ब्लॉग: सोशल मीडिया पर अंकुश जरूरी, केवल कठोर कानून नहीं उसे लागू कराने की व्यवस्था भी चाहिए

By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 7, 2022 11:39 AM2022-07-07T11:39:24+5:302022-07-07T11:40:13+5:30

सोशल मीडिया कई मौकों पर बहुत उपयोगी साबित हुआ है. हालांकि ये भी सच है कि अब इसका इस्तेमाल निरंकुश संदेशों को फैलाने और अन्य गलत चीजों के लिए भी खूब हो रहा है.

It is necessary to curb social media, not only strict laws but also needs system to implement it | ब्लॉग: सोशल मीडिया पर अंकुश जरूरी, केवल कठोर कानून नहीं उसे लागू कराने की व्यवस्था भी चाहिए

सोशल मीडिया पर अंकुश जरूरी (फाइल फोटो)

ट्विटर ने यह कहकर अदालत की शरण ली है कि भारत सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है, क्योंकि वह चाहती है कि ट्विटर पर जानेवाले कई संदेशों को रोक दिया जाए या हटा दिया जाए. उसने गत वर्ष किसान आंदोलन के दौरान जब ऐसी मांग की थी, तब कई संदेशों को हटा लिया गया था. लेकिन ट्विटर ने कई नेताओं और पत्रकारों के बयानों को हटाने से मना कर दिया था. 

जून 2022 में सरकार ने फिर कुछ संदेशों को लेकर उसी तरह के आदेश जारी किए हैं लेकिन अभी यह ठीक-ठीक पता नहीं चला है कि वे आपत्तिजनक संदेश कौन-कौन से हैं. सरकारी आपत्तियों को ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है. उसका कहना है कि ज्यादातर आपत्तियां विपक्षी नेताओं के बयानों पर है. 

केंद्रीय सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि सरकार ऐसे सब संदेशों को हटवाना चाहती है, जो समाज में वैर-भाव फैलाते हैं, गलतफहमियां फैलाते हैं और उन्हें हिंसा के लिए भड़काते हैं.

पता नहीं कर्नाटक का उच्च न्यायालय इस मामले में क्या फैसला देगा लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वैष्णव की बात सही लगती है. परंतु असली प्रश्न यह है कि सरकार अकेली कैसे तय करेगी कि कौनसा संदेश सही है और कौनसा गलत? अफसरों की एक समिति को यह अधिकार दिया गया है. लेकिन अंतिम फैसला करने का अधिकार उसी कमेटी को होना चाहिए, जिस पर पक्ष और विपक्ष, सबको भरोसा हो. 

इसमें शक नहीं है कि सोशल मीडिया जहां बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है, वहीं उसके निरंकुश संदेशों ने कोहराम भी मचाए हैं. जरूरी यह है कि समस्त इंटरनेट संदेशों और टीवी चैनलों पर कड़ी निगरानी रखी जाए ताकि लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन कोई भी नहीं कर सके. सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर चलनेवाले अमर्यादित संदेशों की वजह से आज भारत जितना परेशान है, उससे कहीं ज्यादा यूरोप उद्वेलित है. 

इसीलिए यूरेापीय संघ की संसद ने हाल ही में दो ऐसे कानून पारित किए हैं, जिनके तहत कंपनियां यदि अपने मंचों से मर्यादा भंग करें तो उनकी कुल सालाना आय की 10 प्रतिशत राशि तक का जुर्माना उन पर ठोंका जा सकता है. यूरोपीय संघ के कानून उन सब उल्लंघनों पर लागू होंगे जो धर्म, रंग, जाति और राजनीति आदि को लेकर होते हैं. भारत सरकार को भी चाहिए कि वह इससे भी सख्त कानून बनाए लेकिन उसे लागू करने की व्यवस्था ठीक से करे.

Web Title: It is necessary to curb social media, not only strict laws but also needs system to implement it

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