लद्दाख में स्थानीय निवासियों का विश्वास जीतना जरूरी, सीमावर्ती क्षेत्र अशांति के शिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक

By राजकुमार सिंह | Updated: October 13, 2025 05:21 IST2025-10-13T05:21:50+5:302025-10-13T05:21:50+5:30

Ladakh Protest: लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर पांच साल से जारी आंदोलन में 24 सितंबर को भड़की हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए दो दिन बाद गिरफ्तार कर वांगचुक को जोधपुर जेल भेज दिया गया.

Ladakh Protest important win trust local residents in Ladakh Border areas are becoming victims of unrest. This poses a threat to national security blog raj kumar singh | लद्दाख में स्थानीय निवासियों का विश्वास जीतना जरूरी, सीमावर्ती क्षेत्र अशांति के शिकार, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक

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Highlights 2009 की लोकप्रिय फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ उन्हीं से प्रेरित थी.सीमावर्ती क्षेत्र अशांति के शिकार हो रहे हैं.यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है.

Ladakh Protest: विज्ञान, शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार के लिए दुनिया में सम्मानित सोनम वांगचुक की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) में गिरफ्तारी पर तो सर्वोच्च न्यायालय 14 अक्तूबर को सुनवाई करेगा, लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य के लिए चर्चित और रणनीतिक रूप से संवेदनशील लद्दाख की अशांति गंभीर चिंता का विषय है. 2009 की लोकप्रिय फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ उन्हीं से प्रेरित थी.

लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर पांच साल से जारी आंदोलन में 24 सितंबर को भड़की हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए दो दिन बाद गिरफ्तार कर वांगचुक को जोधपुर जेल भेज दिया गया. एक-के-बाद-एक हमारे सीमावर्ती क्षेत्र अशांति के शिकार हो रहे हैं. यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक है.

असंतोष देर-सबेर अलगाव की भावना का कारण बनता है या निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा बना दिया जाता है. 2019 में जब भाजपा सरकार ने विशेष दर्जा देनेवाली धारा-370 हटाते हुए जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित क्षेत्रों: जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित किया, तब वहां से समर्थन में उठनेवाली (भाजपा के अलावा) सबसे मुखर आवाज सोनम वांगचुक की ही थी.

शायद इसलिए भी कि जम्मू-कश्मीर की सत्ता-राजनीति में लद्दाख की आवाज अक्सर अनसुनी ही रही. भाजपा भी लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करने की मुखर समर्थक रही.  जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करते समय जल्द ही दोनों को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा किया गया था.

बाद में हुए चुनाव में भाजपा ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने का वायदा भी किया था. जम्मू-कश्मीर को विधानसभा मिल गई, लेकिन पूर्ण राज्य के दर्जे का छह साल से इंतजार है. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा तो दूर, विधानसभा तक नहीं मिली. भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक विशिष्टतावाले आदिवासी क्षेत्रों को स्थानीय शासन का विशेष अधिकार देने का प्रावधान भी भारत के संविधान में है. संविधान के अनुच्छेद 244 (2) के तहत छठी अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों के रूप में विशेष प्रशासनिक ढांचे का प्रावधान है.

इस ढांचे को सामाजिक रीति-रिवाज, उत्तराधिकार के अलावा भूमि और जंगल संरक्षण के लिए कानून बनाने का अधिकार है.  कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में यह प्रावधान लागू भी है. पांच साल से लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के बैनर तले शांतिपूर्ण आंदोलन की मुख्य मांग विधानसभा के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी सूची में शामिल करने की ही है.

पहली नजर में इन मांगों में ऐसा कुछ नहीं दिखता, जिसे पांच साल लंबे शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद स्वीकार कर पाना संभव न हो.  लेह से दिल्ली तक 1000 किलोमीटर का पैदल मार्च तथा पांच बार अनशन बताता है कि आंदोलन मूलत: गांधीवादी और शांतिपूर्ण चरित्र का ही रहा. फिर अचानक हिंसा किसने भड़काई? इस सवाल के जवाब के लिए राजनीति से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तक - हर कोण से विश्वसनीय जांच की जरूरत है. हिंसा की न्यायिक जांच उस दिशा में पहला कदम हो सकती है.

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