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संपादकीयः भारतीय नौसेना का आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता विश्वास

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 5, 2022 15:00 IST

भारतीय कंपनियां भी देश की सेना के लिए उत्पादन करने में जुट गई हैं। इसी ताकत के साथ सेना आत्मनिर्भरता की बात नि:संकोच करने लगी है। मगर यह भी आवश्यक है कि सैन्य तरक्की के कार्य में आर्थिक मोर्चे पर कोई कमी नहीं आनी चाहिए, जो केवल मजबूत करदाताओं से संभव है।

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देश की चौतरफा प्रगति के बीच भारतीय नौसेना का आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के लिए प्रण भविष्य की दिशा में एक अच्छा संकेत है। पिछले दिनों पहले स्वदेशी विमानवाहक आईएनएस विक्रांत के नौसेना के बेड़े में शामिल होने से एक तरफ जहां समुद्री सीमा पर ताकत बढ़ी है, वहीं एक नए आत्मविश्वास का सृजन भी हुआ है। पिछले काफी दिनों से हिंद महासागर में चीन अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में है। वह आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे श्रीलंका जैसे देशों को अपनी ढाल बना कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश में है। यही वजह है कि नौसेना में तीन विमानवाहक पोत और जोड़े जाने की मांग की जा रही है। फिलहाल भारत के पास दो विमानवाहक आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत हैं। आईएनएस विक्रमादित्य मूल रूप से रूसी पोत है। हालांकि नौसेना के आधुनिकीकरण पर विचार-विमर्श लंबे समय से जारी है, मगर ठोस परिणाम हाल के कुछ दिनों में सामने आए हैं।

नौसेना के लिए हल्के लड़ाकू विमान परियोजना तैयार हो चुकी है, जिसके तहत उत्पादन 2032 तक शुरू होगा। इसके अलावा कभी अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगति के लिए दूसरे देशों की ओर देखना पड़ता था। किंतु अब भारत अपने ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों के उपग्रहों को भेजने में भी सहायक साबित हो रहा है। यह सफलता सैन्य आवश्यकताओं की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, जिसका सपना भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और लालबहादुर शास्त्री तक देश के संकट के दिनों में देखते और कोशिश करते रहे। आज उसी जरूरत को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मजबूती के साथ पूर्ण करते जा रहे हैं। स्पष्ट है कि सहिष्णुता और सैन्य क्षमता दोनों को देश अपने-अपने स्तर पर दुनिया को दिखा रहा है, जो वर्तमान वैश्विक परिदृश्य के लिए आवश्यक बन चुका है। अब सैन्य हथियार, उपकरण और वाहनों के लिए किसी दूसरे देश से आस लगाना जरूरी नहीं रह गया है।

भारतीय कंपनियां भी देश की सेना के लिए उत्पादन करने में जुट गई हैं। इसी ताकत के साथ सेना आत्मनिर्भरता की बात नि:संकोच करने लगी है। मगर यह भी आवश्यक है कि सैन्य तरक्की के कार्य में आर्थिक मोर्चे पर कोई कमी नहीं आनी चाहिए, जो केवल मजबूत करदाताओं से संभव है। इसलिए कर चोरी न करना भी देश की एक सहायता है, जिसका संबंध रक्षा की आवश्यकताओं को पूर्ण करने से है। फिलहाल भारतीय नौसेना के हवाले से आत्मनिर्भरता का संदेश आना एक सुखद अनुभूति है और देश की उन्नति का प्रमाण है। अवश्य ही यह आने वाले दिनों में और अधिक बलवान होगा।  

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