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ब्लॉग: पड़ोसी देशों को आपदाओं से बचाने में भारत की पहल

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 09, 2024 12:20 PM

भारतीय मौसम विभाग के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा के मुताबिक मौसम संबंधी पूर्वानुमान की अपनी विशेषज्ञता को भारत पड़ोसी देशों के साथ साझा करेगा। ये देश अक्सर प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं और जान-माल की भयावह हानि को सहन करते हैं।

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ठळक मुद्देभारत अपने पड़ोसी देशों को प्राकृतिक आपदा के समय मदद करने जा रहाइस बात का संकेत भारतीय मौसम विभाग द्वारा दिया गयाअब मौसम संबंधी जानकारी पूर्वानुमान पड़ोसी मित्र देशों को मिल जाएगी

दुनिया में प्राकृतिक आपदा से होने वाली तबाही को कम करने के लिए भारत ने बेहद महत्वपूर्ण तथा सकारात्मक पहल की है। इससे एशिया के एक बड़े हिस्से में समुद्री तूफान, चक्रवात, आंधी-तूफान तथा जल से होने वाली अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पहले से जानकारी मिल जाएगी। इससे आपदा प्रबंधन के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा तथा बड़े पैमाने पर होने वाली प्राणहानि को टाला जा सकेगा।

भारतीय मौसम विभाग के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा के मुताबिक मौसम संबंधी पूर्वानुमान की अपनी विशेषज्ञता को भारत पड़ोसी देशों के साथ साझा करेगा। ये देश अक्सर प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं और जान-माल की भयावह हानि को सहन करते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने गरीब तथा विकासशील देशों में प्राकृतिक आपदा की पूर्व चेतावनी देने के लिए एक पहल शुरू की है। 

दो वर्ष पूर्व शुरू की गई संयुक्त राष्ट्र की इस पहल का मकसद सभी देशों को प्राकृतिक आपदा से होने वाले विनाश से बचाना है। शुरुआती चरण में संयुक्त राष्ट्र ने बीस देशों का चयन किया है। इनमें से पांच देशों नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश तथा मॉरीशस की मदद करने का जिम्मा भारत ने उठाया है। इन देशों में मौसम की पूर्व चेतावनी देने वाली आधुनिक प्रणाली नहीं है, इसके कारण प्राकृतिक आपदाओं विशेषकर जल से संबंधित आपदाओं की पूर्व चेतावनी इन देशों को मिल नहीं पाती। विश्व मौसम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में मौसम संबंधी अनुमान देने वाली प्रणाली मौजूद नहीं है। ये देश ऐसी चेतावनियों के लिए विश्व मौसम विज्ञान संगठन पर निर्भर रहते हैं। 

प्राकृतिक आपदाओं से हर साल दुनिया में हजारों लोगों की मौत होती है। जिन देशों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, वहां की अर्थव्यवस्था भी तबाह हो जाती है। पिछले तीन दशकों में दुनियाभर में प्राकृतिक आपदाओं से लगभग 25 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और पांच खरब डॉलर की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है। जलवायु परिवर्तन की रफ्तार जैसे-जैसे गति पकड़ रही है, प्राकृतिक आपदाओं की संख्या भी उतनी ही तेजी के साथ बढ़ती जा रही है। अमेरिका में मौसम संबंधी जानकारी देनेवाली सटीक प्रणाली मौजूद है। जलवायु परिवर्तन की मार के कारण अमेरिका में सालभर छोटी-बड़ी प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं लेकिन सटीक चेतावनी प्रणाली के कारण आपदा प्रबंधन में मदद मिल जाती है। 

भारत ने भी ऐसा दौर देखा है जब प्राकृतिक आपदाओं के कारण लाखों की संख्या में लोग जान गंवाते थे तथा बड़ी मात्रा में संपत्ति एवं फसलों को नुकसान पहुंचता था। भारत में आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा, प. बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार समेत कई राज्यों ने प्राकृतिक आपदाओं से अकल्पनीय तबाही झेली है क्योंकि मौसम का पूर्वानुमान लगाने की आधुनिक तकनीक हमारे पास नहीं थी लेकिन पिछले 25 वर्षों में हालात में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। 25 वर्षों में भारत ने कई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है, मगर कोई बड़ी प्राणहानि नहीं हुई क्योंकि हमारे देश ने मौसम की सटीक जानकारी देने वाली प्रणाली विकसित कर ली है। 

पिछले सप्ताह पूर्वोत्तर राज्यों में जबर्दस्त तूफान आया था लेकिन बड़ी प्राणहानि नहीं हुई। मौसम विभाग ने इस तूफान  की चेतावनी पहले से दे दी थी, जो एकदम  सही निकली। इससे समय पर आपदा प्रबंधन हो सका। भारत मौसम संबंधी चेतावनी के लिए अपने जिन पड़ोसियों की मदद कर रहा है, वे भी अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से जूझते रहते हैं और बड़ा नुकसान उठाते हैं। भारत की मदद से ये देश प्रकृति के प्रकोप से निपटने में सक्षम हो सकेंगे। प्राकृतिक आपदाएं कभी खत्म नहीं हो सकतीं। यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ के कारण प्रकृति का प्रकोप बढ़ेगा। 

प्राकृतिक आपदाओं को पर्यावरण संतुलन बनाकर कम जरूर किया जा सकता है लेकिन मनुष्य अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए दुनिया के सभी देशों को मिलकर पहल करनी होगी। ये अपनी विशेषज्ञता तथा संसाधनों का एक-दूसरे  की मदद के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे प्रकृति के प्रकोप से होने वाली बर्बादी को निश्चित रूप से रोका जा सकता है।

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