आइए, बीजिंग और लंदन से सबक सीखें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 27, 2025 08:04 IST2025-11-27T08:02:57+5:302025-11-27T08:04:07+5:30

लेकिन हम भारतीयों का जीवन बचाने के लिए उनसे अच्छी बातें क्यों नहीं सीख सकते? भारत को यूके से तकनीक और विश्वविद्यालयों के कैंपस तो चाहिए, लेकिन दुनिया के सुंदर   शहर के मेयर ने क्या किया-यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं.

Let's learn lessons from Beijing and London for air pollution | आइए, बीजिंग और लंदन से सबक सीखें

आइए, बीजिंग और लंदन से सबक सीखें

अभिलाष खांडेकर

कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि भारत में हर साल वायु प्रदूषण के कारण दो लाख लोगों की जान जाती है. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा हाल ही में सरकारी और निजी दफ्तरों में 50 प्रतिशत कर्मचारियों को वर्क-फ्रॉम-होम की अनुमति देने की घोषणा की है. इससे एक बार फिर यह उजागर हो गया है कि दिल्ली के घातक वायु प्रदूषण पर काबू पाने में सरकारें कितनी असहाय और अप्रभावी रही हैं. मुझे याद है कि केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बार संसद में शेखी बघारी थी कि उनका मंत्रालय चीन से भी जल्दी प्रदूषण पर काबू पा लेगा. जावड़ेकर का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के मंत्री के रूप में अंतिम कार्यकाल 2021 में समाप्त हुआ.

वह इस अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी दो बार संभाल चुके थे, फिर भी प्रदूषण का स्तर हर साल लगातार बढ़ता ही गया. 2019 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को लेकर किए गए उनके दावे आज भी केवल कागजों तक सीमित हैं.

क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं?

दिल्ली की भारी, दमघोंटू हवा पिछले कई दशकों से नीचे ही जमी हुई है. इस दौरान राजधानी पर कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी (आप) इन तीनों ने शासन किया.  हर एक ने दावा किया कि उन्होंने प्रदूषण की समस्या को हल किया है, साथ ही दिखावे के लिए एक-दूसरे पर आरोप भी लगाते रहे. इस बीच, दिल्लीवासी लगातार स्मॉग, धूलकणों और वाहनों से फैलते प्रदूषण को झेलते रहे. दिल्ली की आबादी दो करोड़ है और हर दिन राजस्थान, यूपी, पंजाब और हरियाणा से आने वाली बहुत बड़ी अस्थायी जनसंख्या इस बोझ को और बढ़ाती है. भारत की राजधानी किसी भी मानक से अब रहने लायक नहीं रह गई है. क्या यह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं?

पर्यावरण मंत्रालय ने आखिर किया क्या?

मैं 2008 में बीजिंग गया था. इसी वर्ष चीनी राजधानी में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक होने वाले थे.(बहरहाल, यह दुनिया का एकमात्र शहर है जिसने ग्रीष्म और शीतकालीन दोनों ओलंपिक की मेजबानी की है.) वहां की सरकार अपनी वैश्विक छवि को लेकर बेहद चिंतित थी और 2008 में दुनिया भर से एथलीटों के इस शहर में आने से पहले आसमान साफ करने के लिए हरसंभव कदम उठाए गए थे. शीतकालीन खेल इससे बहुत बाद में, 2022 में आयोजित हुए. इन दोनों ओलंपिक खेलों के 14 वर्षों का अंतराल इस बात का प्रमाण है कि सरकार ने कितनी गंभीरता, कितने व्यापक स्तर पर और कितनी सच्ची निष्ठा से खिलाड़ियों और आम नागरिकों की सेहत और सुविधा के लिए प्रयास किए. हम चीन को कई बातों के लिए दोष दे सकते हैं, लेकिन यदि हम चाहें तो उससे बहुत कुछ सीख भी सकते हैं. तो जब भाजपा की मुख्यमंत्री गुप्ता स्कूल बंद करने और दफ्तरों में केवल 50 प्रतिशत कर्मचारियों को घर बैठकर काम करने जैसे कदमों की घोषणा करती हैं, तब यह सवाल उठता है कि जावड़ेकर के कार्यकाल में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने आखिर किया क्या था! 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तब भाजपा को यह चुनौती विरासत में मिली थी. इसी तरह, रेखा गुप्ता ने वायु और नदी प्रदूषण की समस्या आम आदमी पार्टी की सरकार से विरासत में पाई है.

सबने खोखले वादे ही किए

जावड़ेकर की तरह ही अरविंद केजरीवाल ने भी हवा को साफ करने के न जाने कितने वादे किए थे, लेकिन वे वादे वायु प्रदूषण से निपटने की बजाय सुर्खियां बटोरने के लिए अधिक थे. हाल के छठ पर्व के दौरान यमुना नदी का प्रदूषण एक बार फिर तब सामने आ गया जब दिल्ली सरकार ने अतिविशिष्ट लोगों के लिए एक अलग छोटा इलाका बनाया. इसमें पाइपलाइन के जरिये साफ पानी डालकर डुबकी की व्यवस्था की गई. यह दुर्गंध और झाग से भरी नदी को दो हिस्सों में बांटने का एक बचकानाप्रयास था.

प्रदूषण से 20 लाख लोगों की जान गई!  

कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि भारत में हर साल वायु प्रदूषण के कारण दो लाख लोगों की जान जाती है. दूसरे शब्दों में, केंद्र में भाजपा सरकार के दौरान विषैली हवा से संबंधित बीमारियों के चलते भारत ने कम-से-कम 20 लाख लोगों को खोया है. क्या नागरिकों को अपनी जान की रक्षा के लिए आवाज नहीं उठानी चाहिए? जावड़ेकर की तरह ही सड़कों और राजमार्गों के मंत्री नितिन गडकरी भी बार-बार दावा करते रहे कि वे सड़क हादसों और उनसे होने वाली मौतों को कम करेंगे. लेकिन सच तो यह है कि यह आंकड़ा बेहद भयावह है. सड़क हादसों में हर साल लगभग 1.50 लाख मौतें होती हैं. मैं जानता हूं कि न तो जावड़ेकर, न गडकरी और न ही मोदी अकेले प्रदूषण या दुर्घटनाओं का समाधान दे सकते हैं. लेकिन सरकार मजबूत प्रणालियांऔर प्रभावी कानून तो बना ही सकती है, ताकि इस चुनौती का सामना किया जा सके. अरावली पर्वतमाला खतरे में है, पेड़ों की बेरहमी से कटाई हो रही है और विशाल इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण धूल भरी हवा को और बढ़ा रहा है.

वादा निभाया, चुनाव जीते

दिलचस्प बात यह है कि लंदन के मेयर सादिक खान ने अपने दूसरे कार्यकाल के चुनाव में लंदनवासियों से कम प्रदूषण का वादा किया था. उन्होंने अपना वादा निभाया और दूसरा कार्यकाल जीता.  2016 से वे लगातार तीसरे कार्यकाल में सेवा दे रहे हैं, वहीं भारत में भाजपा सरकार उपनिवेशवाद के हर निशान को मिटाने में व्यस्त है. चीन के प्रति उसकी वैचारिक नाराजगी भी स्वाभाविक है. लेकिन हम भारतीयों का जीवन बचाने के लिए उनसे अच्छी बातें क्यों नहीं सीख सकते? भारत को यूके से तकनीक और विश्वविद्यालयों के कैंपस तो चाहिए, लेकिन दुनिया के सुंदर   शहर के मेयर ने क्या किया-यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं. हम चीन को नापसंद कर सकते हैं, लेकिन उनसे प्रदूषण कम करने के उपाय क्यों नहीं सीख सकते?आखिर यह लाखों भारतीयों की जिंदगी का सवाल है!

Web Title: Let's learn lessons from Beijing and London for air pollution

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे