अवधेश कुमार का ब्लॉगः चुनौती बनी पश्चिम बंगाल की हिंसा

By अवधेश कुमार | Published: May 13, 2019 07:37 AM2019-05-13T07:37:05+5:302019-05-13T07:37:05+5:30

चुनाव आयोग ने अपने विशेष पर्यवेक्षक की रिपोर्ट पर प्रदेश का चुनाव 92 प्रतिशत केंद्रीय बलों की निगरानी में कराने का फैसला किया किंतु तीसरे चरण में 50 प्रतिशत ही तैनाती हो सकी. चौथे चरण से 100 प्रतिशत केंद्रीय बलों की तैनाती का फैसला हुआ जो पांचवें चरण में लागू हो सका.

lok sabha election: West Bengal Violence election commission | अवधेश कुमार का ब्लॉगः चुनौती बनी पश्चिम बंगाल की हिंसा

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पश्चिम बंगाल की चुनाव प्रक्रि या लोकतंत्न के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. पूरे देश में हिंसा और  बूथ कब्जे की सबसे डरावनी तस्वीरें कहीं से आई हैं तो वो प. बंगाल ही है. भाजपा, वामदल एवं प्रदेश की कांग्रेस इकाई तीनों का तृणमूल कांग्रेस के बारे में एक ही स्वर है- पश्चिम बंगाल से लोकतंत्न गायब है, तृणमूल विरोधी मतदाताओं के लिए निर्भीक होकर मतदान करना अत्यंत कठिन है. 

एक दौर का चुनाव होने के बाद चुनाव आयोग के विशेष पर्यवेक्षक ने कहा कि प. बंगाल की आज वही स्थिति है जो डेढ़ दशक पूर्व बिहार की थी. दूसरे चरण में जो दृश्य और खबरें आईं उनसे साफ हो गया कि स्थानीय पुलिस व प्रशासन वहां निष्पक्ष मतदान नहीं करा सकते. तृणमूल के कार्यकर्ताओं के भय से या फिर अंतर्मन से वे चुनावी धांधली में सहयोगी की भूमिका में हैं. यहां तक कि तृणमूल के कार्यकर्ता यदि हिंसा कर रहे होते हैं तो वे आंखें मूंद लेते हैं. 

चुनाव आयोग ने अपने विशेष पर्यवेक्षक की रिपोर्ट पर प्रदेश का चुनाव 92 प्रतिशत केंद्रीय बलों की निगरानी में कराने का फैसला किया किंतु तीसरे चरण में 50 प्रतिशत ही तैनाती हो सकी. चौथे चरण से 100 प्रतिशत केंद्रीय बलों की तैनाती का फैसला हुआ जो पांचवें चरण में लागू हो सका. छठे चरण के चुनाव में भी वहां भारी हिंसा हुई है. आज तक किसी भी राज्य में 100 प्रतिशत केंद्रीय बल की तैनाती नहीं करनी पड़ी थी. इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि वहां स्थिति कितनी डरावनी है. 

यह बात आसानी से कह दी जाती है कि प. बंगाल में राजनीतिक हिंसा कोई नई बात नहीं, यह तो वर्षो से हो रहा है. राजनीतिक हिंसा का एक लंबा दौर चला प. बंगाल में. निजी स्तर पर शोध करने वालों का कहना है कि प. बंगाल में कम से कम 60 हजार राजनीतिक हत्याएं हुई हैं. अन्य कोई राज्य इसके सामने नहीं ठहरता. लेकिन जो पहले हुआ उसके आधार पर आज की हिंसा को सही नहीं ठहराया जा सकता. 

इसका मतलब तो हुआ कि कोई आए प. बंगाल ऐसा ही रहेगा. वास्तव में प. बंगाल की सत्ता संरक्षित और प्रायोजित हिंसा लोकतंत्न के नाम पर सबसे बड़ा धब्बा बन चुकी है. चुनाव आयोग को इसका ध्यान पहले से रखना चाहिए था. 

Web Title: lok sabha election: West Bengal Violence election commission