह को लोकसभा टिकट मिलेगा या नहीं, यह अभी तक साफ नहीं है. ओडिशा में भाजपा का मुकाबला बीजद से हो सकता है.
लेकिन नवीन पटनायक और मोदी के बीच दोस्ती है जिसके बोनस के तौर पर अश्विनी वैष्णव को ओडिशा से दो बार राज्यसभा की सीट मिल गई. शर्त यही थी कि पांडा को बाहर रखा जाए. लेकिन पांडा को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन पर मेहरबानी होगी.