कांवड़-यात्रा और महामारी का खतरा, वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 18, 2021 09:35 AM2021-07-18T09:35:08+5:302021-07-18T09:36:14+5:30
उत्तर प्रदेश में इस वर्ष कांवड़ यात्रा रद्द कर दी गई है. अपर मुख्य सचिव (सूचना) नवनीत सहगल ने शनिवार को बताया कि राज्य सरकार की अपील के बाद कांवड़ संघों ने यात्रा रद्द करने का निर्णय लिया.
आजकल हमारी न्यायपालिका को कार्यपालिका का काम करना पड़ रहा है. सरकार के कई महत्वपूर्ण फैसलों का अंतिम फैसला अदालतें कर रही हैं.
ऐसा ही एक बड़ा मामला कांवड़-यात्रा का है. इस यात्रा में 3-4 करोड़ लोग भाग लेते हैं. कई प्रदेशों के लोग कंधे पर कावड़ रखकर लाते हैं और हरिद्वार से गंगाजल भरकर अपने-अपने घर ले जाते हैं. उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार ने इस कांवड़-यात्रा की अनुमति दे रखी है जबकि कुछ ही हफ्तों पहले कुंभ-मेले की वजह से लाखों लोगों को कोरोना का शिकार होना पड़ा था, ऐसा माना जाता है.
उ.प्र. सरकार जनता की भावना का सम्मान करके यात्रा की इजाजत दे रही है, यह तो ठीक है लेकिन ऐसा सम्मान किस काम का है, जो लाखों-करोड़ों लोगों को मौत के मुहाने पर पहुंचा दे? एक तरफ प्रधानमंत्री पूर्वी सीमांत के प्रदेशों में बढ़ती महामारी पर चिंता प्रकट कर रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री यह खतरा मोल ले रहे हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी कह रहे हैं कि महामारी के तीसरे आक्र मण की पूरी संभावनाएं हैं. इसके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर मेला जुटाने की क्या जरूरत है? गंगाजल आखिर किसलिए लोग अपने घर ले जाते हैं? जब लोग ही नहीं रहेंगे तो यह गंगाजल किस काम आएगा ? उ.प्र. प्रशासन आश्वस्त कर रहा है कि कांवड़ियों की जांच और चिकित्सा वगैरह का पूरा इंतजाम उसके पास है.
ऐसी घोषणाएं तो उत्तराखंड शासन ने कुंभ-मेले के समय भी की थीं लेकिन जो खबरें फूटकर आ रही हैं, वे बताती हैं कि वहां कितना जबर्दस्त फर्जीवाड़ा हुआ था. यों भी आमतौर से लोग लापरवाही का खूब परिचय दे रहे हैं. दिल्ली के बाजारों और पहाड़ों पर पहुंची भीड़ के चित्र देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कोरोना-नियमों का कितना पालन हो रहा है.
उत्तराखंड में भी यद्यपि भाजपा की सरकार है लेकिन उसके नए मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने न सिर्फ हरिद्वार में प्रतिबंध लगा दिया है बल्कि विभिन्न राज्यों की सरकारों से भी अनुरोध किया है कि वे इस कांवड़-यात्रा को रोकें. सर्वोच्च न्यायालय ने उ.प्र. और केंद्र सरकार से पूछा है कि उन्होंने कुंभ-मेले की लापरवाही से कोई सबक क्यों नहीं सीखा?
क्या उन्हें जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है? संक्रमित कांवड़िए अगर अपने गांवों और शहरों में लौटेंगे तो क्या अन्य करोड़ों लोगों को वे महामारी के तीसरे हमले का शिकार नहीं बना देंगे ? सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और उ.प्र. के सरकारों से इस प्रश्न का तुरंत उत्तर मांगा है.
आशा है कि दोनों सरकारें अदालत की चिंता का सम्मान करेंगी और इस कांवड़Þ-यात्रा को स्थगित कर देंगी. इस स्थगन का उनके वोट-बैंक पर कोई अनुचित प्रभाव नहीं पड़ेगा. यदि यात्रा जारी रही और महामारी फैल गई तो सरकार को लेने के देने पड़ जाएंगे.