केरल पंचायत परिषदः कार्यालय में अब कोई नहीं कहेगा ‘सर’ या ‘मैडम’, देश का पहला नगर निकाय, जानें क्या है मामला

By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 4, 2021 02:18 PM2021-09-04T14:18:01+5:302021-09-04T14:19:21+5:30

उत्तर केरल के पलक्कड़ जिले में मातूर गांव पंचायत ने एक अनूठी पहल के तहत अपने कार्यालय परिसर में ‘सर’ और ‘मैडम’ जैसे औपनिवेशिक काल के आदरसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है.

Kerala Panchayat Parishad no one will say 'Sir' or 'Madam' office country's first municipal body Ved Pratap Vaidik blog | केरल पंचायत परिषदः कार्यालय में अब कोई नहीं कहेगा ‘सर’ या ‘मैडम’, देश का पहला नगर निकाय, जानें क्या है मामला

राजनीतिक मतभेदों को भूलकर 16 सदस्यीय कांग्रेस शासित गांव में माकपा के सात सदस्यों और भाजपा के एक सदस्य ने इस हफ्ते की शुरुआत में इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया था.

Highlightsआम जनता, जन प्रतिनिधियों और नगर निकाय अधिकारियों के बीच खाई को भरना और एक-दूसरे के बीच प्यार तथा विश्वास बढ़ाना है.पंचायत परिषद की हाल की एक बैठक में सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला लिया गया.पंचायत सदस्यों ने शासकीय भाषा विभाग से ‘‘सर’’ और ‘‘मैडम’’ शब्दों के विकल्प मुहैया कराने का भी अनुरोध किया.

केरल के पालक्काड़ जिले के मातूर नामक गांव की पंचायत ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसका अनुकरण सारे भारत को करना चाहिए. देश की केंद्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों पर भी उसे लागू किया जाना चाहिए.

वह फैसला ऐसा है जिसे हर लोकतांत्रिक देश अपने-अपने यहां भी लागू करे तो उसके सरकारी अफसर, मंत्नी और नेता लोग जनता की ज्यादा सेवा कर सकते हैं. वह फैसला यह है कि मातूर की पंचायत ने अपने गांव के लोगों से कहा है कि वे जब सरकारी अधिकारियों को संबोधित करें तो उन्हें आदरपूर्वक भाई या बहन कह दें लेकिन उन्हें ‘सर’ (महोदय) या ‘मैडम’ (महोदया) न कहें.

वे ऐसा क्यों करें? क्या लोग-बाग उनके मातहत हैं या उनके गुलाम हैं, जैसे कि अंग्रेजों के राज में थे? भारत की आजादी का यह 75 वां साल है और अभी भी हम गुलामी की भाषा से मुक्त नहीं हुए हैं. जिन्हें हम ‘सर’ और ‘मैडम’ कहते हैं और जिनकी भौंहें हम पर सदा तनी रहती हैं, उनकी तनख्वाह, उनके भत्ते, उनकी बाकी सारी सुविधाएं कहां से आती हैं? सब जनता के पैसे से आती हैं. तो मालिक कौन हुआ?

सरकारी अफसर और मंत्नी या आम लोग? जो मालिक है, उसे अपने नौकरों के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत क्यों होनी चाहिए? खुद नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्नी पद की शपथ लेने के बाद कहा था कि वे जनता के प्रधान सेवक हैं. दुर्भाग्य से भाजपा के सात वर्ष के इस कार्यकाल में भी कोई बदलाव नहीं हुआ है. सरकारी अफसरों और मंत्रियों के तेवर ज्यों के त्यों बने हुए हैं.

प्रधानमंत्नी लोग जो जनता दरबार लगाया करते थे, वह प्रथा फिर से शुरू क्यों नहीं की जाती? यह ठीक है कि जनता से जब सीधा संवाद होता है तो हमेशा अच्छी बातें ही सुनने को नहीं मिलतीं. कभी-कभी जली-कटी भी सुनने को मिल जाती है. भारत में तो यह परंपरा बहुत पुरानी है.

राम और कृष्ण की कहानियों में ही नहीं, हम मुगल बादशाहों के महलों में भी उन्हें घंटा बजाकर जगाने और उन्हें आपबीती सुनाने के किस्से पढ़ते आए हैं. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि उनके नाम के पहले ‘महामहिम’ शब्द का प्रयोग न किया जाए.

प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि आज जो लोग ‘महामहिम’ होते हैं, वे कुर्सी से उतरते ही इतिहास में कहां गुम हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. इसका अर्थ यह नहीं है कि आम जनता नेताशाहों और नौकरशाहों का सम्मान न करे. उनका सम्मान पूरा करे लेकिन उनके नाम के साथ लगे ‘शाह’ शब्द को हटाकर करे.

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