जयराम शुक्ल का ब्लॉगः दुखिया एक किसान है, रोवै औ खोवै

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 18, 2020 06:52 AM2020-01-18T06:52:01+5:302020-01-18T06:52:01+5:30

किसानों ने जिस प्याज को औने-पौने बेचा या सड़कों में फेंक दिया, वही प्याज सौ के पार चली गई. व्यापारियों ने फोकट के भाव स्टोर कर लिया और फिर दो रुपए की प्याज को सवा सौ में बेचा. किसान ठगा सा सब देख रहा है.

Jayaram Shukla's blog: Dukhiya ek kisan hai, rove aur khove | जयराम शुक्ल का ब्लॉगः दुखिया एक किसान है, रोवै औ खोवै

जयराम शुक्ल का ब्लॉगः दुखिया एक किसान है, रोवै औ खोवै

Highlightsकिसान ठगा सा सब देख रहा है. व्यापारियों की चित भी, पट भी.सरकार किसानों को जो रियायतें भी देती है उसमें इतने छेद होते हैं कि सब रिसकर उनकी तिजोरी में चला जाता है.

तरकारियों के भाव आसमान पर टंग गए. ठेलेवाले कुम्हड़े तक के दाम पाव में बताते हैं. पूछो तो इसके पीछे भगवान को दोषी मानते हैं कि वे ज्यादा बरसे इसलिए ये समस्या है. गए साल बताते थे कि भगवान कुछ ज्यादा ही कुपित रहे, बरसे ही नहीं इसलिए सब्जी के दाम तोले में उतर आए. अपने यहां हर बात के लिए भगवान दोषी. सरकार दोषमुक्त.

किसानों ने जिस प्याज को औने-पौने बेचा या सड़कों में फेंक दिया, वही प्याज सौ के पार चली गई. व्यापारियों ने फोकट के भाव स्टोर कर लिया और फिर दो रुपए की प्याज को सवा सौ में बेचा. किसान ठगा सा सब देख रहा है. व्यापारियों की चित भी, पट भी. सरकार किसानों को जो रियायतें भी देती है उसमें इतने छेद होते हैं कि सब रिसकर उनकी तिजोरी में चला जाता है. जब भावांतर योजना बनी तो व्यापारियों ने भाव ही दबा दिए. अच्छे जिन्स को घटिया बताते हैं. किसान मंडी में अकबकाया सा खड़ा है. जिनको किसानों का साथ देना चाहिए वे शाम को व्यापारी की गादी में भाव तय करते नजर आते हैं.

किसान हर साल खुद को दांव पर लगाता है, व्यापारी उसे मनमाने नीलाम करते हैं. किसान कहां जाए क्या करे? कोल्ड स्टोर और गोदाम सभी व्यापारियों के नियंत्नण में हैं. जल्दी खराब होने वाली सब्जियों को वे डीप फ्रीजर में स्टोर कर लेते हैं. फिर वही दो रुपए का टमाटर हम साठ में खरीदते हैं. सरकार किसानों के हितों का सिर्फ ढोल पीटती है. असली काम व्यापारियों के हक में होता है. गेहूं, धान के भाव के लिए भी किसान भटकता है. एक एकड़ में जितनी लागत आती है समर्थन मूल्य से भी उसकी भरपाई नहीं हो पाती. खेती गुलामी की ओर उन्मुख है. पारंपरिक बीज डंकल खा गए. जो बीज बाजार से मिलता है उसमें इतनी व्याधियां होती हैं कि सारा मुनाफा उसी में घुस जाता है. हासिल आए शून्य. सीमांत किसान की और भी मरन है. छोटी जोत के लिए बैलों की जोड़ी मुफीद होती थी वे भी खेत से बाहर हो गए.

अब ट्रैक्टर, हार्वेस्टर वालों की सूदखोरी में किसान फंस गया. कहीं-कहीं जोताई, बुवाई और कटाई अधिया-तिहरा पर होने लगी. यह नए किस्म का चलन शुरू हुआ है. मान लो आपके पास एक इंच भी जमीन नहीं, लेकिन ट्रैक्टर हार्वेस्टर, समेत कृषि यंत्न हैं तो आप बैठे-ठाले बड़े किसान बन जाएंगे. गांवों में ऐसे ही हो रहा है. बाहर से लोग लाव-लश्कर के साथ आते हैं और सीमांत किसानों से अच्छा खासा वसूल कर लौट जाते हैं. जिनके पास एक इंच भी जमीन नहीं, वे लोहा-लंगड़ के दम पर किसानों के भी किसान बन बैठे. मवेशियों,  नीलगाय का आतंक ऐसा कि हर साल जोत की जमीन सिकुड़ रही है.

Web Title: Jayaram Shukla's blog: Dukhiya ek kisan hai, rove aur khove

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