पवन के वर्मा का ब्लॉग: संवेदनशील मुद्दों पर न हो राजनीति
By पवन के वर्मा | Published: March 10, 2019 07:02 PM2019-03-10T19:02:52+5:302019-03-10T19:02:52+5:30
बालाकोट हमले पर राजनीति किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण होगा. लेकिन राजनीति नहीं किए जाने का यह मतलब नहीं कि बालाकोट या पुलवामा के बारे में कोई सवाल ही नहीं पूछा जा सकता.
मेरे विचार से बालाकोट में जैश के प्रशिक्षण शिविर पर एयर स्ट्राइक के बारे में बुनियादी पहलू यह है कि यह हमारे सुरक्षा सिद्धांत में बदलाव का प्रतीक है. 26 फरवरी को तड़के हमारे मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) को पार किया और पाकिस्तानी इलाके के भीतर दूर तक जाकर आतंकवादी लक्ष्यों पर निशाना साधा.
मैं क्यों इसे पैराडाइम शिफ्ट कहता हूं?
इसलिए कि 1971 के बाद से हमने कभी भी नियंत्रण रेखा को पार नहीं किया है. यहां तक कि कारगिल हमले के बाद भी हमने ऐसा नहीं किया, जबकि उसमें स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान ने हमारे क्षेत्र में अतिक्रमण किया था. पुलवामा हमले के बाद हमने राष्ट्रीय संकल्प का प्रदर्शन किया और आतंकवादियों पर उनके गढ़ में जाकर प्रहार किया. इससे निश्चित रूप से पाकिस्तान को आश्चर्य हुआ.
शायद उसे लगता था कि भारत पिछले मौकों की तरह इस बार भी जुबानी जमाखर्च तक ही सीमित रह जाएगा. इसलिए बालाकोट हमले का अपना एक अलग महत्व है और यह मुद्दा अप्रासंगिक है कि इस एयर स्ट्राइक में आतंकवादियों को कितना नुकसान हुआ.
बालाकोट हमले पर राजनीति किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण होगा. लेकिन राजनीति नहीं किए जाने का यह मतलब नहीं कि बालाकोट या पुलवामा के बारे में कोई सवाल ही नहीं पूछा जा सकता. लोकतंत्र में, लोगों को पूछने का और जानने का अधिकार होता है. ऐसे किसी भी सवाल या इच्छा को देशद्रोह निरूपित करना वास्तव में राजनीतिकरण है. जिस चीज से बचा जाना चाहिए, वह है हमारे बहादुर सैनिकों की वीरता और बलिदान के बदले में वोट मांगना. इस संदर्भ में कर्नाटक के भाजपा नेता का यह बयान जिसमें उन्होंने कहा कि बालाकोट एयर स्ट्राइक के परिणाम स्वरूप भाजपा उस राज्य में कई और सीटें जीतेगी, बेहद अफसोसजनक है.
पुलवामा हमले पर भी सवाल पूछे जा सकते हैं. क्या हमले को रोका जा सकता था? क्या यह खुफिया विफलता थी? क्या काफिले की रवानगी के दौरान समन्वय का अभाव था? इस तरह के सवाल लोकतंत्र में अपरिहार्य हैं और भविष्य में इस प्रकार के हमले रोकने के लिए इन सवालों के जवाब तलाशे जाने चाहिए.
पुलवामा हमला एक त्रसदी थी. ऐसी त्रसदी दुबारा न हो, इसकी कोशिश की जानी चाहिए. बालाकोट एयर स्ट्राइक एक बहुप्रतीक्षित कार्रवाई थी और इसका श्रेय सरकार को जाता है. लेकिन इसे सनसनीखेज बनाने का प्रयास नुकसानदेह भी हो सकता है.