लाला लाजपत राय: जिनकी शहादत से उबल पड़ा था देश

By कृष्ण प्रताप सिंह | Updated: January 28, 2025 07:27 IST2025-01-28T07:25:46+5:302025-01-28T07:27:06+5:30

1893 में उनका कांग्रेस के दो बड़े नेताओं गोपालकृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक से परिचय हुआ, जो जल्दी ही घनिष्ठ मित्रता में परिवर्तित हो गया.

Lala Lajpat Rai Whose martyrdom made the country boil | लाला लाजपत राय: जिनकी शहादत से उबल पड़ा था देश

लाला लाजपत राय: जिनकी शहादत से उबल पड़ा था देश

‘अहिंसा का कर्तव्य खुद अहिंसक बने रहने से ही पूरा नहीं होता, क्योंकि उसमें दूसरों को हिंसा से विरत करने के जतन करने का कर्तव्य भी शामिल है...यों, अहिंसा शांतिपूर्ण साधनों से उद्देश्य प्राप्त करने के प्रयासों का नाम है और इन प्रयासों में अविचलित रहकर झेली गई असफलता सफलता की ओर बढ़ा सबसे जरूरी कदम सिद्ध होती है.’

ये विचार स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे गए पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के हैं, जो अहिंसा में अपने अगाध विश्वास के बावजूद स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष चलाने वाले क्रांतिकारियों के लिए भी उतने ही आदरणीय थे, जितने अहिंसा के पैरोकारों के लिए. इस सिलसिले में जानना दिलचस्प है कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल की ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से प्रसिद्ध उस तिकड़ी के पहले सदस्य थे, जिसने उन दिनों गोरों की दासता में जकड़े देश के लिए सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की.

इतना ही नहीं, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के निर्णायक दौर में  गोरी सत्ता के क्रूरतम चेहरे का सामना किया और अपनी जान देकर देशवासियों के नेतृत्व का कर्तव्य निभाया.

यही कारण है कि 30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में कुख्यात साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन के नेतृत्व के वक्त उन पर पुलिस की लाठियां बेतरह बरसीं और उनसे  आई गहरी चोटों ने 27 नवंबर, 1928 को उनकी जान ले ली तो उद्वेलित देश ने गोरों से उसका बदला चुकाये बिना चैन नहीं लिया.

पंजाब के मोगा जिले में 28 जनवरी, 1865 को पैदा हुए लाला जी ने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से कानून की पढ़ाई के बाद पहले जगरांव, फिर रोहतक और  हिसार में वकालत की. 1892 में वे लाहौर में स्वामी दयानंद सरस्वती के सम्पर्क में आए, उनके आर्य समाज से जुड़े और उनकी मृत्यु के बाद खुद को आर्य समाज को ही समर्पित कर दिया. उन्होंने लाला हंसराज एवं कल्याणचंद्र दीक्षित के साथ मिलकर दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की स्थापना व प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन विद्यालयों को अब डीएवी स्कूल व काॅलेज के नाम से जाना जाता है. अकाल पड़ा तो उन्होंने अनेक स्थानों पर उससे राहत दिलाने के लिए सेवा शिविर भी लगाए.

अनंतर, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी पंजाब केंद्रित मुखर, प्रखर व बहुविध गतिविधियों और कांग्रेस के गरम दल से उनकी सम्बद्धता के कारण उन्हें ‘पंजाब केसरी’ और ‘पंजाब का शेर’ आदि  कहा जाने लगा. 1893 में उनका कांग्रेस के दो बड़े नेताओं गोपालकृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक से परिचय हुआ, जो जल्दी ही घनिष्ठ मित्रता में परिवर्तित हो गया. 1905 के कुख्यात बंगाल विभाजन के विरोध में  उन्होंने  इन दोनों के साथ ‘लाल-बाल-पाल’ की तिकड़ी बनाई जो जल्दी ही अपने खास तेवर के लिए जानी जाने लगी.

Web Title: Lala Lajpat Rai Whose martyrdom made the country boil

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे