पालतू पत्रकार लगता है सत्ता को प्यारा, ईमान की सुनने वाले ही कुचले जाते हैं
By रंगनाथ | Published: March 26, 2018 06:40 PM2018-03-26T18:40:44+5:302018-03-26T19:34:31+5:30
मध्य प्रदेश में एक पत्रकार की डम्पर से कुचल कर मौत हो गयी तो बिहार में स्कॉर्पियो ने दो पत्रकारों को कुचल दिया।
सोमवार (26 मार्च) को मध्य प्रदेश के भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा को एक डम्पर ने कुचलकर मार दिया। उनके परिजनों के अनुसार उन्होंने बालू माफिया के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन किया था। उसके बाद से ही उन्हें जान से मारने की धमकी मिली रही थी। शर्मा ने जान से मारने की धमकियों की शिकायत पुलिस से की थी। लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया।
रविवार (25 मार्च) को बिहार के भोजपुर में दो पत्रकारों को एक स्कॉर्पियो ने कुचलकर मार डाला। परिजनों ने गाँव के पूर्व मुखिया पर हत्या का आरोप लगाया। शुक्रवार (23 मार्च) को नई दिल्ली में जेएनयू के छात्रों के मार्च को कवर करने गई महिला पत्रकारों के संग पुलिस ने मारपीट की। एक महिला पत्रकार का स्तन पकड़कर उसे धकेल दिया। उसका कैमरा छीन लिया।
तीन दिन तीन राज्य पत्रकारों की हालत एक जैसी। रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स की साल 2107 की रिपोर्ट में पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में भारत का दुनिया के 180 देशों में 136वां स्थान था। साल 2016 में भारत 133वें स्थान पर था यानी एक साल में हम तीन पायदान नीचे खिसक गये। पिछले साल गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश में पत्रकारों की सुरक्षा का मुद्दा काफी जोर-शोर से उछला था लेकिन ढाक के तीन पात। साल 2018 में स्थिति ज्यादा बदली होगी इसकी कम ही उम्मीद है।
रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में सीरिया और इराक जैसे देशों की श्रेणी में है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाने वाला मीडिया भले ही खुद में कितना ही ताकतवर दिखे। मीडियाकर्मियों की स्थिति सबसे दीन-हीन कामगारों में होती है। ये हाल केवल भारत का नहीं पूरी दुनिया का है। ब्रिटेन में कुछ साल पहले किए गये एक सर्वेक्षण में पत्रकारिता को सबसे बुरी नौकरियों में एक माना गया था।
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पत्रकारों के लिए और अवाम के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि उन्हीं पत्रकारों को सुरक्षा को खतरा ज्यादा है जो विभिन्न सत्ता प्रतिष्ठानों, माफिया तंत्रों और सामाजिक रूढ़ियों-कुप्रथाओं के खिलाफ लिखते-बोलते हैं। चाहे वो गौरी लंकेश हों, राजदेव रंजन हों या संदीप शर्मा। हर की हत्या के पीछे यही वजहें मानी गईं। सत्ता प्रतिष्ठानों और माफिया तंत्रों के लिए काम करने पत्रकार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते हैं। बड़ी गाड़ियाँ, बड़ी कोठियाँ और बड़ी टीवी स्क्रीन उनकी पहचान बन चुकी हैं।
देखिए दिल्ली में महिला पत्रकार के संग पुलिसवालों की बदसलूकी
.@Delhi Police roughed up @htTweets Photo Journalist #AnushreeFadnavis and snatched her camera during #JNU students protest in #Delhi. @htdelhi#JNURightToBunk #JNULongMarch @HMOIndiapic.twitter.com/UKwEW4h9yu
— Ajay Aggarwal (@AjayAggarwalHT) March 23, 2018
लबोलुबाब ये है कि आजाद मीडिया और बेखौफ पत्रकार कोई नहीं चाहता। पत्रकार पालतू हो तो प्यारा हो जाता है। अगर वो ईमानदार हो जाए तो देश के सभी रसूखधारों की आँखों का कांटा बन जाता है। किसी डंपर या स्कार्पियो से कुचला जाता है।